सांस्कृतिक विरासत 'अम्बरनाथ मंदिर' पहाड़ की तलहटी में बने अंबरनाथ मंदिर की विहंगम छटा देखते ही बनती है। एक हजार वर्ष पुराना यह मंदिर इतिहास, कला और संस्कृति की अद्भुत मिसाल है। विश्व भर में ऐसे कुछ 218 ठिकाने हैं। इनमें भारत के पास महज 25 हैं और महाराष्ट्र में तो केवल चार। यूनेस्को ने अंबरनाथ शिव मंदिर को सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है।
पांडवों ने एक रात में किया था भगवान शिव के इस मंदिर का निर्माण, अंबरनाथ मंदिर अंबरेश्वर मंदिर शिव मंदिर, महाराष्ट्र, भारत Ambarnath Shiv Mandir History in Hindi

अंबरनाथ का शिव मंदिर 11वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है, जिसकी पूजा अभी भी भारत के महाराष्ट्र में मुंबई के पास अंबरनाथ में की जाती है। इसे अम्बरेश्वर शिव मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, और स्थानीय रूप से पुरातन शिवालय के रूप में जाना जाता है। यह अंबरनाथ रेलवे स्टेशन से 2 किमी. दूर वृंदावन (वल्धुनी) नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर 1060 ईस्वी में बनाया गया था। मंदिर के पत्थरों में खूबसूरती से नक्काशी की गई थी। यह संभवत: शिलाहार राजवंश के राजा छित्तराज द्वारा बनवाया गया था। ऐसा अनुमान है कि इसका पुनर्निर्माण उनके पुत्र मुमुनि ने भी किया था। इस मंदिर को पांडवकालीन मंदिर भी बताया जाता है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर जैसा पूरे विश्व में कोई मंदिर नहीं है।
मंदिर का गर्भगृह जमीन के नीचे है। यह मंडप से लगभग 20 सीढ़ियां नीचे की ओर है और आकाश के तरफ खुला है। इसका शिखर मंडप की ऊंचाई से थोड़ा ऊपर की ओर तक है जो स्पष्ट रूप से कभी पूरा नहीं हुआ था। यह भूमिजा रूप में है और अगर पूरा हो जाता तो उदयपुर, मध्य प्रदेश में उदयेश्वर मंदिर, जिसे नीलकंठेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो 1059 में प्रारंभ हुआ और गोंदेश्वर मंदिर, सिन्नर के करीब होता। जो कुछ भी बनाया गया था, उससे यह स्पष्ट है कि शिखर ने गवाक्ष-मधुकोश के चार कोनों वाले पट्टियों का अनुसरण किया होगा, जो मीनार की पूरी ऊंचाई तक निर्बाध रूप से फैला हुआ है।
Ambarnath Shiv Mandir History in Hindi
पांडव आए थे यहां
अंबरेश्वर कोंकण क्षेत्र का प्राचीनतम शिव मंदिर है, जिसके आस-पास कई नैसर्गिक चमत्कार छिटके हुए हैं। गर्भगृह में पूजा कराने के बाद पुजारी लाला पंडित हमें उस कुंड के पास ले गए, जिसकी गर्म पानी की धारा पास में ही हुए अतिक्रमण से अब अवरुद्ध है।
यहीं पास में बंद पड़ी एक मील लंबी उस भूगर्भीय गुफा का मुहाना है, जिसके बारे में बताते हैं कि एक वक्त उसका रास्ता पंचवटी तक जाता था। अंबरेश्वर और आस-पास ऐसे कई अन्य रहस्य प्रकट होने की राह देख रहे हैं।
कुछ वर्ष पहले जब इस बात का पता लगाने के लिए अंबरनाथ में खुदाई की गई कि कोई प्राचीन नगर तो यहां की गर्द में नहीं दबा है तो इस धारणा की पुष्टि करने वाले बर्तन-भांडों व अन्य साजो-सामान के रूप में कई प्रमाण मिले। अंबरनाथ की जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं।
लोकोक्ति है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के सबसे दूभर कुछ वर्ष अंबरनाथ में ही बिताए थे और यह पुरातन मंदिर उन्होंने एक ही रात में विशाल पत्थरों से बनवा डाला था। कौरवों द्वारा लगातार पीछा किए जाने के भय से यह स्थान छोड़कर उन्हें जाना पड़ा। मंदिर फिर पूरा नहीं हो सका।
आसमान के साथ स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कराने वाले गर्भगृह (जो मंडप से 20 सीढ़ियां नीचे है) के ठीक ऊपर शिखर का न होना इस धारणा को पुष्ट करता है।
मौसम के झंझावात झेलता मंदिर फिर भी सिर तानकर खड़ा है। बगल से बहती वालधुनी नदी बाढ़ में जब भी विकराल रूप में होती है, उसका पहला गुस्सा इमली और आम के पेड़ों से घिरे इस परिसर पर ही फूटता है।
शिल्पकला का दुर्लभ नमूना
परिसर में मिले प्राचीन शिलालेख के प्रमाण स्थानीय काले पत्थर से बनी तीन ड्योढ़ियों वाले मंदिर के मौजूदा ढांचे को 1060 ईस्वी में क्षेत्र में राज करने वाले शिलाहार राजा चित्तराजा द्वारा बनवाए जाने की पुष्टि करते हैं, जिसका पुनर्निर्माण उनके पुत्र महामंडलेश्वर मंवणि राजदेव ने करवाया। वाराह अवतार, मां दुर्गा सहित कुछ देवी-देवताओं, पौराणिक पात्रों और नारी मूर्तियों को छोड़कर मंदिर की बाहरी नक्काशियां अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। बाहर दो नंदी मौजूद हैं। भीतर मुख्य मूर्ति त्रैमस्तिकी है, जिसके घुटने पर एक नारी रूप है- संभवतः शिव और पार्वती। शीर्ष भाग पर शिव नृत्य मुद्रा में दिखते हैं। स्तंभों और छत की सुंदर नक्काशी अभी भी कदम रोक लेती है।
स्वर्णिम अतीत की छाया
कुल मिलाकर अंबरेश्वर मंदिर और आस-पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसके संरक्षण पर भरोसा पैदा करता हो, इसका अहसास पास आते ही शुरू हो जाता है। मंदिर को छूकर निकल रही सदानीरा वालधुनी (वादवन) नदी की अविरल धारा आस-पास के प्रदूषणकारी उद्योगों के उत्पात से गंध मारती संकरी गंदी नाली बन गई है।
मंदिर तक पहुंचाने वाली सड़कों की हालत संतोषजनक नहीं है और मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था में छिद्र ही छिद्र दिखते हैं। कई पुराकथाओं से संबंध रखने वाला अंबरेश्वर खंडहर बनकर आज अपने स्वर्णिम अतीत की छाया भर रह गया है। काश! पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बाहर लगे सूचना पट पर 'अंबरेश्वर' (या 'अमरनाथ') के' संरक्षित स्मारक' होने की घोषणा करने के साथ इसकी देखभाल के लिए भी कुछ किया होता! सुशोभीकरण और आकर्षण वृद्धि तो दूर की बात, मंदिर का अस्तित्व ही इस समय खतरे में है।
दरअसल, अंबरनाथ के समक्ष सबसे बड़ा मुद्दा इस समय संरक्षण का ही है। भीतर लगे सुंदर पच्चीकारी वाले लौह स्तंभ और खूबसूरत पत्थर अपने जीर्ण होने की चुगली करते हैं। छतों और दीवारों को गिरने से रोकने के लिए जगह-जगह टेक लगाए गए हैं। असल में भूमिझा शैली के सर्वोत्कृष्ट निर्माणों में से एक यह मंदिर किसी भी प्रयास के बजाय निर्माण की कला की वजह से ही काल के थपेड़े और हर अन्याय व झंझावात सहते लगभग 1,000 वर्ष बाद भी टिका हुआ है। चाहें, तो इसे भोलेनाथ की कृपा भी कह लीजिए।
अंबरेश्वर आज एक दशक पहले से बेहतर हालत में है तो इसमें न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है, जिसने अतिक्रमणों और अवैध निर्माणों से भग्न स्थिति में पहुंचे मंदिर को कुछ संभाला है।
कुछ समय पहले 15 करोड़ रुपए की निधि से मंदिर परिसर से होकर गुजरने वाली वालधुनी नदी को भूमिगत करने, उस पर पुल के निर्माण, प्रवेश द्वार पर कमान के निर्माण सहित समूचे मार्ग के निर्माण, स्वच्छता गृह, पार्किंग, उद्यान, प्रदर्शनी, थिएटर, कुंड के सौंदर्याकरण, वॉक-वे जैसी सुविधाओं वाली योजनाएं चरणबद्ध ढंग से लागू की गई हैं, जिनसे इस पूरे क्षेत्र की हालत सुधारने में मदद मिलेगी। स्थानीय नगर परिषद के पूर्व नगराध्यक्ष सुनील चौधरी बताते हैं, 'अंबरनाथ को महाराष्ट्र ही नहीं, देश का पर्यटन ठिकाना बनाया जा सकता। है, बशर्ते हमारी सरकारें इसमें रुचि लें'।
छोटा-सा म्यूजियम, पर्यटक आवास व सुविधाएं, परिवहन का प्रबंध और थोड़ा-सा प्रचार, अंबरनाथ को मुंबई का एक मुख्य आकर्षण बनाने के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है।
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