ऋष्यमूक पर्वत की एक बहुत ऊंची चोटी पर हनुमान जी, सुग्रीव आदि वानरों के साथ बैठे हुए थे। उसी समय सीता जी की खोज करते हुए लक्ष्मण जी के साथ भगवान श्री रामचंद्र जी ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुंचे। वानरों के राजा सुग्रीव ने ऊंची चोटी पर से उन लोगों को अपनी तरफ आते देख कर सोचा कि वे बालि के भेजे हुए दो योद्धा हैं जो की उसे मारने के लिए अपने हाथ में धनुष-बाण लिए उसकी तरफ चले आ रहे हैं और बहुत ही बलवान लग रहे है। सुग्रीव ने डर से घबराकर उसने हनुमान जी से कहा, ‘‘वह देखो, हनुमान, दो बहुत ही बलवान हाथ में धनुष-बाण लिए मनुष्य हमारे इधर ही बढ़े चले आ रहे हैं। लगता है इन्हें बालि ने मुझे मारने के लिए ही भेजा है। और लग रहा है ये मुझे ही चारों ओर खोज रहे हैं। तुम तुरंत एक तपस्वी ब्राह्मण का रूप धारण कर इन दोनों योद्धाओं के पास जाओ और पता लगाओ कि ये हैं कौन और यहां किस लिए घूम रहे हैं। भय की अगर कोई बात जान पड़े तो मुझे वहीं से ही संकेत कर देना तो मैं तुरंत इस पर्वत को छोड़कर कहीं और भाग जाऊंगा।
मन को अच्छी लगने वाली हनुमान जी की बातें सुनकर भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपना और अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी का परिचय देते हुए कहा कि राक्षसों ने सीता जी का हरण कर लिया है। हम उन्हें ही खोजते हुए चारों तरफ घूम रहे हैं। हे ब्राह्मण देव, ‘‘मेरा नाम राम है तथा मेरे छोटे भाई का नाम लक्ष्मण है। हम लोग अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र हैं। अब ब्राह्मण देवता आप अपना परिचय दीजिए।’’ हनुमान जी ने भगवान श्री रामचंद्र जी की बातें सुनकर जान लिया कि ये तो स्वयं भगवान ही हैं। बस फिर क्या था तुरंत ही हनुमान जी उनके चरणों पर गिर पड़े इसके बाद भगवान श्री राम ने उठाकर उन्हें गले से लगा लिया।
हनुमान जी ने कहा, ‘‘प्रभु ! आप तो सारे संसार के स्वामी हैं और मुझसे मेरा परिचय पूछते हैं ? मेरा जन्म आपके चरणों की सेवा करने के लिए ही हुआ है। अब मुझे आप अपने परम पवित्र चरणों में स्थान दीजिए।’’
प्रसन्न होकर भगवान श्री राम ने अपना हाथ उनके सर पर रख दिया। हनुमान जी ने प्रसन्नता और उत्साह से भरकर कंधे पर दोनों भाइयों को उठाकर बैठा लिया।
हनुमान जी से सुग्रीव ने कहा था कि मुझे वहीं से संकेत करना अगर भय की कोई बात होगी तो । हनुमान जी ने कंधे पर राम-लक्ष्मण को बिठाया, यही सुग्रीव के लिए संकेत था कि उन्हें इनसे कोई भय नहीं है। राम-लक्ष्मण को कंधे पर बिठाए हुए ही वह सुग्रीव के पास आए और उनसे सुग्रीव का उनका परिचय कराया।
सुग्रीव के दुख और कष्ट की सारी बातें भगवान श्री राम ने जानीं और उन्हें अपना मित्र बनाया और दुष्ट बालि को मार कर किष्किन्धा का राजा सुग्रीव को बना दिया। इस प्रकार सुग्रीव का सारा दुख हनुमान जी की सहायता से दूर हो गया।
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