हनुमान जी की बल-बुद्धि की परीक्षा लेने पहुंची नागों की माता : आकाश में बिना विश्राम लिए हनुमान जी को लगातार उड़ते देखकर समुद्र ने यह सोचा कि हनुमान जी प्रभु श्री रामचंद्र जी का कार्य को पूरा करने के लिए जा रहे हैं। किसी प्रकार थोड़ी देर के लिए हनुमान जी विश्राम दिलाकर इनकी थकान दूर करनी चाहिए। समुद्र ने अपने जल के भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा, ‘‘ हे मैनाक! तुम कुछ देर के लिए ऊपर उठकर अपनी चोटी पर हनुमान जी को बिठाकर उनकी को थकान दूर करो।’’ समुद्र का आदेश पाकर मैनाक पर्वत पर्सनतापूर्वक हनुमान जी को विश्राम देने के लिए तुरंत उनके समीप आ गए और उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम करने के लिए निवेदन किया तो हनुमान जी बोले, ‘‘तुम्हारा कहना ठीक है मैनाक, लेकिन मैं अपने भगवान श्री राम चंद्र जी का कार्य पूर्ण किए बिना, मेरे लिए विश्राम करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।’’ ऐसा कह कर हनुमान जी मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम करके आगे चल दिए।
देवताओं ने हनुमान जी को लंका की ओर जाते देखकर सोचा कि ये रावण जैसे बलशाली राक्षस की नगरी में जा रहे हैं। अत: इससमय इनके बल-बुद्धि की विशेष परीक्षा लेना अति आवश्यक है। यह सोच कर देवताओं ने नागों की माता सुरसा से कहा, ‘‘देवी, तुम हनुमान जी के बल-बुद्धि की परीक्षा लो।’’
लंकिनी हनुमान संवाद : नागों की माता सुरसा देवताओं की बात सुनकर तुरंत हनुमान जी के सामने एक राक्षसी का रूप धारण कर जा पहुंची और हनुमान जी मार्ग रोकते हुए बोली, ‘‘वीर वानर ! आज तुमको अपना आहार बनाने के लिए मुझे देवताओं ने भेजा है।’’
नाम लंकिनी एक निसिचरी नागों की माता सुरसा की बातें सुनकर हनुमान जी ने कहा, ‘‘हे माता ! यह तुमसे मेरी प्रार्थना है। अभी इस समय तो मैं प्रभु श्री रामचंद्रजी के कार्य से जा रहा हूं उनका कार्य पूरा करके मुझे लौट आने दीजिये उसके बाद मैं अपने आप ही वापिस आकर तुम्हारे मुंह में आ जाऊंगा।’’
जस जस सुरसा बदन बढ़ावा : सुरसा से हनुमान जी ने बहुत प्रार्थना की लेकिन सुरसा ने उन्हें किसी प्रकार भी जाने नहीं दे रही थी, अंत में कुद्ध होकर हनुमान जी ने कहा, ‘‘अच्छा तो लो अब तुम मुझे अपना आहार बना ही लो।’’ हनुमान जी के ऐसा कहते ही सुरसा ने अपना मुंह जैसे ही सोलह योजन तक फैलाकर हनुमान जी ओर जैसे ही बढ़ी तुरंत हनुमान जी ने भी अपना आकार उसका दुगना अर्थात 32 योजन तक बढ़ा लिया। इस प्रकार सुरसा जैसे-जैसे वह अपने मुख का आकार बढ़ाती गई वैसे वैसे हनुमान जी भी अपने शरीर का आकार उसका दुगना करते चले गए अंत में सुरसा ने अपना मुंह 100 योजन तक चौड़ा फैलाकर कर लिया।
सुरसा नाम राक्षसी एका : तब तुरंत अत्यंत छोटा रूप धारण करके हनुमान जी उसके उस 100 योजन चौड़े मुंह में घुस कर फिर से तुरंत बाहर निकल आए। हनुमान जी आकाश में खड़े होकर सुरसा से कहा, ‘‘ हे माता ! देवताओं ने जिस कार्य के लिए तुम्हें भेजा था, वह अब पूरा हो गया है। अब मैं भगवान श्रीरामचंद्र जी के कार्य के लिए आगे बढ़ाता हूं। ’’
नाम लंकिनी एक निसिचरी : असली रूप में सुरसा ने प्रकट होकर हनुमान जी के सामने कहा, ‘‘हे महावीर हनुमान ! मुझे देवताओं ने यहां तुम्हारे बल-बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए भेजा हुआ था। तीनों लोकों में तुम्हारे बल-बुद्धि की समानता करने वाला कोई नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है तुम जल्द ही भगवान श्रीरामचंद्र जी के सारे कार्य पूर्ण करोगे।, ये मेरा आशीर्वाद है।
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