भारत की सनातन परम्परा में जीवन को प्रकृति की लय के अनुरूप जीने की प्रेरणा दी गई है। आयुर्वेद, योग और आध्यात्मिक दर्शनों में 'सम्यक दिनचर्या' को जीवन की नींव माना गया है।
इसी संदर्भ में 'बजा महर्त का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समय सूर्योदय से लगभग 96 मिनट प्रायः प्रातः 4.00 से 5.30 बजे के बीच) आता है। इसको आयुर्वेद, योगशास्त्र और आध्यात्मिक ग्रंथों में देवकाल, चैतन्य काल और सर्वश्रेष्ठ साधना काल कहा गया है।
आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान अब यह प्रमाणित कर रहे हैं कि मानव की जैविक घड़ी यदि सूर्य की गति के अनुसार संचालित हो तो व्यक्ति न केवल दीर्घायु होता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता, मानसिक स्पष्टता और जीवन संतोष में भी अत्यधिक वृद्धि होती है।
चरक संहिता में उल्लेख मिलता है 'ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत स्वस्थो रक्षार्थमायुषः । अर्थात : स्वस्थ व्यक्ति को अपनी आयु और स्वास्थ्य की रक्षा हेतु ब्रह्म मुहूर्त में अवश्य उठना चाहिए।
मानसिक ऊर्जा और स्पष्टता का स्त्रोत :
प्रातःकाल का समय वातावरण में विशेष प्रकार की प्राण ऊर्जा से भरपूर होता है। यह ऊर्जा व्यक्ति को मानसिक रूप से स्थिर, संतुलित और रचनात्मक बनाती है। 'फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी' (2014) में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रातः ध्यान और सकारात्मक चिंतन करने से मस्तिष्क में ' थीटा ब्रेन वेव्स' सक्रिय होती हैं, जो स्मृति रचनात्मकता और भावनात्मक स्थिरता को बढ़ाती हैं। इस समय किया गया अध्ययत या स्वाध्याय बहुत लम्बे समय तक स्मृति में बना रहता है।
शारीरिक स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा प्रणाली में वृद्धि :
ब्रह्म मुहूर्त में उठने से शरीर की जैविक घड़ी सूर्य की लय के साथ संतुलित हो जाती है जो शरीर के महत्वपूर्ण हार्मोन जैसे 'मेलाटोनिन' (नोंद का हार्मोन) और 'कोर्टिसोल' (स्फूर्ति व तनाव नियंत्रण का हार्मोन) के स्तर को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करता है। 'नेचर रिव्यू न्यूरोसाइंस' (2017) के अनुसार, जो व्यक्ति सूरज के साथ उठते और सोले हैं. उनकी कोशिकीय मुरग्मत, पाचन क्रिया और हार्मोन संतुलन बेहतर होता है। विशेष रूप से वृद्धावस्था में शरीर की प्रतिरक्षा कमजोर होने पर यह प्रात-कालीन दिनचर्या चमत्कारी लाभ देती है।
वृद्धावस्था में प्रानसिक और भावनात्मक लाभ :
आयुवेद कहता है कि वृद्धावस्था में वात दोष का प्रकोप बढ़ता है। यदि इस अवस्था में व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में जागकर योग, प्राणायाम और ध्यान करे तो वात दोष संतुलित रहता है, जिससे डिमेंशिया, डिप्रैशन, चिता और अनिद्रा जैसे विकारों से बचाव होता है। 'नैशनल इंस्टीच्यूट ऑन एजिग' द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि जो वृद्धजन सुबह नियमित दिनचर्या अपनाते हैं वे मानसिक रूप से अधिक सक्रिय और सामाजिक रूप से जुड़े रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त केवल शरीर और मन की जागरूकता का नहीं, आत्मिक ऊर्जा के जागरण का समय भी है। इस समय यदि व्यक्ति ध्यान, मंत्र जाप, पाठ या स्वाध्याय करता है तो सत्वगुण का उदय होता है। आध्यात्मिक 'उन्नति से जीवन में उद्देश्य आता है, जिससे व्यक्ति आत्मविश्वासी, शांत और संतुलित बनता है। यही तत्व दीर्घायु के साथ गुणवत्तापूर्ण जीवन का आधार बनता है।
ब्रह्म मुहूर्त अपनाने के व्यावहारिक उपाय :
सोने का समय निर्धारित करें: रात्रि 9.30 से 10.00 बजे तक सोने की आदत बनाएं। नींद की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण है। रात्रि भोजन समय पर और हल्का लें, इससे पाचन अच्छा रहता है और नींद गहरी होती है।
मोबाइल / स्क्रीन टाइम कम करें : सोने से 1 घंटा पहले सभी इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाएं।
अलार्म से अधिक, आत्म प्रेरणा से उठें : प्रारंभ में अलार्म मदद कर सकता है, पर लक्ष्य स्वाभाविक जागरण होना चाहिए।
प्रातः योग और प्राणायाम को दिनचर्या बनाएं : इससे शरीर ऊर्जावान रहता है और मन शांत।
सुबह की सैर और खुली हवा लें: ब्रह्म मुहूर्त की ताजगी शरीर न को दिनभर ऊर्जावान बनाए रखती है।
आगे पढ़े : बुजुर्गों की आम स्वास्थ्य समस्याएं
Thankyou