श्री हनुमान चालीसा – महत्व और लाभ
श्री हनुमान चालीसा का पाठ भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह चालीसा भगवान हनुमान की शक्ति, भक्ति और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक शक्तिशाली साधन है। हनुमान चालीसा के लाभ अनेकों हैं, जैसे मानसिक शांति, शारीरिक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति। कई लोग हनुमान चालीसा के अर्थ को समझने के लिए इसका हिंदी में अर्थ या English translation खोजते हैं, ताकि वे इसके गहरे संदेश को समझ सकें। इसके अलावा, हनुमान चालीसा ऑडियो डाउनलोड और हनुमान चालीसा ऐप के माध्यम से भक्त इस मंत्र को कहीं भी और कभी भी सुन सकते हैं। यदि आप अपने बच्चों के लिए इसे सरल रूप में चाहते हैं, तो हनुमान चालीसा फॉर किड्स भी उपलब्ध है।
हनुमान चालीसा वॉलपेपर और हनुमान चालीसा फोटो इंटरनेट पर बहुत लोकप्रिय हैं, जिन्हें लोग अपने फोन या घरों में रखते हैं। यह चालीसा मानसिक शांति और शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है, जो विशेष रूप से हनुमान चालीसा फॉर हेल्थ और हनुमान चालीसा फॉर प्रोटेक्शन के रूप में खोजा जाता है। इसके अलावा, हनुमान चालीसा फॉर सक्सेस और हनुमान चालीसा फॉर प्रॉस्पेरिटी जैसे टॉपिक्स भी लोगों में लोकप्रिय हैं, क्योंकि यह जीवन में सफलता और समृद्धि पाने के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है।
16वी शताब्दी में अवधी में लिखी गई हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) रचयिता गोस्वामी तुलसीदास Goswami Tulsi das हनुमानजी Hanuman ji को समर्पित एक काव्यात्मक कृति है जिसमें हिन्दू धर्म के प्रभु राम के परमभक्त हनुमान Hanuman ji के गुणों, पराक्रमो ओर निर्मल चरित्र का चालीस चौपाइयों में वर्णन है।
यह अत्यन्त लघु रचना में बजरंगबली जी Bajrangbali ji की भावपूर्ण वन्दना तो है ही, प्रभु श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी Hanuman ji की सुन्दर स्तुति की गई है। 'चालीसा' शब्द से अभिप्राय 'चालीस' (40) का है क्योंकि परिचय के 2 दोहों को छोड़कर इस स्तुति में 40 छन्द हैं ।

धार्मिक महत्व
वैसे तो पूरे भारत में यह लोकप्रिय है किन्तु विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। लगभग सभी हिन्दुओं को यह कण्ठस्थ होती है। सनातन धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस की प्रतिमूर्ति माना जाता है। शिव जी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुतीनन्दन, केसरी नन्दन, महावीर आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी अजर-अमर हैं। हनुमान जी का प्रतिदिन ध्यान करने और उनके मन्त्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। कहा जाता है कि हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) के पाठ ( hanuman chalisa in hindi ) से भय दूर होता है, क्लेश मिटते हैं , यह प्रशांतक के रूप में सिद्ध होती है। इसके गम्भीर भावों पर विचार करने से मन में श्रेष्ठ ज्ञान के साथ भक्तिभाव जागृत होता है।
मंगलवार एवं शनिवार को बजरंगबली की पूजा आराधना करने से भक्तों को संकट से मुक्ति मिलती है और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। इन दो दिनों को हनुमान चालीसा ( hanuman chalisa hindi ) पढ़ने का एक विशेष महत्व है क्योंकि इससे जीवन के सभी दु:ख और संकट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि हनुमान भक्तों पर शनिदेव भी कृपा बरसाते है। शनिवार के दिन हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) पढ़ने से शनि साढ़ेसाती और ढैया का प्रकोप भी कम होता है।
हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) के लेखन का श्रेय तुलसीदास को दिया जाता है, जो एक कवि-संत थे, जो 16वीं सदी के एक हिंदू कवि, संत और दार्शनिक थे।[5] उन्होंने भजन के अंतिम श्लोक में अपने नाम का उल्लेख किया है। हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) के 39वें श्लोक में कहा गया है कि जो कोई भी हनुमान जी की भक्ति के साथ इसका जप करेगा, उस पर हनुमान जी की कृपा होगी। विश्व भर के हिंदुओं में, यह एक बहुत लोकप्रिय मान्यता है कि हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) का जाप गंभीर समस्याओं में हनुमान जी के दिव्य हस्तक्षेप का आह्वान करता है।
पाठ विधि
हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) का पाठ करने से पहले, श्री हनुमान जी को नमस्कार करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। जय हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) का पाठ करने से व्यक्ति के सभी संकटो का नाश होता है और हनुमान जी के साथ साथ श्री सीताराम जी के समस्त दरबार की कृपा प्राप्त होती है। अगर किसी इच्छा से पाठ करना है तो आप चालीसा पाठ संकल्प लेकर कर सकते है या बिना संकल्प के भी कर सकते है हनुमान जी से प्रार्थना करके। आप अगर मंगलवार का व्रत भी रहेंगे तो और अच्छा है।
इतिहास
एक बार अकबर ने गोस्वामी जी Goswami Tulsi das को अपनी सभा में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्री राम केवल अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनते ही अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को कारागार में बंद करवा दिया।
कारावास में गोस्वामी जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा ( shri hanuman chalisa ) लिखी। जैसे ही हनुमान चालीसा ( hanuman chalisa ) लिखने का कार्य पूर्ण हुआ वैसे ही पूरी फतेहपुर सीकरी को बन्दरों ने घेरकर उस पर धावा बोल दिया । अकबर की सेना भी बन्दरों का आतंक रोकने में असफल रही। तब अकबर ने किसी मन्त्री की परामर्श को मानकर तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया। जैसे ही तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त किया गया उसी समय बन्दर सारा क्षेत्र छोड़कर चले गये। इस अद्भुत घटना के बाद, गोस्वामी तुलसीदास जी की महिमा दूर-दूर तक फैल गई और वे एक महान संत और कवि के रूप में जाने जाने लगे। उनकी रचनाएं, जिसमें रामचरितमानस भी शामिल है, हिंदू धर्म में उच्च मान्यता और उत्सवों के साथ मनाई जाती हैं।
Source : wikipedia
|| हनुमान चालीसा ||
Shri Hanuman Chalisa with Interpretation
Hanuman Chalisa Lyrics
|| दोहा ||
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श्री गुरु चरण सरोज रज , निज मन मुकुरु सुधारि ।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि ।
भावार्थ - श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है।
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बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरो पवन - कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं , हरहु कलेश विकार ।
भावार्थ - हे पवन कुमार ! मैं आप का सुमिरन करता हूं। आप तो जानते हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल , सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दोषों व दुखों का नाश कार दीजिए।
|| चौपाई ||
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ,
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥ 1 ॥
भावार्थ - श्री हनुमान जी ! आपकी सदा जय हो। आपका गुण और ज्ञान अथाह है। हे कपीश्वर ! आपकी जय हो ! तीनों लोकों , स्वर्ग लोक , भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
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राम दूत अतुलित बलधामा ,
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ॥ 2 ॥
भावार्थ - हे पवनसुत अंजनी नंदन ! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है ।
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महावीर विक्रम बजरंगी ,
कुमति निवार सुमति के संगी ॥ 3 ॥
भावार्थ - हे महावीर बजरंग बली ! आप विशेष पराक्रम वाले है । आप खराब बुद्धि को दूर करते है और अच्छी बुद्धि वालों के साथी और उनके सहायक है।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा ,
कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥ 4 ॥
भावार्थ - आप सुनहले रंग , सुन्दर वस्त्रों , कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं ।
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हाथबज्र और ध्वजा विराजे ,
कांधे मूंज जनेऊ साजै ॥ 5 ॥
भावार्थ - आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है ।
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शंकर सुवन केसरी नंदन ,
तेज प्रताप महा जग वंदन ॥ 6 ॥
भावार्थ - आप शंकर के अवतार ! हे केसरी नंदन आपके महान यश और पराक्रम की संसार भर में वन्दना होती है ।
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विद्यावान गुणी अति चातुर ,
राम काज करिबे को आतुर ॥ 7 ॥
भावार्थ - आप प्रकान्ड विद्या निधान है , गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर हमेशा श्री राम के कार्य करने के लिए आतुर / उत्सुक रहते है।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ,
राम लखन सीता मन बसिया ॥ 8 ॥
भावार्थ - आप श्री रामचरित / कथा /गुणगान सुनने में आनन्द रस लेते है। और आपके हृदय में श्री राम, सीता और लखन बसे रहते है।
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ,
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ 9 ॥
भावार्थ - माता सीता जी को आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को भी जलाया।
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भीम रूप धरि असुर संहारे ,
रामचन्द्र के काज संवारे ॥ 10 ॥
भावार्थ - आपने राक्षसों को विकराल रूप धारण करके मारा और श्री रामचन्द्र जी के कार्य / उद्देश्यों को सफल कराया।
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लाय सजीवन लखन जियाये ,
श्री रघुवीर हरषि उर लाये ॥ 11 ॥
भावार्थ - लक्ष्मण जी के लिए आपने संजीवनी बूटी लाकर उनको जिलाया जिससे हर्षित / खुश होकर श्री रघुवीर ने आपको हृदय से लगा लिया।
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई ,
तुम मम प्रिय भरत सम भाई ॥ 12 ॥
भावार्थ - आपकी श्री रामचन्द्र ने बहुत प्रशंसा की और कहा कि भरत जैसे तुम मेरे प्यारे भाई हो ।
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ 13 ॥
भावार्थ - तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है श्रीराम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया ।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ,
नारद, सारद सहित अहीसा ॥ 14 ॥
भावार्थ - श्रीसनक , श्रीसनातन , श्रीसनन्दन , श्रीसनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारदजी, सरस्वतीजी और शेषनाग जी सभी आपका गुण गान करते है।
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जम कुबेर दिगपाल जहां ते ,
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥ 15 ॥
भावार्थ - यमराज , कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक , कवि, विद्वान , पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते ।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा ,
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥ 16 ॥
भावार्थ - आपने सुग्रीव जी को श्री राम से मिलाकरपर उपकार किया जिसके कारण वे राजा बने।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ,
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥ 17 ॥
भावार्थ - इसको सब संसार जानता है की आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने ।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ,
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ 18 ॥
भावार्थ - सूर्य जो इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया ।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि ,
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥ 19 ॥
भावार्थ - इसमें कोई आश्चर्य नहीं है की आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया ।
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दुर्गम काज जगत के जेते ,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ 20 ॥
भावार्थ - संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो , वो सभी आपकी कृपा से सहज / सरल हो जाते है ।
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राम दुआरे तुम रखवारे ,
होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥ 21 ॥
भावार्थ - श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को भी प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ / असंभव है ।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना ,
तुम रक्षक काहू को डरना ॥ 22 ॥
भावार्थ - जो भी आपकी शरण में आते है उन सभी को आनन्द प्राप्त होता है और जब आप रक्षक है तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
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आपन तेज सम्हारो आपै ,
तीनों लोक हांक तें कांपै ॥ 23 ॥
भावार्थ - आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता और आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते है।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै ,
महावीर जब नाम सुनावै ॥ 24 ॥
भावार्थ - जहां पर भी महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।
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नासै रोग हरै सब पीरा ,
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ 25 ॥
भावार्थ - हे वीर हनुमान जी ! आपका निरंतर जप करने से ही सब रोग दूर हो जाते है और सब पीड़ा / दर्द मिट जाते है।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै ,
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26 ॥
भावार्थ - हे हनुमान जी ! जिनका ध्यान विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में आपमें रहता है उनके सब संकटों से आप उनको छुड़ाते है।
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सब पर राम तपस्वी राजा ,
तिनके काज सकल तुम साजा ॥ 27 ॥
भावार्थ - श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ तपस्वी राजा है उनके सब कार्यों को आपने सहज /सरल में कर दिया।
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और मनोरथ जो कोइ लावै ,
सोई अमित जीवन फल पावै ॥ 28 ॥
भावार्थ - जिस पर भी आपकी कृपा हो वह कोई भी अभिलाषा इच्छा करें तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती है ।
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चारों जुग परताप तुम्हारा ,
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29 ॥
भावार्थ - चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग में आपका यश फैला हुआ है आपकी कीर्ति जगत में सर्वत्र प्रकाशमान है।
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साधु सन्त के तुम रखवारे ,
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30 ॥
भावार्थ - हे श्रीराम के दुलारे ! आप साधु और सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ,
अस बर दीन जानकी माता ॥ 31 ॥
भावार्थ - माता श्री जानकी से आपको ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है। तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ और नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीता माता ने उन्हे वरदान दिया। यह अष्ट सिद्धियां बड़ी चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव लगने वाले काम को आसानी से सम्पन किये थे । आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताते है।
अष्ट सिद्धि के नाम है :
1.) अणिमा सिद्धि - जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।
इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब किये जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे । हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके लंका में अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। हनुमानजी अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।
2.) महिमा सिद्धि - जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना लेता है।
हनुमानजी जब समुद्र पार करके लंका जा रहे थे तब बीच उनका रास्ता सुरसा नामक राक्षसी ने रोक लिया था। सुरसा को उस समय परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था। इसके अलावा वानर सेना पर माता सीता को श्रीराम की विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए हनुमानजी ने स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।
3.) गरिमा सिद्धि - जिससे साधक अपने को मन चाहे जितना भारी बना लेता है।
इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं को किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं। गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। जब भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी एक वृद्ध वानर का रूप धारन करके रास्ते में अपनी पूंछ को फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ से रास्ते में पड़ी हुई है तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें । तब वृद्ध वानर ने कहा कि वृद्धावस्था के कारण मैं अपनी पूंछ हटा नहीं सकताआप स्वयं हटा दीजिए। भीम इसके बाद वानर की पूंछ हटाने लगे लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई । भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग करने पर भी सफलता नहीं मिली और भीम का घमंड टूट गया।
4.) लघिमा सिद्धि - जिससे जितना मन चाहे वह उतना हल्का बन जाता है।
इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ - जा सकते हैं। हनुमानजी जब अशोक वाटिका में पहुंचे तब वे लघिमा और अणिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे इन पत्तों पर बैठे - बैठे ही सीता जी को अपना परिचय दिया था।
5.) प्राप्ति सिद्धि - जिससे इच्छित / जिस चीज इच्छा हो उसकी पदार्थ की प्राप्ति होती है।
इस सिद्धि से किसी भी वस्तु को तुरंत ही हनुमानजी प्राप्त कर लेते हैं और पशु - पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं आने वाले समय को देख सकते हैं। इस सिद्धि के उपयोग से रामायण में हनुमानजी ने सीता जी की खोज करते समय कई पशु - पक्षियों से चर्चा की थी। माताजी को अशोक वाटिका में खोज लिया था।
6.) प्राकाम्य सिद्धि - जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में भी समा सकता है और आकाश में भी उड़ सकता है।
हनुमानजी इसी सिद्धि की मदद से पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते और आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं । इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को वरण कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल / हमेशा तक प्राप्त कर सकते हैं । हनुमानजी ने इस सिद्धि की मदद से ही श्रीराम की भक्ति को चिरकाल का प्राप्त कर लिया है।
7.) ईशित्व सिद्धि - जिससे सब पर शासन करने का सामर्थ्य हो जाता है।
हनुमानजी को इस सिद्धि की मदद सेदैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं। हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व ईशित्व के प्रभाव से किया था। इस सिद्धि के कारण उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा और साथ ही हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।
8.) वशित्व सिद्धि - जिससे दूसरों को भी वश में किया जाता है।
हनुमानजी वशित्व सिद्धि के प्रभाव से जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। वश में आने के बाद प्राणी हनुमान के उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। हनुमानजी अतुलित बल के धाम इसी के प्रभाव से हैं।
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राम रसायन तुम्हरे पासा ,
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32 ॥
भावार्थ - निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में आप रहते है जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
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तुम्हरे भजन राम को पावै ,
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ 33 ॥
भावार्थ - आपका भजन करने से श्रीराम जी की प्राप्ति होती है और जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है।
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अन्त काल रघुबर पुर जाई ,
जहां जन्म हरि भक्त कहाई ॥ 34 ॥
भावार्थ - आप अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे।
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और देवता चित न धरई ,
हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥ 35 ॥
भावार्थ - हे हनुमान जी ! आपकी सेवा करने से ही सब प्रकार के सुख मिल जाते है फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता / जरूरत नहीं रहती ।
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संकट कटै मिटै सब पीरा ,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ 36 ॥
भावार्थ - सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है। जो भी हनुमान जी का सुमिरन करता रहता है।
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जय जय जय हनुमान गोसाईं ,
कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥ 37 ॥
भावार्थ - हे स्वामी हनुमान जी ! आपकी जय हो , जय हो , जय हो ! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरुजी के समान कृपा कीजिए।
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जो सत बार पाठ कर कोई ,
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ 38 ॥
भावार्थ - जो कोई इस हनुमान चालीसा का सात बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा ।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ,
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ 39 ॥
भावार्थ - शंकर भगवान ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
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तुलसीदास सदा हरि चेरा ,
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ॥ 40 ॥
भावार्थ - हे नाथ हनुमान जी ! तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए ।
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पवन तनय संकट हरन , मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित , हृदय बसहु सूरभूप ॥
भावार्थ - हे संकट मोचन पवन कुमार ! आप आनंद मंगलों के स्वरूप / समान हैं । हे देवराज ! आप श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
जय श्री राम
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