महागौरी, दुर्गा अष्टमी कब है ? Maa Durga Ashtami Kab Hai हिंदू पंचांग की आठवीं तिथि को अष्टमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है: एक पूर्णिमा होने पर और दूसरी अमावस्या होने पर। पूर्णिमा के पीछे से आने वाली अष्टमी को कृष्ण पक्ष की अष्टमी और अमावस्या के उपरांत आने वाली अष्टमी को शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहते हैं।
यह दिन दुर्गा माता के आठवें स्वरूप मां महागौरी Maa Mahagauri को समर्पित है, जो देवों के देव महादेव की अर्धांगिनी के रूप में उनके साथ विराजमान रहती हैं. इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौरा होने के कारण इन्हें महागौरी Mahagauri Mata कहा जाता है । इसके अलावा उन्हें श्वेतांबरधरा Shwetambara नाम से भी जाना जाता है और वे अन्नपूर्णा Annapurna Devi का स्वरूप भी हैं ।
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दुर्गा अष्टमी कब है ? Maa Durga Ashtami Kab Hai
नवरात्रि की अष्टमी कब है- पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टममी तिथि 04 अप्रैल 2025 को रात 08 बजकर 12 मिनट पर प्रारंभ होगी और 05 अप्रैल 2025 को रात 07 बजकर 26 मिनट पर अष्टमी तिथि का समापन होगा। उदया तिथि में अष्टमी 05 अप्रैल 2025, शनिवार को मनाई जाएगी।
दुर्गा अष्टमी : महत्व
दुर्गा अष्टमी हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। यह दिन पूरी तरह से मां दुर्गा की आराधना के लिए समर्पित है। इस शुभ दिन पर, भक्त माँ दुर्गा के आठवें रूप, देवी महागौरी की पूजा करते हैं। किंवदंतियों के अनुसार, माँ दुर्गा के आठ रूप महागौरी माँ से प्रकट हुए और यहाँ आठ रूपों के नाम दिए गए हैं:
ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वराही, नरसिंहि, इंद्राणी, चामुडा
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, मां दुर्गा दिव्य स्त्री ऊर्जा और इस ब्रह्मांड की मां हैं। वह वही है जिसने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया है और वह शक्ति है जो हमारे भीतर निवास करती है। वह ब्रह्मांड की शक्ति, निर्माण, संरक्षण और विनाश है। माँ दुर्गा हिंदू योद्धा देवी हैं जो सभी राक्षसों को हराने और ब्रह्मांड में धार्मिकता स्थापित करने के लिए जन्म लेती हैं। उनकी दस भुजाएं हैं और उनके पास भक्तों को बुरी ऊर्जा, बुरी नजर और काले जादू से बचाने के लिए सभी दिव्य महाशक्तियां हैं।
ऐसा माना जाता है कि सभी राक्षसों का वध करने के बाद मां दुर्गा मां गौरी के रूप में प्रकट हुईं और देवताओं ने देवी की पूजा और प्रार्थना की। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है और लोग इस दिन को बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं। देवी ने इन दिनों के दौरान विभिन्न राक्षसों का वध किया लेकिन यहां कुछ राक्षसों के नाम हैं: चंड, मुंड, शुंभ, निशुंभ, रक्तबीज, महिषासुर।
कौन हैं माँ गौरी?
मां गौरी का रंग बर्फ के समान गोरा और अत्यंत सुंदर है और वह सफेद और गुलाबी रंग के वस्त्र और आभूषण पहनती हैं। वह शांति, पवित्रता और दयालु देवी का प्रतीक है। जो लोग देवी महागौरी की पूजा करते हैं, उन्हें सुख, समृद्धि, शांति और मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। वह डमरू धारण करती हैं और भक्तों को वरदान देने के रूप में धारण करती हैं।
महागौरी माता की कथा
महागौरी माता की एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा : महागौरी की उत्पत्ति की कहानी इस प्रकार है: शुंभ और निशुंभ राक्षसों को केवल पार्वती के कुंवारी, अविवाहित रूप द्वारा ही मारा जा सकता था । इसलिए, ब्रह्मा के कहने पर शिव ने बार-बार पार्वती को अकारण ही, बल्कि उपहासात्मक तरीके से "काली" कहा।
पार्वती इस चिढ़ाने से उत्तेजित हो गईं, इसलिए उन्होंने सुनहरा रंग पाने के लिए ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा ने उन्हें वरदान देने में अपनी असमर्थता बताई और इसके बजाय उनसे अपनी तपस्या बंद करने और शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध करने का अनुरोध किया। पार्वती सहमत हो गईं और हिमालय में गंगा नदी में स्नान करने चली गईं ।
पार्वती ने गंगा नदी में प्रवेश किया और जैसे ही उन्होंने स्नान किया, उनका काला त्वचा पूरी तरह से धुल गया और वे सफेद वस्त्र और परिधान पहने । फिर वह उन देवताओं के सामने प्रकट हुई जो शुंभ और निशुंभ के विनाश के लिए हिमालय पर उनसे प्रार्थना कर रहे थे, और चिंतित होकर उनसे पूछा कि वे किसकी पूजा कर रहे हैं। फिर उसने प्रतिबिंबित किया और अपने प्रश्न का उत्तर दिया और निष्कर्ष निकाला कि देवता शुंभ और निशुंभ राक्षसों से पराजित होने के बाद उससे प्रार्थना कर रहे थे। तब पार्वती ने देवताओं के लिए दया से काली हो गई और उन्हें कालिका कहा गया।
फिर वह चंडी ( चंद्रघंटा ) में बदल गई और राक्षस धूम्रलोचन को मार डाला। चंड और मुंड को देवी चामुंडा ने मार डाला जो चंडी की तीसरी आंख से प्रकट हुईं। फिर चंडी ने रक्तबीज और उसके क्लोनों को मार डाला, जबकि चामुंडा ने उनका खून पी लिया । पार्वती फिर से कौशिकी में बदल गईं और शुंभ और निशुंभ को मार डाला ।
वह बैल की पीठ पर सवार होकर कैलाश वापस घर चली गई, जहाँ महादेव उसका इंतज़ार कर रहे थे। दोनों एक बार फिर से मिल गए और अपने बेटों कार्तिकेय और गणेश के साथ खुशी-खुशी रहने लगे।
माँ गौरी देवी, शक्ति या माँ देवी हैं, जो कई रूपों में प्रकट होती हैं, जैसे दुर्गा, पार्वती, काली और अन्य। वह शुभ, तेजस्वी हैं और अच्छे लोगों की रक्षा करती हैं जबकि बुरे कर्म करने वालों को दंडित करती हैं। माँ गौरी आध्यात्मिक साधक को प्रबुद्ध करती हैं और मृत्यु के भय को दूर करती हैं। Source : wikipedia
महागौरी माता के प्रसिद्ध मंदिर
🔹 महागौरी मंदिर, वाराणसी
🔹 शक्ति पीठ, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
🔹 अष्टभुजा देवी मंदिर, विंध्याचल
🔹 त्रियुगी नारायण मंदिर, उत्तराखंड
महागौरी माता की पूजा विधि
महागौरी माता की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है। इस दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है।
✅ स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
✅ पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
✅ माता की प्रतिमा या चित्र पर सफेद वस्त्र अर्पित करें।
✅ देवी को सफेद फूल, अक्षत (चावल), रोली, कुमकुम और सिंदूर अर्पित करें।
✅ नारियल, फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएं।
✅ महागौरी माता के मंत्रों का जाप करें।
✅ आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
💡 विशेष:
✔ देवी को दूध से बनी मिठाइयाँ अर्पित करें।
✔ सफेद वस्त्र धारण करें और माता को भी सफेद वस्त्र अर्पित करें।
✔ कन्या पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
महागौरी माता के मंत्र
महागौरी माता की पूजा में निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है:
🔹 बीज मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्यै नमः।
🔹 महागौरी माता का ध्यान मंत्र:
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
🔹 महागौरी माता का स्तोत्र:
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायिनी।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी नमोऽस्तुते।।
इन मंत्रों का जाप करने से साधक को मानसिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
Durga Mantra दुर्गा मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
Om Devi Maha Gaurya Namah..!!
या
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
Om Sarva Mangal Mangalayayei Shive Sarvartha Sadhike,
Sharanyayi Triambike Gauri Narayani Namostute..!!
मां दुर्गा के कुछ मंत्र ये रहे:
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते
देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः
या
नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में खुशियां आती हैं. मां दुर्गा के कुछ और मंत्र ये रहे:
दुर्गा जी की आरती Maa Durga Aarti / Maa Durga Aarti Lyrics
ॐ जय अम्बे गौरी…
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
Shri Durga Chalisa
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सुख-समृद्धि दायक एवं मंगलकारी है 'दुर्गा अष्टमी पर कन्या पूजन'
दुर्गा अष्टमी को महा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह नवरात्रि का आठवां दिन है और देवी महागौरी को समर्पित है। इस शुभ दिन पर, भक्त देवी महागौरी की पूजा करते हैं और कन्या पूजन करते हैं। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है और अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
नवरात्रि में दुर्गा अष्टमी के पावन अवसर पर दुर्गा पूजन के साथ कन्या पूजन को भी हमारे शास्त्रों में कल्याणकारी माना गया है। नवरात्रि अनुष्ठान में कन्या पूजन Kanya Pujan को अनिवार्य माना गया है। कन्या पूजन के बिना यह अनुष्ठान अधूरा माना जाता है।
कन्या को शक्ति का साक्षात स्वरूप कहा गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की कलिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ की शांभवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा के समान मानी गई है।
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि दुर्गा पूजन से पहले कन्या पूजन Kanya Pujan अवश्य करना चाहिए। नवरात्रों की अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन Kanya Pujan के लिए सर्वोत्तम माना गया है। कन्याओं का पूजन Kanya Pujan करते समय सर्वप्रथम शुद्ध जल से उनके चरणों को धोना चाहिए। तिलक एवं कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने के उपरांत शुद्ध और सात्विक भोजन खिलाकर उन्हें उत्तम दान- दक्षिणा से सम्मानित करना चाहिए।
नवरात्रों में दुर्गा की उपासना के साथ-साथ कन्या पूजन Kanya Pujan को भी सर्वोपरि एवं कल्याणकारी माना गया है। नवरात्रों में देवी के नौ रूपों की विशेष रूप से उपासना होती है इसलिए कन्या पूजन में भी नौ कन्याओं को ही बुलाने की परम्परा है, जिन्हें माता दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है।
इससे जीवन में भय, विघ्नों एवं शत्रुओं का नाश - होता है तथा परिवार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में वर्णित प्रत्येक धार्मिक क्रिया में सदैव एक सूक्ष्म संदेश निहित होता है।
दुर्गा अष्टमी पर कन्या पूजन Kanya Pujan की परम्परा में भी परिवार, समाज और राष्ट्र का कल्याण निहित है। कन्या पूजन में नारी शक्ति के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव निहित है। आज की छोटी बालिका कल की मातृ शक्ति है।
मनुस्मृति में भी महर्षि मनु ने इसी विषय में कहा है कि -
अर्थात जिस परिवार, राष्ट्र, समाज में नारी शक्ति का सम्मान और पूजा होती है, वहां दिव्य शक्तियों का वास होता है और जिस परिवार में नारी शक्ति का तिरस्कार होता है, वहां के सारे क्रियाकलाप फल रहित हो जाते हैं।
इसलिए कन्या पूजन Kanya Pujan की इस धार्मिक प्रक्रिया का उद्देश्य मातृशक्ति एवं नारी शक्ति को परिवार, समाज तथा राष्ट्र में सर्वोपरि स्थान देना तथा उनका सम्मान करना है।
जिस परिवार में देवी स्वरूप नारियों का सम्मान होता है, वहां हर प्रकार की समृद्धि, उल्लास तथा आध्यात्मिक सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। हमारे धार्मिक शास्त्रों में नारी शक्ति की आराधना देवी दुर्गा की आराधना के समान ही मानी गई है।
कन्या पूजन Kanya Pujan का यह पावन अवसर सुख-समृद्धि प्राप्त करने के साथ-साथ नारी शक्ति को समाज में प्रतिष्ठित एवं गरिमापूर्ण स्थान देने का अवसर है।
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दुर्गा अष्टमी पर कन्या पूजन
यह दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत और स्त्री दैवीय शक्ति का प्रतीक है। दुर्गा अष्टमी पर मनाए जाने वाले मुख्य अनुष्ठानों में से एक कन्या पूजन (जिसे कुमारी पूजन भी कहा जाता है) है, जहां युवा लड़कियों को देवी के अवतार के रूप में पूजा जाता है। लोग 9 छोटी कन्याओं को आमंत्रित करते हैं और उन्हें महागौरी मां के प्रतीक के रूप में पूजा करते हैं। मां दुर्गा के भक्त उन्हें भोजन, दक्षिणा और विभिन्न उपहार चढ़ाते हैं।
Kanya Pujan : Image: Dheeraj Thakur's Pinterest
जानिये कन्या पूजन कैसे करना चाहिए?
1. सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें और घर की साफ-सफाई करें।
2. देवी के सामने दीया जलाएं, ताजा लाल गुलाब की माला, गुड़हल का फूल चढ़ाएं, सिन्दूर और अन्य श्रृंगार का सामान चढ़ाएं और दुर्गा सप्तशती पाठ करें।
3. कन्या पूजन के लिए हलवा पूरी और चना तैयार करें.
4. नारियल तोड़ें और कलश का जल सभी जगह छिड़कें।
5. मां दुर्गा को भोग प्रसाद चढ़ाएं।
6. 4 से 12 वर्ष की आयु की 9 लड़कियों को आमंत्रित करें।
7. उनके पैर धोएं, तिलक लगाएं और कलाई पर कलावा बांधें।
8. उन्हें नारियल के टुकड़े के साथ भोजन (सूजी का हलवा, पूरी और चना) अर्पित करें।
9. लोग उन्हें दक्षिणा और विभिन्न उपहार सामग्री देते हैं।
10. छोटी कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें।
11. भक्तों को जरूरतमंद और गरीब कन्याओं को भोजन, फल और कपड़े का दान करना चाहिए।
कन्या पूजन से देवी महागौरी प्रसन्न होती हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
महागौरी माता की पूजा से साधक को सौंदर्य, सुख, ऐश्वर्य और शांति प्राप्त होती है। नवरात्रि में विशेष रूप से देवी की आराधना करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार होता है।
यदि आप भी अपनी मनोकामनाएं पूरी करना चाहते हैं तो महागौरी माता की उपासना करें और कन्या पूजन अवश्य करें।
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