हिंदू धर्म में देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप को माता कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के सातवें दिन इनकी पूजा की जाती है। कालरात्रि माता का स्वरूप अत्यंत भयानक और रौद्र है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए परम कल्याणकारी हैं। इनकी उपासना से सभी प्रकार के भय, नकारात्मक शक्तियाँ और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। माता कालरात्रि महाकाली का ही एक रूप हैं, जो अज्ञानता को दूर करके ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती हैं।
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नवरात्रि का सातवां स्वरूप : कालरात्रि माता दुर्गा का भयावह रूप और उनकी महिमा
माता कालरात्रि का स्वरूप
माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक और रौद्र है। माता का रंग काजल के समान काला है।, बाल बिखरे होते हैं, उनके साँसों से अग्नि की ज्वालाएँ निकलती हैं और गले में नरमुंड की माला होती है। इनकी तीन आंखों से विद्युत जैसी चमक निकलती है और इनके चार हाथ होते हैं।
माता के हाथों में क्या होता है?
🔱 दाहिने हाथ (ऊपरी) - वरमुद्रा में होता है, जो भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करता है।
🔱 दाहिने हाथ (निचला) - अभय मुद्रा में होता है, जिससे भक्त निर्भय रहते हैं।
🔱 बाएँ हाथ (ऊपरी) - इसमें लोहे का अस्त्र होता है, जो बुरी शक्तियों का नाश करता है।
🔱 बाएँ हाथ (निचला) - इसमें अग्नि की मशाल होती है, जो अंधकार को दूर करती है।
🔱 माता कालरात्रि का वाहन गधा (गर्दभ) है, जो धैर्य और पराक्रम का प्रतीक है।
वे संपूर्ण ब्रह्मांड की विनाशकारी और सृजनकारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर है, लेकिन उनका यह रूप दुष्टों और राक्षसों के लिए भयावह है, जबकि उनके भक्तों के लिए यह स्वरूप अत्यंत शुभकारी और कल्याणकारी है।
माता का यह रूप बुरी शक्तियों के नाश के लिए है, लेकिन भक्तों को वे अभय, सुख, और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
माता कालरात्रि की कथा Story of Maa Kalratri
माता कालरात्रि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा अरुणासुर और रक्तबीज से जुड़ी हुई है।
1. रक्तबीज वध की कथा
एक बार, महिषासुर का सेनापति रक्तबीज नामक असुर अपने अत्याचारों से तीनों लोकों को परेशान कर रहा था। उसने ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया था कि जब भी उसकी एक बूँद रक्त गिरेगी, तब-तब उसी के समान नया रक्तबीज जन्म ले लेगा।
देवताओं ने माँ दुर्गा से प्रार्थना की, तब माता ने कालरात्रि रूप धारण किया। जब देवी ने रक्तबीज पर प्रहार किया, तो उसके रक्त की हर बूँद से एक नया रक्तबीज जन्म लेने लगा। यह देखकर माता ने अपनी भयंकर जिह्वा को फैला दिया और रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया। इस प्रकार, माता ने रक्तबीज का संहार कर देवताओं को संकट से मुक्त किया।
2. शुंभ-निशुंभ का संहार
एक अन्य कथा के अनुसार, जब शुंभ और निशुंभ नामक दैत्यों ने स्वर्ग और पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ा दिया, तब माता पार्वती ने कालरात्रि का रूप धारण करके उनका वध किया। उनके इस रूप ने असुरों के दिलों में भय उत्पन्न कर दिया, और देवताओं को उनकी खोई हुई शक्ति वापस मिली।
माता कालरात्रि की पूजा विधि Maa Kalratri ki Pooja Vidhi
1. पूजा का शुभ मुहूर्त
माता कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इस दिन भक्त रात के समय विशेष पूजा और साधना करते हैं, क्योंकि माता का यह रूप रात्रि में पूजनीय माना जाता है।
2. आवश्यक सामग्री
✔️ लाल और काले रंग के वस्त्र
✔️ गुड़, नारियल और पुष्प
✔️ गंध, रोली, अक्षत
✔️ दीपक, धूपबत्ती, कपूर
✔️ दुर्गा सप्तशती पाठ की पुस्तक
3. पूजा विधि
🔱 प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
🔱 माता की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएँ।
🔱 माता को लाल पुष्प, गुड़ और नारियल अर्पित करें।
🔱 कालरात्रि माता का मंत्र जपें:
🔱 दीपक जलाकर माता के समक्ष दुर्गा सप्तशती का पाठ करें
🔱 अंत में माता की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
माता कालरात्रि मंत्र और जाप विधि
बीज मंत्र
Maa Kalratri Mantra
ॐ क्रीं कालरात्र्यै नमः।
शक्तिशाली स्तोत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
माँ कालरात्रि की आरती
Kalratri Mata ki Aarti
कालरात्रि जय-जय-महाकाली ।
काल के मुह से बचाने वाली ॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।
महाचंडी तेरा अवतार ॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा ।
महाकाली है तेरा पसारा ॥
खडग खप्पर रखने वाली ।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।
सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥
सभी देवता सब नर-नारी ।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी ।
ना कोई गम ना संकट भारी ॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें ।
महाकाली माँ जिसे बचाबे ॥
तू भी भक्त प्रेम से कह ।
कालरात्रि माँ तेरी जय ॥
माता कालरात्रि की उपासना के लाभ
✅ सभी प्रकार के भय और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती हैं।
✅ ग्रह दोष, विशेषकर शनि और राहु-केतु के दुष्प्रभाव कम होते हैं।
✅ तंत्र-मंत्र, जादू-टोने से सुरक्षा प्राप्त होती है।
✅ जीवन में सकारात्मकता, सफलता और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
✅ आध्यात्मिक उन्नति और साधना में सफलता मिलती है।
माता कालरात्रि का स्वरूप जितना भयंकर है, उतना ही वह अपने भक्तों के लिए शुभकारी है। जो व्यक्ति सच्चे मन से उनकी उपासना करता है, उसे किसी भी नकारात्मक शक्ति, भय, या संकट का सामना नहीं करना पड़ता। नवरात्रि के सातवें दिन माता की साधना से व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविश्वास और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
"जय माँ कालरात्रि!"
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कृपया नोट करें : यह केवल सामान्य जानकारी प्रदान करने की सलाह शामिल है। यह किसी भी तरह से योग्य आध्यात्मिक या ज्योतिषीय राय का विकल्प नहीं है। किसी भी उपाय को अपनाने से पहले अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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