जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, चीजों के बारे में जानने की जिज्ञासा उनके अंदर बढ़ती जाती है। ऐसे में बच्चे अपने बड़ों को देखकर स्वयं भी उसी तरह चलने का प्रयास करते हैं। मामला तब बिगड़ जाता है जब बच्चा माता-पिता के आचार-व्यवहार का आकलन सही तरीके से नहीं कर पाता और उन्हें। देखते हुए उनके विपरीत राह पर चलता है
ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी होती है कि बच्चों की सही से समझाइश की जाए ताकि वे जिंदगी की गलत राह पर न चले जाएं।

दूसरों की बातें सुनना
कमोबेश हर घर में देखा जा सकता है कि बच्चों को पड़ोसियों या घर-परिवार के लोगों की जासूसी करने को कहा जाता है। उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे आसपास उनके खिलाफ होने वाली बातों पर नजर रख पाएंगे जबकि ऐसा सिखाने से बच्चों के दिमाग पर नकारात्मकता हावी होने लगती है, इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ों की बातों में बच्चों को न धकेलें ।
किसी भी तरह जीतना
हर पेरैंट चाहते हैं कि उनके बच्चे सबसे आगे रहें लेकिन जीतने की स्किल्स के अलावा बच्चों को नैतिक मूल्य भी जरूर सिखाएं। बच्चों को सिखाएं कि हैल्दी कॉम्पिटीशन क्या होता है। किसी को गिराकर आगे बढ़ना सही नहीं होता। बच्चों को जीतने के सही और गलत तरीके तो जरूर बताएं।
किसी को कम समझना
बच्चों के मन में कभी किसी बच्चे या अन्य व्यक्ति को लेकर जहर न भरें। उन्हें किसी भी तरह का भेदभाव न सिखाएं। ऐसा करने से बच्चे के मन में शुरू से ही भेदभाव की भावना घर कर जाती है और फिर वह दूसरों लोगों को अपने से कम समझने लग जाता है।
किसी की बुराई करना
कई बार लोग गुस्से में आकर बच्चों से दूसरों की बुराई करने लगते हैं। कई बार लोग अपने पार्टनर की या फैमिली मैंबर की बच्चों से बुराई करते समय यह भूल जाते हैं कि बच्चा जितना आपके साथ रहता है उतना ही बाकी लोगों के साथ भी समय गुजारता है। ऐसे में आपकी बातों से वह खुद को दो अलग-अलग हिस्सों में बंटा हुआ महसूस करने लगता है। कई बार इससे बच्चे उन लोगों से नफरत करने लगते हैं जिनके बारे में आप उससे बुराई करते हैं।
बदतमीजी से जवाब देना
गलत बातों का जवाब देना सही है लेकिन बचपन में बच्चों को समझ नहीं होती। ऐसे में उन्हें यह न सिखाएं कि कोई मजाक में भी आपको कुछ कहे, तो आपको बदतमीजी से जवाब देना है बल्कि बच्चों को अपने विवेक से चीजें समझने के लैवल तक। पहुंचने दें। उन्हें बताएं कि अगर कोई कुछ कहता है, तो आकर घर पर माता-पिता को बनाएं।
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