शरीर की कीमत
जीवन का मूल्य एक आर्थिक मूल्य है जिसका उपयोग मृत्यु से बचने के लाभ को मापने के लिए किया जाता है। इसे जीवन की लागत, मृत्यु को रोकने का मूल्य, मृत्यु को रोकने की निहित लागत और सांख्यिकीय जीवन के मूल्य के रूप में भी जाना जाता है।
एक संत ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। एक भिखारी ने अपनी गरीबी का हवाला देते हुए उनसे भीख मांगी। पहले संत ने कुछ जवाब नहीं दिया, फिर दूसरी बार भिखारी ने कहा, "मैं बहुत गरीब हूं, मेरे पास कुछ भी नहीं है, मुझ पर दया करो। कुछ मदद करो।" उसके दोबारा भीख मांगने पर संत की आंखें भर आईं। तपाक से सहयात्री ने पूछा, "श्रीमान क्या बात है ? आपकी आंखों में आंसू क्यों ?" जवाब देते हुए संत ने कहा, "इस अमीर आदमी का दयनीय जीवन जीना और इस तरह भीख मांगना मुझे कष्ट दे रहा है। इसी कारण मेरी आंखों में आंसू आ गए।" इस पर सहयात्री ने कहा, "अरे, यह तो भिखमंगा है। आप इसे अमीर कैसे कह रहे हैं ?" संत ने बड़े ही विनम्र भाव से भिखारी से पूछा, "क्या आप मुझे अपना बायां हाथ एक लाख रुपए में बेचेंगे ? मैं खरीदना चाहता हूं।" भिखारी ने अपना हाथ पीछे की ओर लिया और नहीं में सिर हिलाया।" क्या दायां हाथ एक लाख में दोगे?" भिखारी ने कहा, "नहीं!"" क्या बायां पांव एक लाख में दोगे?" "नहीं!" "दूसरा पांव दो लाख में दोगे ?"
"नहीं।" भिखारी ने कहा, "नहीं, ये बेचने के लिए नहीं वित हैं।" "क्या अपनी एक आंख दो लाख में दोगे ?" यहां भी उत्तर न ही था।
इस पर संत बोले, "लाखों की इस संपत्ति के होते हुए भी तुम भीख मांग रहे हो। क्या अब भी तुम समझते हो कि तुम गरीब हो ? क्या सचमुच तुम्हारे पास कुछ नहीं है ?
भीख मांगना गुनाह है।" अब भिखारी चुप था। कुछ पल गुमसुम रहने के बाद उसने संत को प्रणाम करते हुए कहा, "महाराज, आपने मेरी आंखें खोल दीं। अब जिंदगी में कभी भीख नहीं मांगूंगा।"
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