आज के दौर में बच्चों से अगर पूछा जाए कि उनका फेवरेट गेम कौन सा है, तो अधिकतर का जवाब क्रिकेट, फुटबाल या बैडमिंटन की बजाय वीडियो गेम ही होगा।
डिजिटल प्लेटफार्म पर उपलब्ध वीडियो गेम्स का आकर्षण होता ही कुछ ऐसा है, कि बच्चे बहुत जल्द इसके मुरीद हो जाते हैं और फिर देखते ही देखते कब वे वीडियो गेम एडिक्ट हो जाते हैं, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। कुछ समय पूर्व बच्चों द्वारा आत्महत्या के प्रयास जैसी कई घटनाएं हुई थीं, इसके पीछे ब्लूव्हेल और पबजी जैसी वीडियो गेम्स का संबंध पाया गया था।

इस तरह अधिकांश लोग वीडियो गेम की नैगेटिविटी से परिचित हुए थे। इन दिनों बच्चों और किशोरों में 'बोनस राऊंड', 'फ्री फायर', 'स्क्वेयर फेस', 'क्रॉस फायर' जैसे वीडियो गेम्स का बड़ा क्रेज है। इन सभी गेम्स में हिंसा है। इनमें मुख्यतः मारधाड़ और गोलाबारी से लक्ष्य हासिल करने का विकल्प होता है।
बच्चों का मन कोमल होता है लेकिन वीडियो गेम का हिंसक कंटैंट बच्चों को मारधाड़ और खून- खराबे में आनंद लेना सिखाता है। इससे उनके व्यवहार में क्रूरता आने लगती है।
आज के दौर में व्यस्त मां-बाप जब अपने बच्चे को समय नहीं दे पाते, तो इसकी एवज में वे उसको डिजिटल गैजेट्स थमा देते हैं। बच्चे इसके जरिए वीडियो गेम्स तक पहुंच जाते हैं। बच्चों के अकेलेपन का यह साथी धीरे-धीरे उनकी लत बन जाता है, बाद में मनोविकार। इंटरनेट के माध्यम से खेली जाने वाली ये गेम्स कई बार बच्चों को गैम्बलिंग के मैदान तक पहुंचा देती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का बच्चों की सक्रियता का जो मानक है, उसके हिसाब से 12 साल के बच्चे को रोजाना 12 से 15 हजार कदम चलना चाहिए। वीडियो गेम्स में बिजी रहने वाले बच्चे यह मानक पूरा नहीं करते। वीडियो गेम खेलने के दौरान कुछ खाते-पीते रहने की आदत के चलते इनका वजन भी बढ़ता है, जो भविष्य में गंभीर रोगों का कारण बन सकता इस खेल में बच्चे देर तक स्क्रीन पर नजर जमाए रखते हैं, जिससे पलक झपकाने की गति कम हो जाती है। यह आइज ड्राइनेस का कारण बनता है, जिससे आंख में लाली, चुभन और सिरदर्द की समस्या होती है। इस खेल में अधिक सक्रिय बच्चों में गलत पोस्चर और लम्बे समय तक फोन या टैब पकड़े रहने के कारण कलाई में खिंचाव, उंगलियों में झनझनाहट और कार्पल टनल सिंड्रोम नामक बीमारी पकड़ने का जोखिम रहता है।
वास्तव में बच्चे का मन-मस्तिष्क दर्पण जैसा होता है। वह जो देखता है वैसा ही चित्र उसके मन में अंकित हो जाता है। इसलिए वीडियो गेम का कंटेंट बच्चों की मानसिकता को बेहतर बनाने वाला होना चाहिए, मगर प्रायः ऐसा होता नहीं। बल्कि यह माध्यम व्यावसायिक कारणों से बहुत-से बच्चों को वीडियो गेम एडिक्ट बनाने में लगा है। फलस्वरूप वीडियो गेम्स बच्चों में नकारात्मकता बढ़ाने वाली बनती जा रही हैं।
ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि मासूम बच्चों को गैजेट्स की दुनिया से बाहर निकाल कर पारंपरिक खेलों और सृजनात्मक गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास करें।
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