बच्चा भविष्य में कैसा होगा, यह कोई नहीं कह सकता लेकिन यह प्रत्येक अभिभावक, अध्यापक और घर के बड़े-बुजुगों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को अच्छी सीख देने के साथ नैतिकता का पाठ भी पढ़ाएं। बच्चों में नैतिक मूल्यों के विकास को लेकर बचपन से ही उन्हें अच्छी सीख दें, ताकि भविष्य में वे जितना भी कमाएं, ईमानदारी और मेहनत से कमाएं और कमाने के साथ बड़े-बुजुर्गों का आदर व छोटों का सम्मान भी करें। किसी के साथ गलत न करें। ये संस्कार सबसे अहम हैं।

इन्हीं नैतिक मूल्यों की बदौलत बच्चों को आगे चल कर अपने जीवन में सफलता हासिल होती है। शिक्षा की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिससे हमारी भावी पीढ़ियों को अपनी संस्कृति, संस्कारों और जीवन मूल्यों के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा मिले। अध्यापक राष्ट्र निर्माता और समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं। वे विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाते हैं और यही विद्यार्थी भविष्य में आदर्श नागरिक बनकर राष्ट्र निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों और संस्कारों को संजो कर देश को प्रगति के साथ-साथ फिर से विश्व गुरु के अपने स्वरूप को प्राप्त करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। आजकल अभद्रता और अशिष्टता क्यों बढ़ रही है, इस विषय पर गंभीर चिंतन की जरूरत है। अशिष्ट व्यवहार के लिए हम युवा पीढ़ी को भी पूरी तरह दोषी नहीं ठहरा सकते। इसके लिए परिवार, सामाजिक वातावरण और आसपास का परिवेश भी जिम्मेदार है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसकी परवरिश का जिम्मा परिवार पर होता है। उसे जैसे संस्कार दिए जाते हैं, वह बड़ा होकर उन्हीं के अनुरूप चलता है। इसके साथ ही समाज का भी इसमें अहम योगदान होता है। इसलिए बच्चों को शुरू से अच्छे संस्कार दिए जाने चाहिएं। जिस कदम पर बच्चा गलत करे, उसे तभी सही-गलत की पहचान करवानी चाहिए। बच्चों को नैतिक मूल्यों के साथ अपनी संस्कृति से भी रू-ब-रू करवाना चाहिए। नैतिक मूल्य हमारी संस्कृति की पहचान होते हैं।
परिवार में रहकर ही बच्चे को संस्कारों, नैतिकता व शिष्टाचार के बारे में सीखना होता है। जिसके संपर्क में भी बच्चा आता है, उसी का व्यावहारिक असर बच्चे पर होता जाता है। इसमें हमारा दायित्व यह है कि शिष्ट और अशिष्ट क्या है, इसके बारे में बच्चे को ज्ञान दें।
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