माथेरान टॉय ट्रेन - Matheran Toy Train 2 ft narrow-gauge heritage railway in Maharashtra रेलवे की स्थापना मुंबई स्थित उद्यमी अब्दुल हुसैन पीरभॉय ने की थी और ट्रेन लाइन के निर्माण के तीन साल बाद 1907 में इसका पहला रन हुआ था। इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में प्रस्तावित किया गया है, लेकिन अभी तक इसे सूचीबद्ध नहीं किया गया है।

20वीं सदी की शुरुआत की बात है सर आदमजी पीरभॉय Sir Adamjee Peerbhoy मुंबई के मशहूर कारोबारी होते थे। अंग्रेजों को जूतों, बंदूकगाड़ियों और टैंट की सप्लाई का काम और सायन में एशिया में जो सबसे बड़ा चमड़े का कारखाना कहलाता था।।
1900 में सर आदमजी पीरभॉय Sir Adamjee Peerbhoy परिवार सहित हवाखोरी के लिए माथेरान आया करते थे। ऊंचाई होने से पहाड़ पर चढ़ाई में दिक्कत होती थी। अंग्रेजों के लिए तो पालकी थी, भारतीयों की पहुंच वहां थी नहीं। वे घोड़े से जाया करते। सर आदमजी माथेरान आए तो चढ़ाई के लिए घोड़े नहीं मिले, लिहाजा, आदमजी पीरभॉय Adamjee Peerbhoy माथेरान को बैरंग लौटना पड़ा। अब रेलवे से ही यहां आया करेंगे, आदमजी माथेरान संकल्प लेकर घर आए ।
1901 में अंग्रेज सरकार को पत्र लिखकर आदमजी पीरभॉय Adamjee Peerbhoy ने माथेरान Matheran और नेरल Neral के बीच लैंड सर्वे कराकर लाइट ट्रॉमवे की संभावनाओं का पता लगाने का अनुरोध किया। सरकार की हां मिलने पर फौरन यहां 280 एकड़ जमीन खरीदी और रेल लाइन के निर्माण का काम शुरू करा दिया।
इसके बाद सर आदमजी पीरभॉय Adamjee Peerbhoy तभी यहां आए, जब ट्रॉय ट्रेन पूरी तरह बन कर तैयार हो गई। निर्माण के दौरान पूरा पीरभॉय परिवार माथेरान में ही लकड़ी से बने बंगले में जाकर रहा। टॉय ट्रेत्त जब भी उनके घर के पास से गुजरा करती, ड्रॉइवर लगातार तीन हॉर्न देकर उसके संस्थापक को सलामी दिया करता और पूरा परिवार जहां भी होता, मकान के सामने आकर उसे कबूल करता।
रेलवे बन जाने के बावजूद जब पर्यटक नहीं थे, तब परिवार ने रातभर रहने के लिए यहां 105 सराय और होटल बनवाए। इस परिवार के पास विशाल बंगले के अलावा दो रिजॉर्ट आज भी हैं। मलाबार हिल का मशहूर सैफी महल, जिसे आदमजी ने बोहरा धर्मगुरु सैयदना को भेंट कर दिया, उनका निवास हुआ करता था। आदमजी का नाम सैफी ट्रस्ट ने आज तक जीवित रखा है।
1912 में एक बोहरा मुस्लिम की जब माथेरान आने के बाद मृत्यु हो गई, तब उनके पुत्र अब्दुल हुसैन पीरभॉय ने वहां 30,000 वर्ग फुट में कब्रगाह बनवाई। अमन लॉज का नाम उनकी मां अमन बाई के नाम पर है। माथेरान की नगरपालिका परिषद भी उन्हीं की देन है। 18 दिसम्बर, 1918 को महज 47 वर्ष की उम्र में अब्दुल हुसैन का देहांत हो गया। अली अकबर पीरभॉय सर आदमजी के प्रपौत्र हैं।
इस परिवार के लोग आज भी माथेरान में रहते हैं। आदमजी पीरभॉय Adamjee Peerbhoy को प्रेम से 'माथेरान रेलवे वाला' के नाम से पुकारा जाता है।
16 लाख में बनी रेल लाइन What is the cost of toy train in Matheran?
रेल लाइन का निर्माण 1904 में शुरू हुआ और मार्च, 1907 में पूरा हुआ, लागत आई 16 लाख रुपए। आज यह सोचकर ही आश्चर्य होता है कि बगैर किसी सर्वे और बिजली, जे.सी.बी. जैसी आधुनिक मशीन या संचार सुविधाओं के बीती सदी के आरंभ में इतना दूभर काम कैसे पूरा हुआ होगा।
उन दिनों का एक रोचक किस्सा है। पहाड़ तोड़ते वक्त बहुतायत में सांप मिलने के कारण मजदूर घबराकर भागने लगे। प्रलोभन स्वरूप उन्हें एक सांप मारने पर चांदी का एक सिक्का देकर रोका गया। इसने योजना की लागत तीन लाख रुपए बढ़ा दी।
रेल लाइन जब बन ही रही थी आदमजी ने जर्मनी के इंजन निर्माता ओरेंस्टाइन ऐंड कोपेल को इंजनों का आर्डर किया और उनकी डिलिवरी लेने जर्मनी भेजा खुद के पुत्र अब्दुल हुसैन को, जो मशहूर आर्कीटेक्ट और इंजीनियरिंग के महारथी थे।
Matheran Toy Train माथेरान रेल 1952 तक पीरभॉय परिवार के ताबे में रही, जब तत्कालीन जी.आई.पी. रेलवे (आज की मध्य रेल) ने चार लाख रुपए में खरीदकर खुद में इसका विलय कर लिया। पीरभॉय का पुश्तैनी बंगला भी रैस्ट हाऊस बनाने के लिए अधिगृहीत कर लिया गया।
मुआवजे और रॉयल्टी को लेकर यह मामला अदालत पहुंचा। आज स्थिति यह है कि जिन आदमजी ने यह हिल रेलवे बनाई, नेरल व माथेरान में दो स्मरणपट्टिकाओं को छोड़कर उनके नाम पर कोई बैंच या पेड़ तक नहीं है।
परिवार के वारिसों ने अपने पास सुरक्षित 2,300 से अधिक पुरातत्व सामग्री मध्य रेल को देने की पेशकश की है, बशर्ते वह पीरभाय की स्मृति में छोटा सा संग्रहालय बनाए। उन्होंने सरकार और रेलवे पर पहाड़ की हैरिटेज को नुकसान पहुंचाने का आरोप भी लगाया है।
Neral to Matheran Toy Train माथेरान हिल रेल के शुरुआती 100 वर्ष के इतिहास में एक भी दुर्घटना का रिकॉर्ड नहीं है, पर बाद में तो दुर्घटनाओं का सिलसिला ही चल पड़ा। कई विशेषज्ञों ने इन दुर्घटनाओं के लिए खराब रखरखाव के साथ रेल कार के 'गलत' डिजाइन को दोषी करार दिया है। सर आदमजी पीरभॉय के प्रपौत्र तो इसे मध्य रेल की साजिश करार देते हैं।
अविस्मर्णीय यात्रा Neral to Matheran Toy Train
माथेरान जाना हो तो नेरल से हुए बिना राह नहीं। पता ही नहीं चलता आधुनिक डिजाइन के पारदर्शी छत वाले वातानुकूलित विस्टाडोम कोच से प्रकृति की बहार का थ्रीडी नजारा देखते-देखते माथेरान हिल रेल Matheran Hill Rail की यह खूबसूरत 'टॉय ट्रेन' Toy Train दो घंटे की दूरी कब तय कर लेती है।
Matheran Toy Train 19.97 किलोमीटर की सर्पीली राह पर चलती खिलौना गाड़ी की कछुआ चाल कुछ ऐसी है कि रास्ते के स्टेशनों पर उतर कर वड़ा पाव खरीद कर खाइए और दौड़कर वापस गाड़ी पकड़ लीजिए। Matheran Toy Train माथेरान का असली आनंद 'टॉय ट्रेन' और 220 घुमावों वाली उसकी यह यात्रा ही है। माथेरान लाइट रेलवे के रास्ते में 121 पुल हैं और कई सुरंगें। इनमें एक सुरंग 'वन किस टनल' One Kiss Tunnel कहलाती है। क्यों, यह आपको किसी प्रेमी युगल से पूछना होगा।
'टॉय ट्रेन' Toy Train Matheran की शुरुआती यात्रा कर्जत रेल लाइन के समानांतर होती है। लोकल ट्रेनों को देखते आगे बढ़िए- एक तीखा दायां मोड़ ट्रेन को दो पहाड़ों के बीच ले आएगा और फिर शुरू होगी घुमावदार स्पाइरल चढ़ाई।
Neral to Matheran in the Western Ghats, Matheran Toy Train 2014 से 'टॉय ट्रेन' यूनेस्को की प्रस्तावित विश्व विरासत सूची का अंग है। विश्व की सांस्कृतिक विरासत को संवारने के अमूल्य प्रयासों के निमित्त 2021 में यह गाड़ी प्रतिष्ठित यूनेस्को ग्रीस मेलिना मरकोरी इंटरनैशनल प्राइज के लिए मनोनीत की गई। बी.बी.सी. वर्ल्ड BBC World ने इसे विश्व की 'ग्रेट ट्रेन जर्नी सीरीज' Great Train Journey Series का अंग बनाया है।
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