छोटे बच्चे भले ही अपने पैरेंट्स की हर बात मानते हों, परन्तु बड़े होते-होते यही बच्चे हमारे हर डिसीजन पर सवान्न उठाने लगते हैं। बढ़ते बच्चों से न बिगड़ने दें रिश्ते | बच्चों को आपके करीब लाएंगे ये आसान टिप्स | How To Make Unbreakable Bond With Your Child ?
ज्यादातर पैरेंट्स बच्चों के व्यवहार में आए इस बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते, जिसका असर उनके खूबसूरत रिश्ते पर पड़ने लगता है। उम्र के इस नाजुक दौर में पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ इस तरह डील करना चाहिए, कि बच्चों से रिश्ते बिगड़ें नहीं, बल्कि उनकी डोर मजबूत बनी रहे।
होने लगती हैं शिकायतें
टीनएज बच्चों के पैरेंट्स को यह शिकायत होती है कि उनका बच्चा अब पहले जैसा नहीं रहा। वह बात-बात पर गुस्सा हो जाता है, पलट कर जवाब देता है और अब उसके लिए उसके दोस्त ही सब कुछ हो गए हैं। जबकि बच्चों को इस बात की शिकायत रहती है कि उनके पेंरैंट्स न तो उन्हें समझते हैं और न ही उन पर विश्वास करते हैं।
बदलाव के कारण
12 से 18 साल की उम्र में बच्चों में बहुत से हार्मोनल एवं इमोशनल चेंज आने लगते हैं।
शारीरिक बदलाव
11 से 12 की उम्र तक पहुंचते- पहुंचते बच्चों के शरीर में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं, जो बहुत से बच्चों के लिए मुश्किलों भरे होते हैं, जिससे वे आसानी से नहीं निपट पाते। जिस गोल- मटोल बच्चे को 'क्यूट' कह कर सब प्यार करते थे, उसी बच्चे को 11-12 साल की उम्र में सब लोग मोटा कह कर • मजाक उड़ाने लगते हैं। ऐसे में बच्चे को समझ में नहीं आता कि अब उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है और उसके अंदर गुस्सा भरने लगता है।
सामाजिक बदलाव
इस उम्र में आते-आते बच्चों का खुद को देखने का नजरिया और लोगों का उनके प्रति नजरिया बदलने लगता है। उनकी सोशल इमेज बननी शुरू हो जाती है। वे अपनी पर्सनैलिटी डिवैल्प करने की कोशिश करते हैं।
मनोवैज्ञानिक बदलाव
इस अवस्था में बच्चों में बहुत से मनोवैज्ञानिक बदलाव भी आते हैं, इस उम्र में कुछ बच्चे अकेलापन एवं असुरक्षा महसूस करने लगते हैं।
कठिन दौर
इतने सारे बदलावों के कारण ही टीनएज को जिंदगी का सबसे कठिन दौर कहा जाता है। इस समय पैरेंट्स का रोल भी काफी हद तक बदल जाता है।
पैरेंट्स को रखना होगा ध्यान
पैरेंट्स के लिए बच्चा हमेशा बच्चा ही रहता है, वे हमेशा ही उसे सिखाने के मूड में रहते हैं। वे बच्चों को हमेशा 'ऐसे बैठो, ऐसे बात करो, ऐसे कपड़े मत पहनो या यहां मत जाओ' जैसी हिदायतें देते ही रहते हैं, परन्तु बढ़ते बच्चों को इतनी रोक-टोक पसंद नहीं आती क्योंकि वे माता-पिता के प्री- डिफाइंड दायरे में नहीं रहना चाहते। इस उम्र में वे अपने अनुभव खुद अर्जित करना चाहते हैं, परन्तु माता-पिता की ज्यादा रोक-टोक से बच्चे और माता- पिता के बीच संबंध बिगड़ने लगते हैं। बच्चों को सिखाना बुरा नहीं है, बस आपका तरीका सही होना चाहिए।
कम बोलें ज्यादा सुनें
इस उम्र के बच्चों को समझाने का तरीका अलग होता है क्योंकि डांट-डपट कर समझाने से बात बनने की बजाय बिगड़ सकती है। टीनएज बच्चों से बात करते हुए सुनना ज्यादा और बोलना कम चाहिए, उन्हें बिना मांगे राय मत दें और यदि कोई राय देनी भी हो तो लहजा बेहद नर्म रखें।
तारीफ करें
इस उम्र के बच्चे को भी अटैंशन चाहिए होती है, अंतः अच्छे काम के लिए उसकी तारीफ करें और यदि किसी काम में वह असफल हो गया है तो उसकी कोशिशों के लिए उसका हौसला बढ़ाएं। इससे उसका स्ट्रैस लैवल कम होगा और वह आपके करीब आएगा।
रिश्तों में खुलापन लाएं
पेंरैंट्स को अपने बच्चे के साथ ऐसा रिलेशन डिवैल्प करना चाहिए, जिससे वह बिना डरं या झिझक के अपनी हर तरह की बात उनके साथ शेयर कर सके । बच्चे को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देना चाहिए। यदि बच्चा कुछ गलत करे तो उसे रिजैक्ट न करें, बल्कि उससे ऐसा व्यवहार करें कि वह खुद आकर अपनी गलती स्वीकार कर ले।
रिएक्ट न करें
बच्चे की गलती पर तुरन्त रिएक्ट न करें क्योंकि यदि आप उस पर गुस्से से चिल्लाएंगी तो वह भी आप पर चिल्ला सकता है। इसलिए उसकी बात ध्यान से सुनें और फिर सोच-समझ कर बोलें या फैसला दें।
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