धनतेरस मात्र धन की कामना से मां लक्ष्मी को मनाने का त्यौहार नहीं है, बल्कि रोग्य के लिए भगवान धन्वन्तरि की पूजा करने का भी अवसर है। गृहस्थी की सुख-समृद्धि व विकास के लिए सोना, चांदी, पीतल खरीदना शुभ माना जाता है। साथ ही बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है।
चांदी-सोने के सामान, तिजोरी, धन रखने की जगहों की सफाई भी इसी दिन की जाती है। सफाई के बाद अक्षत, रोली से स्वास्तिक व शुभ लाभ बनाया जाता है। लक्ष्मी पूजा के बाद सफेद वस्तु का भोग लगाया जाता है। परिवार के आरोग्य के लिए यम का पूजन भी किया जाता है। रात के समय तेल का चौमुखा दीपक, जो चारों ओर रोशनी दे, जलाते हैं। पुराना तांबे का पैसा व कौड़ी, जिसमें छेद हो, को जलते दीपक में रखने का विधान है।
यमराज की कथा
इस दिन कथा सुनने का भी विधान है, जो इस प्रकार है - एक बार यमराज ने दूतों से प्रश्न किया कि क्या किसी प्राणी के प्राण हरण करते समय आपका हृदय द्रवित हुआ है ? तुम्हें उस प्राणी पर दया आई है ?
यमराज के बहुत आग्रह करने पर दूतों ने बताया कि एक बार हंस नामक राजा जंगल में शिकार करने गया और रास्ता भटक जाने के कारण दूसरे राज्य की सीमा में जा पहुंचा। उस राज्य में हेमा नामक राजा का राज था। राजा हेमा ने राजा हंस का भरपूर स्वागत किया।
संयोगवश उसी दिन राजा हेमा की महारानी ने एक रूपवान पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह खुशी मातम में बदल गई, जब ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी कि विवाह के 4 दिन बाद बालक की मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने अपने पुत्र को यमुना नदी के तट पर एक ब्रह्मचारी के रूप में अपने बालक का पालन-पोषण करने का आदेश दिया ताकि वह स्त्रियों से व रतिभाव से दूर ही रहे लेकिन विधि का विधान कौन टाल सकता है ?
एक दिन राजा हंस की पुत्री घूमते हुए यमुना तट पर आ निकली। वह उस ब्रह्मचारी पर आसक्त हो गई और दोनों ने वहीं गंधर्व विवाह कर लिया लेकिन जैसा कि तय था, विवाह के 4 दिन पश्चात उस ब्रह्मचारी की मृत्यु हो गई।
यमदूतों ने कहा कि उस दिन राजकुमार का प्राण हरण करने में उन्हें अथाह कष्ट हुआ। राजकुमारी का करुण विलाप सुनकर उनका हृदय कांप उठा। उनके आंसू भी नहीं थम सके थे। यह सुनकर यमराज भी द्रवित हो गए और बोले कि विधि के विधान का पालन तो होकर ही रहेगा, पर तभी एक दूत ने सवाल किया कि अकाल मृत्यु से बचने का उपाय क्या है ?
तब यमराज ने उपाय बताया... धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को भली-भांती करने पर अकाल मृत्यु से छुटकारा मिल सकता है। इसलिए धनतेरस के दिन यमराज व भगवान धन्वन्तरि की पूजा करने व दीपदान करने का विधान है जो मनुष्यों को अकाल मृत्यु से बचाता है। इसीलिए कहा गया है कि सबसे बड़ा सुख निरोगी काया है।
भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति
मान्यता के अनुसार भगवान धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार हैं जो स्वास्थ्य और आरोग्य के देवता हैं। भारतवर्ष में आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भगवान धन्वंतरि का विशेष महत्व है। आयुर्वेद में इनकी पूजा उपचार से पहले की जाती है ताकि रोग नाश और स्वास्थ्य प्राप्ति में सफलता मिले।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था।
देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब 14 रत्नों के साथ भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनके हाथों में अमृत-कलश था, जिससे अमरत्व की प्राप्ति होती है।
तब उनके साथ आयुर्वेद का दिव्य ज्ञान भी इस संसार में आया जिसका प्रयोजन है स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा व रोगी के रोग का शमन करना।
भगवान धन्वंतरि का स्वरूप
भगवान धन्वंतरि का स्वरूप अत्यंत दिव्य और आकर्षक बताया गया है, जिनकी चार भुजाएं हैं। दोनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किए हुए हैं, जबकि दो अन्य भुजाओं में से एक में जलौका और औषध तथा दूसरे में अमृत कलश लिए हुए हैं।
धन्वंतरि मंत्र :
इस मंत्र का जाप स्वास्थ्य और रोगों से मुक्ति के लिए - करना चाहिए :
नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलश
हस्ताय सर्वामय विनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे नमः ॥
अर्थात, परम भगवान को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वन्तरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्वभय नाशक हैं, सर्वरोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वन्तरि को नमन है।
धार्मिक अनुष्ठान
उनकी पूजा करने से स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है, इसलिए इस दिन बर्तन और सोने-चांदी की वस्तएं खरीदना शुभ माना जाता है।
धनतेरस 2025 कब है? Dhanteras Kab Hai?
18 अक्टूबर, शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि का आरंभ दोपहर में 12 बजकर 20 मिनट से होगा। वहीं, 19 अक्टूबर, रविवार को दोपहर के 1 बजकर 52 मिनट पर त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी। शास्त्रों के अनुसार, जिस दिन प्रदोष काल में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि लगती है। उसी दिन धनतेरस का त्योहार मनाने की परंपरा है। ऐसे में 18 अक्टूबर के दिन यह त्योहार मनाया जाएगा। वहीं, 19 अक्टूबर को भी त्रयोदशी तिथि व्याप्त हो रही है। ऐसे में जो लोग 18 तारीख को खरीदारी न कर पाएं वे 19 तारीख को दोपहर के 1 बजकर 52 मिनट पर भी खरीदारी कर सकते हैं। यानी इस बार आप धनतेरस 18 और 19 अक्टूबर दो दिन मना सकते हैं।
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