वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है। आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये।वाल्मीकि आदिकवि थे ।

विश्व को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले भगवान वाल्मीकि कि वाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती है ? जानिये, ऋषि महर्षि वाल्मीकि की जयंती शरद पूर्णिमा पर मनाई जाती है. इस दिन रामायण लिखने वाले आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की पूजा होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वाल्मीकि जयंती अश्विन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है
सामर्थ्यशाली, युग दृष्टय, सर्वशक्तिमान, महाज्ञानी, परमबुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के रचयिता, आदि कवि, महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामह के रूप में जाना व माना जाता है।
महाकाव्य रामायण में इन्होंने 24000 श्लोक, 100 आख्यान, 500 सर्ग और उत्तरकांड सहित 7 कांडों का प्रतिपादन किया है।
इसमें भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज की अमूल्य निधियों, महापराक्रम, लोकाचार, क्षमा, सौम्यता तथा सत्यशीलता का वर्णन है।
दयावान वाल्मीकि भगवान जी ने सर्वप्रथम विश्व को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और शांति का संदेश दिया। वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। एक दिन जब तमसा नदी के घाट पर नित्य की तरह स्नान के लिए गए तो पास ही क्रौंच पक्षियों का जोड़ा, जो कभी एक-दूसरे से अलग नहीं रहता था, विचरण कर रहा था।
उसी समय एक निषाद ने उस जोड़े में से नर पक्षी को बाण से मार डाला। यह देखकर महर्षि का हृदय बहुत दुखी हुआ। उन्होंने निषाद से कहा, "यह अधर्म हुआ है। हे निषाद तुम्हें अनंत काल तक शांति न मिले क्योंकि तुमने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर डाली।"
(अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)
ऐसा कह कर जब महर्षि ने अपने कथन पर विचार किया तब उनके मन में बड़ी चिंता हुई कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर उन्होंने क्या कह डाला। अंततः उनकी इस करुणा से महाकाव्य 'रामायण' का उदय हुआ। 'रामायण' विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है, जिसमें मानवीय जीवन के प्रभावशाली आदर्श हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने रामकथा के माध्यम से मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया, जो अनुपम और दिव्य है। समाज और राष्ट्र को उन्नत तथा स्वस्थ बनाने के लिए व्यक्ति का चरित्र विशेष महत्व रखता है। चरित्र के निर्माण के लिए परिवार के महान योगदान को' श्रीमद् वाल्मीकि रामायण' ने स्वीकार किया है। परिवार एक ऐसा शिक्षा केंद्र है, जहां व्यक्ति स्नेह, सौंदर्य, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा पाता है।
राम राम सब जगत बखाने |
आदि राम कोइ बिरला जाने ||
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो द्रौपदी यज्ञ रखती है, जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था परन्तु कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहाँ प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को कबीर ने भी स्पष्ट किया है
सुपच रूप धार सतगुरु आए।
पाण्डवो के यज्ञ में शंख बजाए।
भगवान वाल्मीकि जी की महत्वपूर्ण शिक्षाएं व संदेश
भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य 'रामायण' में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, जिनमें कर्त्तव्य परायणता, आज्ञा पालन, वचन पालन, भाई का भाई के प्रति अथाह प्रेम, दुखियों व पीड़ितों के प्रति दया और मानवता व शांति का संदेश देने के साथ-साथ अपने अंदर अहंकार, ईर्ष्या, क्रोध व लोभ रूपी राक्षस को मार कर सहनशीलता अपनाना शामिल है।
भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार संसार का मूल आधार ज्ञान ही है। अर्थात शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ और अर्थहीन है क्योंकि जीवन की भूल-भुलैया के चक्रव्यूह से शिक्षित व्यक्ति का ही बाहर निकलना संभव तथा आसान होता है। इनकी शिक्षाओं में अस्त्र-शस्त्र, ज्ञान, विज्ञान, राजनीति तथा संगीत के अलावा आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा का ही नहीं, आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है।
आज भी इनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया को मानवता, प्रेम व शांति तथा सहनशीलता का संदेश देती हैं और हिंसा, शत्रुता व युद्ध से होने वाले भयंकर विनाश के दुष्टपरिणामों से बचने का संकेत कर रही हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
वाल्मीकि जी का असली नाम क्या था?
साधना पूरी करके जब ये बांबी जिसे वाल्मीकि कहते हैं, उससे बाहर निकले तो इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। धर्म ग्रंथों के मुताबिक, महर्षि वाल्मीकि का नाम पहले रत्नाकर था।
वाल्मीकि का जन्म कब और कहां हुआ था?
महर्षि वाल्मीकि के जन्म त्रेता युग में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पुर्णिमा तिथि में हुई थी ।
हम वाल्मीकि जयंती क्यों मनाते हैं?
वाल्मीकि जयंती क्यों मनाई जाती है? ऋषि वाल्मीकि, जिन्हें पौराणिक भारतीय महाकाव्य रामायण लिखने का श्रेय दिया जाता है, का जन्मदिन वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। हिंदू परंपरा में, वाल्मीकि को सबसे महान कवियों और ऋषियों में से एक माना जाता है।
वाल्मीकि पहले कौन से डाकू थे?
महर्षि वाल्मीकि प्रारंभिक जीवन में रत्नाकर नाम के डाकू थे. एक दिन उन्होंन वन में देवर्षि नारद मुनि को लूटने की कोशिश की. नारद ने उन्हें भगवान राम का उल्टा नाम मरा- मरा जपने का उपदेश दिया.
वाल्मीकि किस युग में थे?
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि वाल्मीकि का जन्म त्रेता युग में ब्रह्मा के रूप में हुआ था जिन्होंने रामायण की रचना की और ज्ञान अर्जित करने के इच्छुक लोगों को वाल्मीकि की पूजा करनी चाहिए।
वाल्मीकि जी ने रामायण कब लिखी थी?
जो संभवतः ईसा से 400 साल पहले लिखी गई थी। इसके बाद ईसा से 300 साल पूर्व का काल वाल्मीकि रामायण का मिलता है। वाल्मीकि रामायण को सबसे ज्यादा प्रमाणिक इसलिए भी माना जाता है क्योंकि वाल्मीकि भगवान राम के समकालीन ही थे और सीता ने उनके आश्रम में ही लव-कुश को जन्म दिया था।
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