क्षमाशील बनें
Short Stories : महाभारत युद्ध के अंतिम दौर में जब कौरव पराजित होने लगे तो उनके खेमे में हताशा बढ़ने लगी। अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु से क्षुब्ध उनके बेटे अश्वत्थामा ने रात में पांडवों के शिविर में घुसकर वहां सो रहे द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार डाला। पांडवों में हाहाकार मच गया। द्रौपदी शोक से बेसुध हो गईं।
पांडवों ने इसका बदला लेने का निश्चय किया। अर्जुन ने किसी तरह अश्वत्थामा को पकड़ा और द्रौपदी के सामने ले आए। उन्होंने द्रौपदी से कहा कि वह जो सजा उचित समझें, उसे दें। द्रौपदी ने अश्वत्थामा को देखा। उनका क्रोध अचानक शांत हो गया। अचानक उनके हृदय में करूणा का सागर उमड़ आया।
द्रौपदी ने अर्जुन से कहा-इन्हें छोड़ दीजिए। मैं गुरु पुत्र के प्राण नहीं चाहती।
मेरे पांचों पुत्रों के मरने से मैं आज जिस तरह शोक के सागर में डूबी हुई हूं, यदि इन्हें मार दिया जाए तो इनकी माता यानी आपकी गुरु पत्नी भी मेरी ही तरह पुत्र शोक में डूब जाएंगी। मेरे पुत्र तो लौटकर आएंगे नहीं। फिर प्रतिशोध की भावना से मैं किसी दूसरी माता को अपनी ही भांति दुखी बना दूं, मेरा मन ऐसा नहीं चाहता। एक मां के रूप में मैं ऐसा नहीं कर सकती। एक मां ही दूसरी मां की ममता को समझ सकती है। मैं इन्हें क्षमा करती हूं। आप लोग भी क्षमा कर दें। पांडवों ने गुरुपुत्र अश्वत्थामा को छोड़ दिया। अश्वत्थामा - लज्जित होकर वहां से चले गए।
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