जब बेटे का विवाह होता है तो उसका बाप फूला नहीं समाता। उस पर अपनी खुशियां लुटाता है। पानी की तरह पैसा बहाकर बड़ी-सी पार्टी का आयोजन करता है। बहू के लिए सोने और मोतियों जड़े महने बनवाता है। अपनी पत्नी के कहने पर सुंदर साड़ियों और बढ़िया-बढ़िया सूट खरीदने की अनुमति देता है। सेहरे पर से नोटों की वर्षा करता है, बैंड-बाजे और शहनाइयों के साथ-साथ डी.जे. की ताल पर सारा परिवार, संबंधी और दोस्त नाचते हैं।

जब बहू घर आती है तो सासू मां उसकी आरती उतारती है। घर में बहू का प्रवेश गुलाल और गुलाब जल में उसके पैर डुबोकर करवाती है। सौ-सौ शगुन मनाती है, घर में बधाई देने आने वालों को खाली हाथ नहीं लौटाती । देवी- देवताओं से मांगी मन्नतें पूरी करती है।
ननदें भी भाभी पर कुर्बान जाती हैं। देवर, जेठ सभी अपना प्यार लुटाते हैं। बहू की हर सुविधा का सारा परिवार ख्याल रखता है। सास तो उस शुभ घड़ी का इंतजार करती है कि पोता- पोती की किलकारी घर में गूंजे।
यदि सास-ससुर इतने उदारचित्त और दयालु हैं तो बहू को भी उनका सत्कार करना चाहिए। उनकी देखभाल करनी चाहिए क्योंकि अब वे उम्रदराज हो गए हैं।
ननदों और देवरों से भाई-बहन जैसा व्यवहार करना चाहिए, परंतु देखा यह गया है कि पश्चिमी सभ्यता ने हमारी अनेक बहुओं को अपने शिकंजे में कर लिया है। उनका खान-पान और बर्ताव सब विदेशी हो गया है। वे मनमानी करती हैं और अपने ढंग से जीने की जिद करती हैं।
दुल्हन अपने मां-बाप को छोड़कर आती है तो ससुराल में उसको नए माँ-का मिलते हैं। उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए, परंतु यहां तो कुछ देर के बाद ही तनातनी का माहौल बना लेती है।
सुबह जल्दी उठने के लिए कोई न कहे। वह जहां मर्जी जाए, उसे कोई न टोके।
मोबाइल देखते हुए उसे कोई डिस्टर्ब न करे। सास से उसका दिन-रात झगड़ा रहता है क्योंकि वह हमेशा संस्कारों की बात करती है। मंदिरों और गुरुद्वारों में जाने को कहती है।
कई तो अपने पति को भी ठेंगा दिखाती हैं और वह सख्ती से पेश आए तो थाने जाने की धमकी देती हैं। कई तो मॉडर्न दिखने के लिए शराब पीने से भी गुरेज नहीं करतीं, जबकि भारतीय संस्कृति इसकी इजाजत नहीं देती क्योंकि इसके नुक्सान ही नुक्सान हैं।
बहू को बेटी का दर्जा तब ही मिल सकता है यदि वह सास-ससुर के आदेश का पालन करे और अनुशासन में रहे तथा अपने सात फेरों पर लिए वचनों को निभाए। परंतु यहां तो उल्टा ही हो रहा है, कई बहुएं प्रताड़ित होने के बहाने से दहेज मांगने का अपराध मढ़ देती हैं और सुसराल वालों को बिना वजह परेशान करती हैं।
यह कोई छुपी बात नहीं है कि दहेज उत्पीड़न के कितने ही केस झूठे दर्ज करवाए जाते हैं। जरा- सा झगड़ा क्या हुआ, तलाक देने की धमकी मिलती है। बेशक आज भी अनेक औरतों पर जुल्म होता है मगर सभी परिवार ऐसा नहीं करते।
बहू को यदि सुखमय जीवन बिताना है तो परिवार के साथ संतुलन और सद्भाव बनाना होगा। बुजुर्गों की सेवा कभी निष्फल नहीं जाती। कहावत है 'कर सेवा खा मेवा।'
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