बच्चों को संस्कारित बनाना है तो 'खुद को सुधारें' पेरेंटिंग : मान लो हम किसी सभा में बैठे हैं। यह धार्मिक सभा है। संत-महात्मा प्रवचन दे रहे हैं। उन्हें पूरी तरह न सुनकर हम आपस में बातें करने लग जाते हैं, लगातार न सही, बीच-बीच में ही, कभी-कभी सही, या फिर केवल कानाफूसी। यह बहुत बुरी आदत है। आसपास के लोग दुखी हो जाएंगे। प्रवचन करने वालों को तो दुख होगा ही। लोगों का ध्यान बंटेगा। आप स्वयं भी एकाग्रचित्त होकर अच्छी बातें नहीं सीख सकेंगे, लाभान्वित नहीं होंगे। यह सब शिष्टाचार के विरुद्ध है। ऐसे में आपके साथ गया बच्चा चुप नहीं बैठेगा। वह भी मौका पाकर कुछ न कुछ बोलेगा। अभी से उपनी आदत बिगाड़ लेगा। अतः वैसा आचरण करें, जैसे बच्चा भी अनुसरण कर एक आदर्श बालक बन सके।

ऐसे अनेक अवसर आते हैं- कोई गीत-संगीत की सभा है, कहीं गंभीरों पर विचार करने लोग इकट्ठे हुए हैं, कहीं कवि सम्मेलन है, कहीं किसी ल्के- फुल्के विषय पर संवाद हो रहा है। बच्चा जैसा आपका व्यवहार देखेगा, उसी का अनुसारण करेगा। यह पक्की बात है। इससे उसकी वैसी ही आदत बन जाएगी। वह गलत आदत पाल लेगा। इस आदत के कारण आपका बच्चा कक्षा में बैठा अध्यापक को कम सुनेगा। एकाग्रचित न होगा। आसपास बैठे सहपाठियों से कुछ न कुछ बतियाने की कोशिश करेगा। स्वयं तो डिस्टर्ब होगा ही, मित्रों का भी डिस्टर्ब करेगा। अध्यापक को भी टीका-टिप्पणी करनी पड़ सकती है।
खैर ! अध्यापक का तो कुछ नहीं जाएगा। बच्चे को ही हानि होगी। पाठ उसके पल्ले नहीं पड़ेगा। इससे वह पढ़ाई में भी पिछड़ने लगेगा। अच्छा इसी में है कि आप अपने व्यवहार में कोई लापरवाही न आने दें। स्वयं सतर्क रहें। बच्चे को भी सचेत रहना सिखाएं। तभी आपका बच्चा अच्छा बन पाएगा। आप कोशिश कर उसे सुसंस्कारित कर सकते हैं।
विद्वान, तजुर्बेकार, सधे हुए लोग सदा यही कहते हैं कि जैसे व्यवहार की आप दूसरों से आशा करते हैं, वैसा पहले स्वयं करें। ऐसा नहीं हो सकता कि स्वयं तो कठोर शब्द बोलते रहें और सामने वाला आपको मीठे शब्दों के साथ संबोधित करें।
मित्र मानोगे तो मित्र ही कहलाओगे। आप उसे अपना शत्रु मानें और वह आपको प्रिय मानने लगे, ऐसा संभव नहीं। मीठा सुनना है तो मीठा सुनाओ भी। जी सुनना चाहते हैं तो जी पुकारना पड़ेगा। यदि आप किसी से घृणा करते हैं और चाहते हैं कि वह आपको गले लगाकर बात करे, ऐसा तो कभी भी हो नहीं सकता। यह बात आपके बच्चों पर भी लागू होती है।
हम आचार-विचार से लोगों का मन जीत सकते हैं। उन्हें अपना बना सकते हैं, औरों को प्रभावित कर सकते हैं। बच्चों से भी बदले में उनका प्यार, उनका आदर, उनकी सद्भावना पा सकते हैं। इसी प्रकार हमारे बच्चे भी कर सकते हैं। उन्हें अच्छी बातें सिखाकर लोकप्रिय बनाना आपके हाथ में है। उनका भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं। इस प्रकार बच्चे समाज तथा देश के लिए उपयोगी बन सकते हैं।
- बचपन से ही बच्चों की भाषा पर दें ध्यान
- केवल बड़ों का नहीं, सभी का सम्मान करना सिखाएं
- शेयरिंग सिखाएं
- संवेदशील बनाएं
- भावनाओं पर नियंत्रण भी जरूरी है
- कृतज्ञता का भाव हो
बच्चों को अच्छे संस्कार कैसे देना चाहिए?
बच्चों को संस्कार सिखाने के लिए सबसे जरूरी है कि उन्हें बड़ों और अपने से छोटों का सम्मान करना सिखाएं। अगर बच्चा सम्मानपूर्वक कोई बात न पूछे, रोए- चिल्लाए और पैर पटक कर बात करे, तो अपना फैसलना न बदलें। बल्कि उन्हें समझाएं कि इस तरह के उनकी कोई बात नहीं मानी जाएगी।बच्चों को तमीज कैसे सिखाएं?
- How to teach manners to a child: बच्चे का व्यवहार, उठना-बैठना और बातचीत का लहजा (Way of talking) इस बात का परिचय अपने आप दे देता है कि उसकी परवरिश (Upbringing) कैसे घर में हुई है. ...
- हाथ जोड़कर नमस्ते करना
- पैर छूना
- बड़ों से बहस ना करना ...
- पूजा-पाठ करना
- फिजिकली ऐक्टिव रहना
अच्छे संस्कार के लक्षण क्या हैं?
शुद्धता, पवित्रता, धार्मिकता एवं आस्तिकता संस्कार की प्रमुख विशेषतायें हैं ।जिद्दी बच्चों को कैसे मैनेज करें?
- कारण को समझें अगर आपका बच्चा बार-बार जिद या गुस्सा कर रहा है तो सबसे पहले उसे डांटने की बजाय इसके पीछे के कारण को समझें. ...
- जीतें बच्चों का भरोसा बच्चों को शांत करने के लिए उनका भरोसा जीतने की कोशिश करें. ...
- बच्चों को न टोकें ...
- डार का माहौल न बनाएं
जब बच्चे कहना ना माने तो क्या करें?
- आपकी बातचीत का तरीका हो पॉजिटिव
- सोच-समझकर करें शब्दों का चयन
- तेज आवाज में न करें बात
- तरीके सुझाएं, प्यार से समझाएं
- शिष्टाचार का पाठ पढ़ाएं
- स्वीकृति दिखाएं
और भी पढ़ते रहिये ......
पढिये कैसे डांट-फटकार से बच्चे होते हैं 'अवसाद का शिकार
पढिये कैसे बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए आवश्यक 'नैतिक मूल्यों की शिक्षा'
पढिये कैसे 'सास-ससुर' भी पूजनीय होते हैं
पढिये कैसे 'बीमार' बना रहा सोशल मीडिया
पढिये कैसे पैंरैंटिंग : बच्चों को 'झूठ से' दूर रखें
पढिये कैसे समझें अपने बच्चों के 'मन की बात'
पढिये कैसे अच्छे पेरेंट्स को परफेक्ट होने की जरूरत नहीं होती
पढिये कैसे बच्चों को दूसरों के सामने न करें 'शर्मिंदा'
पढिये कैसे बच्चों को सिखाएं 'पैसे की कीमत'
पढिये मोबाइल फोन के नुकसान
पढिये थोड़ा 'सामाजिक' भी बनें
पढिये कैसे सबको आकर्षित करता है 'मुस्कुराता चेहरा'
पढिये कैसे बच्चों को 'स्मार्टफोन' से बचाएं
पढिये बच्चों को संस्कारित बनाना है तो 'खुद को सुधारें' पेरेंटिंग
पढिये कैसे 'कामकाजी मांएं' इस तरह रखें बच्चों का ध्यान
पढिये बच्चों के लिए पेश कीजिए 'अच्छी मिसाल'
Thankyou