महर्षि पाणिनि के अनुसार दिशाओं के स्वामी यानी अष्टवसुओं के समूह को गण कहा जाता है। इनके स्वामी गणेश हैं। इसलिए इन्हें गणपति कहा गया है। गणेश जी की पूजा के बिना मांगलिक कामों में किसी भी दिशा से किसी भी देवी-देवता का आगमन नहीं होता। इसलिए भगवान गणेश की पूजा हर मांगलिक काम और पूजा से पहले की जाती है।

गणेश पूजा की शुरुआत कैसे हुई?
शिवपुराण अनुसार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति भगवान गणेशजी का जन्म हुआ था। अपने माता-पिता की परिक्रमा लगाने के कारण शिव-पार्वती ने उन्हें विश्व में सर्वप्रथम पूजे जाने का वरदान दिया था। तभी से ही भारत में गणेश पूजा-आराधना का प्रचलन है।
भगवान गणेश को प्रणाम करें और तीन बार आचमन करें तथा माथे पर तिलक लगाएं। मूर्ति स्थापित करने के बाद गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। उन्हें वस्त्र, जनेऊ, चंदन, दूर्वा, अक्षत, धूप, दीप, शमी पत्ता, पीले पुष्प और फल चढ़ाएं। पूजन आरंभ करें
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
इस मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या यानी 1 से 10 माला जाप कर सकते हैं.
तथा अंत में गणेश जी की आरती करें और मनोकामना पूर्ति के लिए आशीर्वाद मांगे।
द्वापर युग में सत्राजित नामक यदुवंशी को द्वारिकापुरी में भगवान सूर्य की कृपा से सत्राजित नामक यदुवंशी को मणि की प्राप्ति हुई।सत्राजित उस मणि को धारण कर के राजा उग्रसेन की सभा में उपस्थित हुआ। तब भगवान श्रीकृष्ण ने राष्ट्र कल्याण में सत्राजित नामक यदुवंशी को दिव्यमणि राजा उग्रसेन को भेंट करने की सलाह दी।
सत्राजित नामक यदुवंशी के मन में आया कि शायद भगवन श्रीकृष्ण उनकी मणि लेना चाहते हैं। इसलिए उसने मणि को अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन उस मणि को गले में पहन कर शिकार खेलने के लिए वन में गया जहां वह एक शेर से मारा गया लेकिन सत्राजित ने भगवान श्रीकृष्ण पर अपनी मणि छीनने का आरोप लगाया। प्रजा में झूठा आरोप का फैल जाने पर श्रीकृष्ण खुद वन में मणि तथा सत्राजित के भाई प्रसेन को ढूंढने गए। उसी वन में जाम्बवंत जी भी अपनी पुत्री जाम्बवती के साथ रहते थे। जब भगवन श्रीकृष्ण जी मणि को ढूंढते हुए उस गुफा तक जा पहुंचे जहां जाम्बवंत जी रहते थे, वहां भगवान् श्रीकृष्ण का जाम्बवंत से युद्ध हुआ। जाम्बवंत जी ने भगवान श्रीकृष्ण को पहचान लिया कि श्रीकृष्ण के रूप में उनके स्वामी प्रभु श्रीराम हैं।
फिर जाम्बवंत ने भगवान श्रीकृष्ण से अपनी पुत्री का विवाह किया और स्यमंतक मणि भी दे दी इस प्रकार श्रीकृष्ण झूठे कलंक से मुक्त हुए।
यह कथा श्रीमद्भागवत पुराण से है। ब्रह्मा जी के समक्ष सृष्टि निर्माण के समय बाधाएं उत्पन्न होने लगीं तो उन्होंने श्री गणेश जी की स्तुति की और उनसे सृष्टि निर्माण निर्विघ्न रूप से सम्पन्न होने का वर मांगा। उस दिन भाद्रपदमास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी थी। तब श्री गणेश जी ने ब्रह्माजी को अभीष्ट वर प्रदान किया। तब से इस दिन 'गणेश उत्सव' मनाया जाता है।
इसी दिन जब श्री गणेश जी पृथ्वीलोक पर आ रहे थे तब चंद्रमा ने भगवान श्री गणेश जी का मजाक उड़ाया तब श्री गणेश जी ने चन्द्रमा को श्राप दिया कि आज के दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, वह झूठ कलंक का भागी होगा। चंद्रमा बहुत लज्जित हुए। तब ब्रह्मा जी तथा देवताओं की प्रार्थना पर चंद्रमा को क्षमा करते हुए गणेश जी ने कहा कि जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चंद्रदर्शन करके चतुर्थी को विधिवत मेरा पूजन करेगा उसे चंद्रदर्शन का दोष नहीं लगेगा।
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