आज अधिकतर युवा सपनों की तलाश में घर छोड़कर दूर निकल जाते हैं। साल में एक या दो बार ही घर जाना होता है - वह भी एक मेहमान की तरह। घर की चौखट लांघते ही दिल में यह सवाल उठता है, "मैं फिर कब लौटूंगा?"
कई लोगों को लगता है कि हर महीने कुछ पैसे घर भेज देने से उनका फर्ज पूरा हो गया। लेकिन नहीं। माता-पिता को हमारे पैसों की नहीं, हमारे समय और हमारे साथ की जरूरत है। उन्होंने अपनी जिंदगी में वह सब कुछ कर दिखाया, जिससे हमें बेहतर भविष्य मिल सके । अब उनकी आंखें बस हमें देखना चाहती हैं, हमें सुनना चाहती हैं।
दुख की बात है कि आज के समाज में लोग जमीन, संपत्ति और दौलत के लालच में अपने ही माता-पिता से झगड़ते हैं, उन्हें उपेक्षित करते हैं। मंदिरों में तो 56 भोग चढ़ते हैं, लेकिन घर पर मां-बाप को इज्जत के साथ दो वक्त का खाना नहीं मिलता।
याद रखिए - अगर आप अपने माता-पिता के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं, तो आप दुनिया के सबसे सौभाग्यशाली इंसान हैं क्योंकि वह सकून, जो उनके साथ बैठकर बात करने, हंसने या शाम को एक साथ खाना खाने में है, वह किसी भी बड़े ओहदे या मोटी सैलरी में नहीं है।
हम जिन वर्षों को 'गोल्डन ईयर्स' कहते हैं - वही असल में हमें मौका देते हैं, माता-पिता के साथ फिर से बच्चा बनने का। उनकी कहानियां सुनने, उनके कंधों पर सिर रखने, और उन्हें वह प्यार देने का, जो उन्होंने बिना शर्त, बिना थके हमें बचपन में दिया था। जिंदगी की दौड़ में हम 'रोटी, कपड़ा और मकान' तो जुटा लेते हैं, मगर जब होश आता है, तब तक हमारे पास केवल 'काश... ' रह जाता है।
सोचिए हमने पैसा क्यों कमाना शुरू किया था ? हम सफल क्यों होना चाहते थे ? ताकि अपने माता-पिता को गर्व महसूस करा सकें, उनके साथ जीवन की खुशियां बांट सकें पर अफसोस, हम ही सबसे जरूरी चीज - वक्त देना भूल गए।
मैं भी आज आप सबकी तरह सपनों की तलाश में घर से बाहर निकली हूं लेकिन मेरे हर फैसले में मेरे पापा की रजा होती है। हम रोज बात करते हैं, क्या हो रहा है मेरी और उनकी जिंदगी में, हम दोनों को पता होता है। उन्हें मेरे पैसों की जरूरत नहीं, बस मेरे वक्त की जरूरत है। मैं उनकी इज्जत में कभी कमी नहीं आने देती, क्योंकि मुझे पता है-उनका आत्मसम्मान ही मेरा असली गौरव है।
आज मैं सबसे ज्यादा सुकून तब महसूस करती हूं जब हम परिवार में सब मिलकर एक साथ खाना खाते हैं, बातें करते हैं, साथ हंसते हैं और कहीं घूमने जाते हैं। यही पल मेरे लिए असली खुशियां हैं। अगर आप अपने माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाएं, उनके नाम से दान करें, उनके पसंदीदा कामों में हिस्सा लें, और हर छोटे-बड़े फैसले में उनसे सलाह लें, तो यकीन मानिए, जो आत्मिक संतोष आप कॉर्पोरेट वर्ल्ड में ढूंढते फिर रहे हैं, वह आपके घर की चौखट पर आपका इंतजार कर रहा है।
माता-पिता की सेवा करना कोई बोझ नहीं - वे हमारे जीवन की सबसे पवित्र और जरूरी साधना हैं। उन्हें सिर्फ 'जिम्मेदारी' मानना छोड़िए, उन्हें अपने जीवन की सबसे कीमती पूंजी मानिए। यही सच्चा धर्म है, यही सच्चा विकास है।
और यही सबसे बड़ा संदेश है जो हर संतान को अपने माता-पिता को देना चाहिए कि - Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions, Senior Citizens Problems and Solutions,
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