अभिभावकों से दूर रहकर बच्चे गलत फैसले कर सकते हैं, जिससे उनकी जिन्दगी पटरी से उतरकर, भूल के जंगल में खो सकती है इसलिए जरूरी है कि माता- पिता उनके अड़ियलपन को नजरअंदाज न करें, उन्हें समझें, उन्हें अकेला न छोड़ें। मनोविज्ञान की दृष्टि से इस सामाजिक आपातकाल को देखें-समझें।

अभिभावक मनोविज्ञान के सुझाए गए सरल सिद्धान्तों पर अमल करके बच्चों के साथ बहुत मधुर और भावनात्मक सम्बन्ध विकसित कर सकते हैं। आइए डालते हैं एक नजर मनोविज्ञान के उन सिद्धान्तों पर, जिनकी नींव पर मजबूत रिश्ते कायम हो सकते हैं।
बच्चों के करीब रहें
बच्चों की विकासशील अवस्था में कदम-कदम पर उन्हें आपकी जरूरत होती है। आपके द्वारा उपलब्ध कराए गए साधन आपकी कमी पूरी नहीं कर पाएंगे उनके लिए आपका मौजूद होना, उनकी बात सुनने के लिए तत्पर रहना, उनकी बात के जरिए उन्हें समझना, उनके लिए अनमोल है।
भाषण नहीं, संवाद करें
तुम यह क्यों कर रहे हो, तुम्हें यह नहीं करना चाहिए पागल है क्या, करने से पहले कुछ सोचता नहीं, तुम्हें ऐसा करना चाहिए आदि जैसे निर्देशों से बच्चे जल्दी उकता जाते हैं। बढ़ते बच्चों के साथ विशेष रूप से, किशोरावस्था में आ चुके बच्चों के साथ ऐसा संवाद स्थापित करना उन्हें स्वयं से दूर करने का सबसे बड़ा कारण है। बढ़ते बच्चों के साथ ऐसा संवाद स्थापित करना चाहिए, जिसमें आप उन्हें अपने समानान्तर रखकर उनके मत का भी सम्मान कर पाएं। ऐसा करने से बच्चे अपनी बात आपके सामने खुलकर रख पाएंगे। उनके साथ आप स्वयं को और अपनी सोच को भी विकसित होने का मौका देंगे।
उनके जीवन में रुचि लें
बच्चों के जीवन में क्या हो रहा है, उनके मोबाइल गेम, उनके कार्टून, उनके सोशल मीडिया एप्स, उनके रियल और वर्चुअल दोस्त, उनकी पसंदीदा वैब सीरीज, पसंदीदा खेल और खिलाड़ी, इनकी जानकारी रखना, इनके बारे में जानने की उत्सुकता दिखाना, उनकी दुनिया में जाकर उनके साथ समय बिताना, परिचित होना ये सब ऐसे कदम हैं, जो निश्चित रूप से उन्हें आपके करीब लाने का काम करेंगे।
संवेदना
बच्चों के मन को पढ़ पाना, उसे समझ पाना, बिना प्रतिक्रिया दिए, उनके मन की बात को पूरी संवेदना के साथ सुन पाना अभिभावक के लिए बच्चों के मन में सदा के लिए घर बनाने के बराबर है। अगर आपसे उन्हें संवेदना नहीं मिली तो वे किसी और से भी इसकी उम्मीद नहीं कर पाएंगे। अगर मां-बाप के साथ ही उनके मन में असुरक्षा की भावना रही तो आगे आने वाले सारे सम्बन्धों में असुरक्षित ही महसूस करेंगे और किसी पर भी जल्दी से, बिना जांचे- परखे विश्वास कर लेंगे या फिर किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाएंगे। ऐसे में वे जीवन से और लोगों से असन्तुष्ट और नाखुश बने रहेंगे।
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