मंदिर सम्भवतः 8वीं शताब्दी में बना और कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया,
इस बारे में बहुत कुछ कहा जाता है- पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। यदि आप इन दावों पर विश्वास न भी करें तो विज्ञान बताता है कि यह मंदिर सम्भवतः 8वीं शताब्दी में बना था यानी यह कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।
केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,770 फुट ऊंचा केदारनाथ पर्वत, दूसरी तरफ 21,600 फुट ऊंचा खेतकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फुट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली 5 नदियां हैं - मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी।
यह क्षेत्र 'मंदाकिनी नदी' का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। मंदिर एक अनूठी कलाकृति से कम नहीं है। कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा, ऐसी जगह पर एक मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिनों में भारी मात्रा में बर्फबारी हो और बरसात के मौसम में तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप वाहन से वहां तक नहीं जा सकते।
आखिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया ? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है? 1200 साल बाद, भी जहां सब कुछ हैलीकॉप्टर से ले जाया जाता है, जे.सी.बी. के बिना आज भी वहां कोई ढांचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर वहीं खड़ा है और न सिर्फ खड़ा है, बल्कि आज भी मजबूत है।
वाडिया इंस्टीच्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर 'लिग्नोमैटिक डेटिंग' का परीक्षण किया। यह 'पत्थरों के जीवन' की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि मंदिर 14वीं से लेकर 17वीं सदी के मध्य पूरी तरह से बर्फ में दब गया था परंतु मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।
2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा होगा। इस दौरान औसत से 375 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। बाढ़ में '5748 लोग' (सरकारी आंकड़ों के अनुसार) मारे गए और 4200 गांवों को नुकसान पहुंचा। भारतीय वायुसेना ने 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया। इलाके में जो कुछ भी बनाया गया था, लगभग सब कुछ पानी अपने साथ बहा ले गया लेकिन इतनी भीषण बाढ़ में भी केदारनाथ मंदिर का ढांचा जरा भी प्रभावित नहीं हुआ।
भारतीय पुरातत्व सोसायटी के अनुसार, बाढ़ के बाद भी मंदिर के पूरे ढांचे के ऑडिट में 99 प्रतिशत मंदिर पूरी तरह सुरक्षित है।
2013 की बाढ़ और इसकी वर्तमान स्थिति के दौरान निर्माण को कितना नुकसान हुआ था, इसका अध्ययन करने के लिए 'आई.आई.टी. मद्रास' ने मंदिर पर 'एन.डी.टी. परीक्षण' (नॉन डिस्ट्रक्टिव टैस्ट) किया। साथ ही कहा कि मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित और मजबूत है।
केदारनाथ मंदिर 'उत्तर दक्षिण' के रूप में बनाया गया है जबकि भारत में लगभग सभी मंदिर 'पूर्व पश्चिम' हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि मंदिर 'पूर्व पश्चिम' होता तो पहले ही नष्ट हो चुका होता या कम से कम 2013 की बाढ़ में तो तबाह हो ही जाता लेकिन इस दिशा की वजह से केदारनाथ मंदिर बच गया। इसलिए, मंदिर ने प्रकृति के चक्र में ही अपनी ताकत बनाए रखी है।
मंदिर में लगे मजबूत पत्थरों को बिना किसी सीमैंट के 'एशलर' तरीके से एक साथ चिपकाया गया था इसलिए पत्थरों के जोड़ तापमान परिवर्तन के किसी भी प्रभाव से सुरक्षित रहते हैं जिससे मंदिर की ताकत अभेद्य है।
समुद्री जहाज 'टाइटैनिक' के डूबने के बाद, पश्चिम के लोगों ने' एन.डी.टी. परीक्षण' और ' तापमान' के महत्व को जाना लेकिन भारतीय लोगों ने यह सोचा और 1200 साल पहले इसका प्रयोग किया। क्या केदारनाथ उन्नत भारतीय वास्तुकला का ज्वलंत उदाहरण नहीं है?
2013 की बाढ़ में, मंदिर के पिछले हिस्से में एक बड़ी चट्टान फंस गई और पानी की धार विभाजित हो गई। मंदिर के दोनों किनारों का तेज पानी अपने साथ सब कुछ ले गया लेकिन मंदिर और मंदिर में शरण लेने वाले लोग सुरक्षित रहे जिन्हें अगले दिन भारतीय वायुसेना ने एयरलिफ्ट किया था।
सवाल यह नहीं है कि आस्था पर विश्वास किया जाए या नहीं लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि मंदिर के निर्माण के लिए स्थल, उसकी दिशा, वही निर्माण सामग्री और यहां तक कि प्रकृति पर भी ध्यान से विचार किया गया जो 1200 वर्षों तक अपनी संस्कृति और ताकत को बनाए रखेगा।
हम पुरातन भारतीय विज्ञान की क्षमताओं के बारे में सोचकर दंग रह गए हैं। शिला जिसका उपयोग 6 फुट ऊंचे मंच के निर्माण के लिए किया गया है, कैसे मन्दिर स्थल तक लाई गई।
आज तमाम नाढ़ों के बाद हम एक बार फिर केदारनाथ बनाने वाले उन 'वैज्ञानिकों' के आगे नतमस्तक हैं। यह एक उदाहरण है कि वैदिक हिन्दू धर्म और संस्कृति कितनी उत्रत थी। उस समय हमारे ऋषि-मुनियों ने वास्तुकला, मौसम विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, आयुर्वेद में अत्यधिक तरक्की की थी।
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