आज ज्यादातर युवा और बच्चे हमेशा मोबाइल, डैस्कटॉप या लैपटॉप आदि पर व्यस्त दिखते हैं। इससे उनमें शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं।
हाल ही में एक राष्ट्रीय सर्वे में पता चला है कि लगभग 60 प्रतिशत बच्चे हमेशा सोशल मीडिया से चिपके रहते हैं। इस आयु में उन्हें खेलने-कूदने, मैदानों पर दिखने के साथ सामुदायिक जीवन बिताना चाहिए। इससे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक हर तरह का विकास होता है लेकिन इन सबसे दूर, एकांत में केवल सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने से बच्चे डिप्रैशन व अन्य प्रकार की समस्याओं का शिकार बनते जा रहे हैं। मनोचिकित्सकों व अन्य ने भी इसे बड़ी समस्या बताया है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि सारे विश्व की समस्या है।

खैर, केंद्र सरकार द्वारा शीघ्र ही 'डिजिटल प्राइवेट डाटा प्रोटैक्शन लॉ' लाए जाने की उम्मीद है। इसके आने से बच्चों की ऑनलाइन मनमानी पर कुछ लगाम संभव होगी। इस कानून से 18 साल से कम आयु के बच्चों को इंटरनैट पर कुछ एप्लीकेशन्स (एप्स) का इस्तेमाल करने के लिए माता-पिता (अभिभावकों) की अनुमति अनिवार्य होगी। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इन दिनों सोशल मीडिया का जबरदस्त बोलबाला है क्योंकि डैस्कटॉप, लैपटॉप आदि अनेक प्रकार के गैजेट्स से लेकर मोबाइल तक लगभग हर हाथ में उपलब्ध है। घर-घर में इंटरनैट की सुविधा है।
साथ ही अनेक प्रकार के गेम्स, फिल्में, सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म और एप्स बड़ी सहजता से उपलब्ध हैं। केवल एक क्लिक मात्र से मनचाही चीजें हासिल हो रही हैं।
केवल इन गैजेट्स पर घंटों आंखें टिकाए रखना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के प्रतिकूल है। इस कारण घर-परिवार और समाज से भी प्रत्यक्ष होने वाला संवाद कम होता जा रहा है। बच्चे सामाजिक व्यवहार से दूर होते जा रहे हैं। हालांकि सोशल मीडिया कनैक्टिविटी में ढेर सारी अच्छाइयां भी हैं, लेकिन जो दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, वे चिंताजनक हैं।
सामाजिक परिवेश के व्यावहारिक जीवन और बेहतर संवाद से व्यक्ति-व्यक्ति के बीच परस्पर जो रिश्ते बनते हैं, वे सोशल मीडिया वाले बच्चों की समझ से बाहर की बात होते जा रहे हैं। मानवीय जीवन में परस्पर भावुकता, स्नेह और संवेदनाओं को प्रत्यक्ष महसूस किया जाता है, सोशल मीडिया पर परोक्ष रूप से ऐसा होने में बहुत फर्क है। सामाजिक मान- मर्यादा और अनुशासन के साथ ही अनेक प्रकार के संस्कारों के गुण सामाजिक व्यवहार से हम सीखते हैं। सोशल मीडिया संपर्क, जानकारियों और ज्ञानवर्धन का बड़ा माध्यम अवश्य है लेकिन वह केवल साधन है।
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें पारिवारिक, सामाजिक और सामुदायिक परिवेश में बनाए रखना ज्यादा जरूरी है। इसीलिए बच्चों की आदतों पर लगाम लगाने के लिए कानून बनने जा रहा है। देश को सुसंस्कारी पीढ़ी देने के लिए कुछ अनुशासन और मर्यादाएं आवश्यक हैं। घर-परिवार भी बच्चों को आधुनिक अवश्य बनाएं, पर उनमें संस्कारों, परंपराओं, लोक मान-मर्यादा और सामाजिकता के गुणों के विकास पर विशेष ध्यान दें। इसी से भविष्य में बेहतर पीढ़ी बनेगी।
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