बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। हम बचपन में बच्चों को जो सिखाते हैं, वह उनके दिमाग में बैठ जाता है। माता-पिता उनसे आशा लगाकर बैठे रहते हैं कि बच्चे उनकी बात सुनें। लेकिन कई बार बच्चे उनकी बातों की अनदेखी कर देते हैं, तो वे बच्चों को डांटने-फटकारने लगते हैं। नौनिहालों का मन बहुत ही नाजुक होता है। डांट-फटकार उनके मन पर विपरीत असर डालती है। इसके साथ ही यह डर उनमें अवसाद को न्यौता भी दे देता है। ऐसे में चिकित्सकों ने सुझाव दिया है कि वे नौनिहालों को लेकर सावधानी बरतते हुए उन पर विशेष ध्यान दें।
उल्लेखनीय है कि माता-पिता का गुस्सा बच्चों में डर पैदा करता है। छोटी उम्र में बच्चे का दिमाग बहुत नाजुक होता है। कोई भी कारण उन्हें तुरंत रुला देता है। साथ ही जब हम उन पर गुस्सा होते हुए चिल्लाते हैं, तो वे हमसे डरने लगते हैं। इस वजह से वे हमारे नजदीक आने से भी डरते हैं।
स्कूल का माहौल महत्वपूर्ण
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सदावर्ते ने बताया कि बच्चे जब 7 वर्ष या उससे अधिक उम्र के होते हैं, तो वे वास्तविक दुनिया को समझना शुरू कर देते हैं। बच्चे सच और झूठ के वास्तविक जीवन में घटित होने वाली चीजों से अधिक डरते हैं। वे आमतौर पर 5 वर्ष से अधिक उम्र में मानवीय इशारों को पूरी तरह से समझना शुरू कर देते हैं। वे किसी के बुरे या खुश रवैये से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं। 14 से 19 वर्ष की आयु के बच्चे अपने स्कूल और दोस्तों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाते हैं और स्कूल का माहौल भी उनके लिए महत्वपूर्ण होता है। स्कूली शिक्षा, दोस्त और शिक्षक भी उनके डर का एक कारण हैं।
ऐसे दूर करें बच्चों के मन से डर
बच्चों को जहां डर लगता हो, वहां माता-पिता को कभी भी उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। बच्चों को डांटने-फटकारने की बजाय उन्हें समझाएं और बात करने की कोशिश करें।
साथ ही बच्चों से बात करते हुए उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए प्रेरित करें। कई बार बच्चों को उनके माता-पिता से अलग रखें, ताकि वे घर में अन्य रिश्तेदारों को भी अच्छे से जानकर उनके साथ भी सुरक्षित महसूस करें।
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