मा स्कूल टीचर से शिकायत करने पहुंची कि उनके के.जी. में पढ़ने वाले बेटे को उनकी क्लास के एक बच्चे ने झूले से धक्का देकर गिरा दिया जिससे उसे चोट लगी है, जबकि टीचर का कहना था कि उस समय वह बच्चों के पास ही थी तथा उस बेटे ने ही उस बच्चे को झूला तेज देने को कहा और तेज झूले से उतरते हुए वह खुद ही गिर गया।
मां की समझ में यह नहीं आ रहा था कि हर बात मैं उनका बच्चा झूठ क्यों बोलता है, जैसे घर पर कह देना कि होम वर्क नहीं मिला और स्कूल में कह देना कि मम्मी बिजी थीं, तो होमवर्क नहीं करा पाई। ऐसा वह केवल खेलने और टी.वी. पर कार्टून देखने के लिए ही करता था।
अधिकांश माता-पिता को शिकायत रहती है कि बच्चे उनसे झूठ बोलते हैं। स्कूल से टीचर की शिकायतें आती हैं कि बच्चा होमवर्क नहीं करता और डांट एवं पिटाई से बचने के लिए रोज नए बहाने बनाता है। घर पर भी वह कई बातों में झूठ बोलता है।"
वास्तव में बच्चों में पनपती झूठ की आदत के लिए अभिभावक ही जिम्मेदार होते हैं। हालांकि सहजता से कोई भी इस बात को नहीं मानेगा क्योंकि हर कोई अपने बच्चों को यही सिखाता है कि कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, सच बोलना एक अच्छी आदत है, यदि कोई गलती हो जाए तो सच-सच बता देना चाहिए। अब सोचना यह है कि बच्चा इन सब बातों को सीखेगा कैसे, जबकि हम खुद उसके सामने न केवल अनेक बातों में झूठ बोलते हैं, बल्कि कई मामलों में उसे भी बोलने को कहते हैं। इससे बच्चा भी समझ जाता है कि बड़ों की कथनी और करनी में काफी अंतर है।
जब पापा के ऑफिस से या किसी दोस्त का फोन आता है तो वह बच्चे से ही कहलवा देते हैं कि बोल दो पापा घर पर नहीं हैं या बाशरूम में इसी प्रका मम्मी भी अक्सर कह देती हैं कि पापा को मत बताना कि आज उनकी किटी पार्टी की फ्रैंड्स आ गई थीं तो बाहर से स्नैक्स मंगवाए थे।
ये बातें भले ही छोटी लगें, परंतु बच्चे इन सबको देख-सुन कर यही अंदाजा लगाते हैं कि किसी चीज से बचने के लिए झूठ का सहारा लेना बुरा नहीं क्योंकि मम्मी-पापा भी तो झूठ बोलते हैं। यदि आप बच्चों के सामने अपना व्यवहार ठीक रखेंगे तो आपके बच्चे भी झूठ नहीं बोलेंगे। अपने झूठ और फरेब के मकड़जाल में बच्चों को न उलझने दें। आपके अच्छे व्यवहार का बच्चों पर सकारात्मक असर पड़ेगा और वे अच्छे इंसान बनकर आपका नाम रोशन करेंगे।
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