तब माता सीता जी के चरणों में श्री हनुमान जी Hanuman ji ने प्रणाम किया और कहा, "माता! मैं करुणा निधान श्री राम जी का दूत हूं। मैं उन्ही की शपथ खाकर सत्य कहता हूं कि यह मुद्रिका श्री राम जी से मैं ही लाया हूं । श्री राम ने आपको यह मुद्रिका पहचान के लिए दी है । मैं श्री राम जी का दास, सुग्रीव का मंत्री तथा पवनदेव का पुत्र हनुमान हूं।"
यह सुनकर सीता जी ने कहा, “तुम कहते हो कि मैं श्रीराम जी का दास हूं, तो ये बताओ भला वानर और मनुष्यों में मित्रता कैसे हो सकती है?"फिर हनुमान जी ने जैसे श्री राम के साथ उनका मिलान हुआ था सम्पूर्ण कथा माता सीता जी को विस्तारपूर्वक से सुनाई।
हनुमान जी के प्रेमयुक्त वचन सुनकर माता सीता जी के मन में हनुमान जी Hanuman ji के प्रति विश्वास उत्पन्न हो गया । माता सीता ने समझ लिया कि ये श्री रघुनाथ जी का दास ही है और फिर भगवान का अनन्य सेवक जानकर माता सीता जी के मन में श्री हनुमान के प्रति गाढ़ी प्रीति उत्पन्न हो गई और फिर उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु छलकने लगे तथा उनका शरीर पुलकित हो गया ।
माता सीता हनुमान जी Hanuman ji से कहने लगीं, " हे कपिवर! तुम मेरे प्राणदाता हो। हे तात! मैं तुम्हारे इस ऋण से उऋण नहीं हो सकती । अब तुम श्री रघुनाथ जी तथा उनके छोटे भाई लक्ष्मण का भी समाचार सुनाओ । क्या कभी वे भी मुझ अबला का स्मरण करते हैं? क्या कभी श्री रघुनाथ जी के कोमल शरीर को देखकर मेरी आंखें भी तृप्त हो सकेंगी?" ऐसा कहते- कहते माता सीता के नेत्र भर गए और आवाज भर्रा गई ।.
किसी तरह से माता सीता अपने- आपको संभाल कर कहा, "हे हनुमान! मुझे दुख है कि मेरे प्राणनाथ ने सर्वसमर्थ होने पर भी मुझे भुला दिया । क्या इससे श्री रघुनाथ जी निष्ठुरता नहीं सिद्ध होती?" अब, विरह से व्याकुल देखकर जानकी जी से हनुमान जी Hanuman ji ने कहा,"हे माता! कृपा के धाम श्री रघुनाथ जी अपने छोटे भाई लक्ष्मण सहित सकुशल से हैं परन्तु आपके वियोग के दुख से श्री रघुनाथ जी सदैव ही दुखी रहते हैं । आपके प्रति प्रभु श्रीराम के हृदय में आपसे दूना प्रेम है ।" ऐसा कहते- कहते श्री हनुमान जी का कंठ गद्गद् हो गया और उनके आंखों से प्रेमाश्रु छलकने लगे ।
फिर धैर्य धारण कर हनुमान जी Hanuman ji बोले," मां! भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि मन का दुख कह डालने से दुःख कुछ घट जाता है पर कहूं किससे? यह दुख कोई जानता ही नहीं है । हमारे प्रेम का रहस्य सिर्फ मेरा मन ही जानता है । वह भी इस समय मुझे छोड़ कर तुम्हारे पास ही रहता है। मेरे प्रेम का रहस्य इतने में ही बस समझ लो।"
श्री जानकी जी इतना सुनते ही प्रभु के प्रेम में ऐसी मग्न हो गईं कि उन्हें अपने शरीर की सुधि भी न रही। श्री हनुमान जी ने कहा," माता! हृदय में धैर्य धारण करें। श्री रघुनाथ जी के बाणों द्वारा अब लंका के राक्षसों को भस्म हुआ ही समझें ।'
माता सीता जी ने पूछा," हनुमान! राक्षसों की इतनी बलवान सेना से तुम्हारे जैसे छोटे-2 बंदर कैसे लड़ सकेंगे?" इतना सुनते ही हनुमान जी ने अपने शरीर का विशाल रूप धारण कर लिया अब वृद्धि और बल में निपुण देख कर माता सीता जी ने हनुमान जी Hanuman ji को अमर , अजर और श्रीराम जी का परम भक्त होने का आशीर्वाद दिया ।
लेखक
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
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