दीपावली शब्द का अर्थ है दीपकों की पंक्तियां। 'अंधकार' पर 'प्रकाश' की विजय, जिस प्रकार दीपक की रोशनी अंधेरे को दूर कर देती है, उसी प्रकार ज्ञान की रोशनी भी अज्ञानता के अंधेरे को दूर कर देती है। यह अंधेरा चाहे दरिद्रता का हो या अज्ञानता का।
दीपावली उल्लास, प्रकाश, आनंद और अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है। कार्तिक मास की अमावस्या पर चारों दिशाएं दीपमालाओं से जगमग हो उठती हैं। दीपावली का दिन एक स्वयंसिद्ध मुहूर्त है।
यह महालक्ष्मी रूप में आदि शक्ति मां दुर्गा जी की आराधना का पर्व है। 'श्री दुर्गा सप्तशती' में मार्कंडेय ऋषि कहते हैं' या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः'। अर्थात जो दुर्गा जी हर प्राणी मात्र में लक्ष्मी रूप में स्थित हैं, मैं उन्हें बारम्बार नमस्कार करता हूं। यह लक्ष्मी देवी की आराधना का पर्व है। वह स्वर्ग में लक्ष्मी, मृत्यु लोक में राज लक्ष्मी एवं पाताल लोक में नागलक्ष्मी के तीनों रूपों में पूजी जाती हैं। 'रावण संहिता' में रावण ने कहा है कि 'लक्ष्मी साधना पृथ्वी पर सर्वोत्तम साधना है।'
दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव
धनतेरस सौभाग्य व अच्छे स्वास्थ्य की कामना का पर्व Dhanteras Kab hai : देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन से पैदा हुई माता लक्ष्मी जी के जन्म दिवस से शुरू होता है, जिसे हम धनतेरस कहते हैं। पर्व के इन दिनों में बाजारों में चारों ओर जनसमूह उमड़ पड़ता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों प्रकार से. मनाया जाने वाला एक ऐसा विशिष्ट पर्व है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व रखता है। इस दिन धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष विधान है। आगे पढ़े .....नरक चौदस को काली चौदस एवं छोटी दीपावली Chhoti Deepawali kab hai / chhoti diwali kab hai: लम्बी उम्र के लिए घर के बाहर यम का दीपक जलाने की परम्परा 'छोटी दीपावली' पर दीप जलाने का महत्व; आगे पढ़े .....
दीपावली शब्द का अर्थ है दीपकों की पंक्तियां। Deepawali kab hai : रात्रि के समय प्रत्येक घर में महालक्ष्मी जी, विघ्न विनाशक गणेश जी तथा विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अर्द्धरात्रि में मां महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आकर प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित एवं प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को खूब साफ- सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। आगे पढ़े .....
भगवान विश्वकर्मा : शिल्पकला के अधिदेवता भगवान विश्वकर्मा की पूजा दीपावली के दूसरे दिन शिल्पी वर्ग करता है। देवताओं के समस्त विमान आदि तथा अस्त्र-शस्त्र इन्हीं के द्वारा निर्मित हैं। लंका की स्वर्णपुरी, द्वारिका-धाम, भगवान जगन्नाथ का श्रीविग्रह इन्होंने ही बनाया। इनका एक नाम त्वष्टा है। सूर्य पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री हैं। इनके पुत्र विश्वरूप और वृत्र हुए। सर्वमेघ के द्वारा इन्होंने जगत की सृष्टि की और आत्मबलिदान करके, निर्माण कार्य पूर्ण किया। भगवान श्री राम के लिए सेतु निर्माण करने वाले वानर राज नल इन्हीं के अंश से उत्पन्न हुए थे। हिन्दू शिल्पी अपने कर्म की उन्नति के लिए इनकी आराधना करते हैं।
भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्यौहार 'भैया दूज' Bhai Dooj: भाई टीका Bhai Tika, भाई दूज Bhai Dooj, भाऊबीज Bhaubeej, भाई फोंटा Bhai Phonta या भ्रातृ द्वितीया Bhratri Dwitiya हिंदुओं द्वारा विक्रम संवत हिंदू कैलेंडर या शालिवाहन शक कैलेंडर के आठवें महीने कार्तिक के शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिवस पर मनाया जाने वाला त्योहार है। आगे पढ़े .....
गणपति' एवं लक्ष्मी' पूजन का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी को महालक्ष्मी का दत्तक पुत्र माना जाता है इसलिए लक्ष्मी पूजन के साथ गणपति का पूजन भी अनिवार्य माना गया है।
हमारे ऋषि-मुनियों का चिंतन है कि मनुष्य जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए श्रेष्ठ बौद्धिक सम्पत्ति अर्थात 'सद्बुद्धि' और भौतिक सम्पत्ति अर्थात 'धन' की परम आवश्यकता होती है। इन दोनों के बिना मनुष्य जीवन अधूरा ही रहता है। विघ्नहर्त्ता गणपति एवं मां लक्ष्मी के पूजन से सदबुद्धि एवं अपार धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
केवल अपार धन-सम्पत्ति से मनुष्य का जीवन आनंदमय नहीं हो सकता, उसके लिए आवश्यक है श्रेष्ठ सदबुद्धि जो मनुष्य को सदैव अध्यात्म के पथ की ओर अग्रसर करती रहे। प्रथम पूज्य देव गणपति और लक्ष्मी की आराधना से मनुष्य को इन दोनों की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी को महालक्ष्मी का दत्तक पुत्र माना जाता है, इसलिए लक्ष्मी पूजन के साथ गणपति का पूजन भी अनिवार्य माना गया है। गणपति के पूजन के बिना मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती।
हमारी सनातनी कर्मकांड पद्धति में इसीलिए ही गणपति स्तोत्र में विशेष रूप से गणेश जी की आराधना करने के लिए प्रेरित किया गया है। गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश की स्तुति करते हुए कहा गया है कि
ओम् नमो विघ्न नाशाय सर्व सौख्यप्रदायिने ।
दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परमात्मने ॥
अर्थात: सभी प्रकार के सुख प्रदान करने वाले विघ्नराज को नमन है। जो दुख अरिष्ट आदिग्रहों का विनाश करने वाले हैं, उस गणपति को नमस्कार है। गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश को मोदक प्रिय कहा गया है। इन्हें सदैव वर प्रदान करने वाला कहा गया है। मां लक्ष्मी की कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिए गणपति स्तोत्र की आराधना बड़ी ही कल्याणकारी मानी गई है। गणपति स्तोत्र में कहा गया है कि-
इदं गणपति स्तोत्रं यः पठेद् भक्तिमान नरः ।
तस्य देहे च गेहे च स्वयं लक्ष्मी न मुन्वति ।।
अर्थात भक्तिभाव से परिपूर्ण जो मनुष्य इस गणपति स्तोत्र का श्रद्धाभक्ति के साथ पाठ करता है, उसके शरीर और घर को लक्ष्मी स्वयं कभी नहीं छोड़तीं। भगवान गणेश की आराधना सर्वदा फलदायी मानी गई है। कनकधारा स्तोत्र में मां लक्ष्मी की आराधना के मंत्र निहित हैं।
स्तोत्र में बताया गया है कि मां लक्ष्मी की उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों, संपत्तियों का विस्तार करती है। जो उपासक भगवान विष्णु की हृदय देवी मां लक्ष्मी का मन, वचन, वाणी और शरीर से भजन करता है, उस पर अपार धन-ऐश्वर्य के माध्यम से मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि होती है।
कमल के समान नेत्रों वाली, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाली एवं समस्त नीच प्रवृत्तियों को हरण करने वाली मां लक्ष्मी का अवलंबन उपासक को सदैव धर्म के मार्ग की ओर अग्रसर करता है।
ऋग्वेद के श्रीसूक्त में भी मां लक्ष्मी को सुख, समृद्धि, सिद्धि तथा वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है।
इन सभी पदार्थों की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मानव के लिए लक्ष्मी की उपासना करना अनिवार्य है। ऋग्वेद के लक्ष्मी सूक्त के मंत्रों से मां लक्ष्मी का विधिवत पूजन एवं इन मंत्रों के माध्यम से अग्निहोत्र में आहुतियां देने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हमारे मनीषियों का कहना है कि जिस प्रकार एक माता को अपने पुत्र से अत्यधिक स्नेह होता है और जो भी उसके पुत्र को प्रसन्न करता है, माता सदैव उस पर प्रसन्न रहती है, ठीक इसी प्रकार गणेश जी मां लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। गणपति की विधिवत आराधना से मां लक्ष्मी स्वत: ही प्रसन्न हो जाती हैं।
गणेश जी श्रेष्ठ बौद्धिक संपत्तियों, एवं मां लक्ष्मी भौतिक -ऐश्वर्य की प्रतीक हैं। अगर हमारी बुद्धि में श्रेष्ठ देवतुल्य धन- प्रवृत्तियों का समावेश है तो हम धन-संपत्ति का अपने जीवन में सदुपयोग करने में सक्षम बन सकते हैं। गणपति और मां लक्ष्मी की आराधना मनुष्य को उत्तम बौद्धिक शक्ति एवं धन ऐश्वर्य की प्राप्ति करवाती है।
आरती
श्री लक्ष्मी जी की ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु धाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
तुम पाताल-निवासिनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
दीपावली के ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़े कई प्रसंग हैं।
दीपावली खुशियों और उमंगों का त्यौहार हमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के साथ-साथ अन्य महान विभूतियों तथा ऐतिहासिक घटनाओं का भी स्मरण कराता है। जैन संप्रदाय के प्रवर्तक श्री महावीर, वेदों के प्रकांड विद्वान स्वामी रामतीर्थ और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती आदि का इस दीपमालिका के पर्व के साथ गहरा संबंध है। आइए जानें-
महावीर स्वामी
जैन धर्म के प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी वैशाली के राज परिवार में जन्मे थे। बचपन में उनको वर्धमान नाम से पुकारा जाता था। अकूत धन-संपत्ति होने के बावजूद वर्धमान का भौतिक सुखों में जी नहीं लगा, इसलिए 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने आत्मज्ञान की लालसा में घर छोड़ दिया। अविराम 12 वर्ष तक भ्रमण करने पर उन्हें आत्मबोध की प्राप्ति हुई। महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता सार्वकालिक है। बिहार की पावापुरी में उन्हें 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त हुआ ।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान गौतम
बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। बौद्ध धर्म के समर्थकों व अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व लाखों दीपक जला कर दीपावली के दिन उनका स्वागत किया था। आज भी बौद्ध धर्म के अनुयायी दीपावली के दिन अपने स्तूपों पर अनगिनत दीपक भगवान बुद्ध प्रज्वलित करके भगवान बुद्ध का स्मरण करते हैं ।
स्वामी दयानंद सरस्वती
आर्य समाज के संस्थापक और 'सत्यार्थ प्रकाश' महाग्रंथ के रचयिता स्वामी दयानंद सरस्वती गुजरात के निवासी थे । जिज्ञासु प्रवृत्ति होने के कारण स्वामी जी ने छोटी उम्र में ही घर का परित्याग कर संसार को अलग दृष्टि से देखा । बहुत घूमने-फिरने के बाद मथुरा के स्वामी विरजानंद से उनका संपर्क हुआ तथा उन्हें स्वामी विरजानंद से ही ज्ञान का मूल मंत्र मिला। स्वामी दयानंद के समय में हिन्दू धर्म में अनेक सामाजिक कुरीतियां, अंधविश्वास और आडम्बर पनप रहे थे। उन्होंने इन कुरीतियों से आम जनमानस को सचेत किया और वैदिक संस्कृति का पक्ष लिया।
राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद करने और समाज में जागृति लाने वाला यह महापुरुष दीपावली के दिन हमसे सदा-सदा के लिए बिछुड़ गया।
स्वामी रामतीर्थ
स्वामी रामतीर्थ को वेदों के प्रकांड ज्ञाता और विद्वान के रूप में जाना जाता है। सिर्फ 22 वर्ष की उम्र में गणित विषय के साथ एम.ए. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने वाले स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब में हुआ था।
स्वामी जी का बाल्य जीवन अत्यंत अभावों में बीता। अध्ययन के पश्चात् उन्होंने कालेज में अध्यापन का कार्य किया और घर-गृहस्थी भी बसाई लेकिन जब इनमें मन नहीं लगा तो संन्यासी बन गए। मात्र 33 वर्ष की आयु में उन्होंने भागीरथी (गंगा) नदी में जल समाधि ले ली।
गुरु हरगोबिंद साहब जी
सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहब जी, जो ग्वालियर के किले में कैद थे, ने इसी दिनस्वयं को तथा भारत के 52 राजाओं को मुगल गुरु हरगोबिंद साहब जी शासक जहांगीर के कारागार से मुक्त करवाया था। इसी दिन से इनके नाम के साथ एक नाम और 'बंदी छोड़' जुड़ गया। गुरु जी ने बिना भेदभाव के सभी कैदियों को छुड़वाया। गुरु जी के अमृतसर पहुंचने की खुशी में बाबा बुड्ढा जी ने दीपमाला की थी।
इसके बाद गुरु हरगोबिन्द साहिब ने मीरी-पीरी नाम से दो तलवारें रख कर सिखों में संत के साथ-साथ सिपाही होने की परम्परा भी शुरू की। स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य भी इसी दिन शुरू किया गया था। अमृतसर की दीपावली इसी कारण, प्रसिद्ध है।
स्वामी शंकराचार्य
स्वामी शंकराचार्य का निर्जीव शरीर जब चिता पर रख दिया गया था, तब सहसा उनके शरीर में इसी दिन पुनः प्राणों का संचार हुआ था ।
भगवान विश्वकर्मा
शिल्पकला के अधिदेवता भगवान विश्वकर्मा की पूजा दीपावली के दूसरे दिन शिल्पी वर्ग करता है। देवताओं के समस्त विमान आदि तथा अस्त्र-शस्त्र इन्हीं के द्वारा निर्मित हैं। लंका की स्वर्णपुरी, द्वारिका-धाम, भगवान जगन्नाथ का श्रीविग्रह इन्होंने ही बनाया। इनका एक नाम त्वष्टा है। सूर्य पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री हैं। इनके पुत्र विश्वरूप और वृत्र हुए। सर्वमेघ के द्वारा इन्होंने जगत की सृष्टि की और आत्मबलिदान करके, निर्माण कार्य पूर्ण किया। भगवान श्री राम के लिए सेतु निर्माण करने वाले वानर राज नल इन्हीं के अंश से उत्पन्न हुए थे। हिन्दू शिल्पी अपने कर्म की उन्नति के लिए इनकी आराधना करते हैं।
राजा बलि
जब राजा बलि ने अपने पाताल लोक की रक्षा हेतु भगवान विष्णु जी से वहीं रहने का वर मांगा, तो प्रभु वहीं ठहर गए। तब मां लक्ष्मी जी की प्रार्थना पर राजा बलि ने दीपावली पर्व पर मां लक्ष्मी जी को अपने पति श्री हरि विष्णु जी को आदर सहित जाने की आज्ञा दी। तब तीनों लोकों मे दीपोत्सव पर्व मनाया गया।
यम
समुद्र मंथन में इसी दिन धनवंतरी जी प्रकट हुए।
इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास किया गया था।
नेपाल में इसी दिन नया वर्ष प्रारंभ होता है।
Thankyou