
शनिदेव ने हनुमान जी Hanuman Ji की बात मानकर तुरंत लंका की ओर देखा। उनकी दृष्टि पड़ते ही रावण की वह सोने की चमचमाती हुई लंकापुरी एकदम काली और कुरूप हो गई। अपनी प्यारी लंका की यह दशा देख कर रावण जोर-जोर से विलाप करने लगा।
लंका नगरी को पूरी तरह से जला कर हनुमान जी अपनी पूंछ की आग बुझाने और थकान मिटाने के लिए समुद्र में कूद पड़े। वहां पूंछ की आग बुझा कर और थकान मिटाकर वह माता सीता जी के चरणों में हाथ जोड़कर पुनः खड़े हो गए। उन्होंने कहा, "माता, अब मैं आपका समाचार प्रभु श्री रामचंद्र जी को देने के लिए उनके पास वापस जाना चाहता हूं। लंका का बहुत-सा गुप्त भेद मैंने जान लिया है। अब मेरे वहां पहुंचते ही. प्रभु श्री रामचंद्र जी सारे वानरों, भालुओं के साथ लंका पर चढ़ाई करेंगे। वह सारे राक्षसों सहित रावण का वध करके आपको यहां से ले चलेंगे।"
"हे जननी! मैं स्वयं आपको इन राक्षसों के चंगुल से छुड़ाकर ले जाने में समर्थ हूं लेकिन इससे भगवान श्री राम जी की मर्यादा की हानि होगी। लोग सोचने और कहने लगेंगे कि भगवान राम ने स्वयं अपने हाथों सीता जी का उद्धार नहीं किया। माता ! अब आप शोक न करें। अति शीघ्र ही आपको लक्ष्मण जी सहित परम प्रभु श्री राम चंद्र जी के दर्शन प्राप्त होंगे। हां, आपसे मेरा एक निवेदन है कि जैसे प्रभु श्री रामचंद्र जी ने मुझे पहचान के रूप में आपको देने के लिए अपनी मुद्रिका प्रदान की थी, उसी प्रकार आप भी मुझे पहचान के लिए कोई वस्तु देने की कृपा करें।"
हनुमान जी की बातें सुनकर माता सीता जी ने अपना आभूषण 'चूड़ामणि' उन्हें प्रदान करते हुए कहा, "पुत्र हनुमान! यह चूड़ामणि प्रभु के चरणों में रख कर उनसे कहना कि यदि अब उनके यहां आगमन में एक मास से अधिक विलम्ब हुआ तो मैं स्वयं को जीवित न रख सकूंगी।"
यह कह कर माता सीता जी भगवान श्री रामचंद्र जी की याद में करुण विलाप करने लगीं।
हनुमान जी ने बहुत प्रकार से उन्हें समझाया और फिर उनसे विदा लेकर वह अत्यंत शीघ्रता से भगवान श्री राम चंद्र जी के पास पहुंचने के लिए आकाश की ओर उछल पड़े।
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
सीता ने हनुमान को कौन सा आभूषण दिया था ?
सीता ने हनुमान जी को चूड़ामणि आभूषण दिया था. चूड़ामणि को पहचान के तौर पर दिया गया था. सीता ने हनुमान जी को चूड़ामणि इसलिए दी थी ताकि वे राम को जाकर दिखा सकें कि उनकी भेंट सीता जी से हो चुकी है.
हनुमान सीता को क्या देते हैं ?
हनुमान सीता के पास गए, जिन्होंने अपनी पहचान बताई और वन में रावण द्वारा उनके अपहरण की घटना सुनाई। हनुमान ने तब खुद को राम के दूत के रूप में प्रकट किया और सीता के डर को दूर करते हुए, जिन्होंने हनुमान को छद्मवेश में रावण होने का संदेह किया था, सीता को उनका आत्मविश्वास मजबूत करने के लिए राम द्वारा भेजी गई एक अंगूठी दी।
सीता के पास आकर हनुमान ने क्या कहा था ?
उन्होंने सीता माता के समक्ष लघु रूप में उपस्थित होकर नमन किया और श्रीराम की अंगूठी रखी और कहा- 'हे माता जानकी, मैं श्रीरामजी का दूत हूं। करुणानिधान की सच्ची शपथ करता हूं, यह अंगूठी मैं ही लाया हूं। श्रीरामजी ने मुझे आपके लिए यह सहिदानी (निशानी या पहचान) दी है।
सीता जी ने हनुमान जी को राम के लिए क्या निशानी भेजी थी?
जब हनुमान जी लंका में सीता माता से मिले, तब उन्होंने उन्हें राम जी का संदेश दिया और यह चूड़ी भी दिखाई। इस चूड़ी को देखकर ही सीता माता को विश्वास हुआ कि हनुमान जी वास्तव में राम जी के दूत हैं। यह चूड़ी सीता माता की पवित्रता और राम जी के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है।
माता सीता के चूड़ामणि का रहस्य
चूड़ामणि स्त्रियों के पहनने का एक आभूषण होता है मंथन से चौदह रत्न निकले, उसी समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ – १– रत्नाकर नन्दिनी २– महालक्ष्मी रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया !
हनुमान सीता को क्या देते हैं?
प्रभु श्री हनुमान जी ने माता सीता को अपनी पहचान करवाने के लिए प्रभु श्री राम द्वारा दी गयी चूड़ामणि भेंट की थी। हनुमान जी ने सीता जी को अशोक वाटिका में किस वृक्ष के नीचे बैठा देखा था? मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा । जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा ॥
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