भारत में छठ पूजा तिथि 2024 Chhath Puja Kab Hai : छठ पूजा Chhath Puja 2024, भारत में सबसे प्राचीन और पूजनीय त्योहारों में से एक, सूर्य देवता और प्रकृति का उत्सव है। मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाने वाला छठ पूजा Chhath Puja त्योहार ऊर्जा के ब्रह्मांडीय स्रोत, सूर्य की पूजा, अनुष्ठान और भक्ति का एक भव्य अवसर है।
Chhath Puja Image
गंगा घाट पर टिमटिमाते दीये, छठ के पारम्परिक गीतों और वैदिक मंत्रों की उठती स्वर लहरियां एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं। ऐसा अद्भुत और विहंगम दृश्य हर साल पटना सहित उत्तर भारत के सभी प्रमुख गंगा घाटों, नदियों और तालाबों के किनारे देखने को मिलता है। यह पावन मौका होता है कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ पर्व का। 'छठ माई', 'छठ, सूर्य षष्ठी' या 'डाला छठ' Chhath Puja नाम से प्रसिद्ध यह पर्व मुख्य रूप से भगवान भास्कर यानी सूर्य को समर्पित है।
छठ पूजा 2024 कब है? / छठ पूजा 2024 किस तारीख को है? Chhath Puja Kab Hai / Chhath Puja 2024 / chhath puja kitne tarikh ko hai
कब है छठ 2024? छठ पूजा Chhath Puja चार दिनों तक मनाई जाती है, इसकी मुख्य रस्में तीसरे दिन मनाई जाती हैं। 2024 में ( chhath puja 2024 date ), षष्ठी तिथि 7 नवंबर को सुबह 12 बजकर 41 मिनट से आरंभ हो रही है, 8 नवंबर को सुबह 12 बजकर 35 मिनट समाप्त हो रही है। उदया तिथि के आधार पर छठ पूजा Chhath Puja 7 नवंबर को है। इस दिन शाम के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
छठ पूजा की ऐतिहासिक जड़ें Chhath Puja background
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन वैदिक ग्रंथों में खोजा जा सकता है, जो इसे भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक बनाता है। ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा 2,000 वर्षों से भी अधिक समय से मनाई जा रही है। "छठ" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द "षष्ठी" से हुई है, जिसका अर्थ है छठा दिन, यह दर्शाता है कि यह त्योहार दिवाली के बाद चंद्र माह के छठे दिन Chhath Puja मनाया जाता है।
मान्यता है कि छठ पूजा Chhath Puja का चलन बिहार से ही शुरू हुआ, जो आज देश व कई देशों में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम और ओडिशा से निकल कर यदि हम बात करें पंजाब की, तो यहां भी छठ पूजा Chhath Puja वैसे ही मनाया जाता है जैसा कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में। पंजाब के तीन प्रमुख बड़े शहरों लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में तो छठ पूजा Chhath Puja पर वृहद आयोजन किए जाते हैं। लुधियाना में सतुलज किनारे छठ व्रती सूर्य की उपासना करते हैं। इसी तरह जालन्धर में हजारों की संख्या मे श्रद्धालु छठ पूजा Chhath Puja करते हैं।
अमृतसर के प्रसिद्ध दुर्ग्याणा तीर्थ परिसर और तारांवाला नहर के किनारे छठ पूजा Chhath Puja संपन्न कराने के लिए मंदिर कमेटी और जिला प्रशासन की ओर से व्यापक प्रबंध किए जाते हैं।
छठ पूजा कब और कैसे शुरू हुई ?
छठ की पूजा chhath puja कब और कैसे शुरू हुई यह तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता लेकिन, इतना जरूर है कि सूर्य षष्ठी व्रत अनादि काल से चला आ रहा है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति की पूजा किसी न किसी रूप में की जाती है। मान्यता है कि रामायण काल में माता सीता ने जब सूर्य देव की उपासना की वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी।
एक उल्लेख मगध नरेश जरासंध का भी आता है। कहा जाता है कि उसको कुष्ठ रोग हो गया था। उसने बहुत उपचार करवाया पर ठीक नहीं हुआ। किसी ब्राह्मण ने उसे सूर्य उपासना करने की सलाह दी। जरासंध ने ऐसा किया तो उसका कुष्ठ ठीक हो गया। इसके बाद जरासंध ने नियमित सूर्य उपासना शुरू कर दी, तभी से छठ पूजा Chhath Puja का प्रचलन माना जाता है।
छठ पूजा chhath puja को लेकर एक अन्य मान्यता कर्ण और द्रौपदी की भी है। मान्यता है कि कर्ण सूर्य पुत्र और महादानी था। कर्ण के बारे में कहा जाता है कि वह गंगा में प्रतिदिन सुबह कमर तक जल में खड़े हो कर सूर्य की उपासना करता था। आज भी छठ व्रती कमर तक जल में घंटों खड़े रह कर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। महाभारत में ही द्रौपदी की कथा आती है जिसके अनुसार जुए में हारे हुए पांडवों के राज्य की प्राप्ति के लिए भगवना श्री कृष्ण की सलाह पर द्रौपदी ने भी सूर्य की उपसना की थी।
छठ पूजा का महत्व
सूर्य देव की पूजा: छठ पूजा Chhath Puja सूर्य देव की पूजा को समर्पित है। सूर्य को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, और भक्त अपने परिवार की खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए उनकी पूजा करते हैं।
सूर्य की दोनों पत्नियों की भी होती है पूजा :
मान्यता है कि अस्त और उदय होते आदित्य के साथ- साथ उनकी दोनों पत्नियों संध्या और ऊषा की भी पूजा की जाती है। शायद यही कारण है कि डूबते और उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।
फसल उत्सव:
छठ पूजा Chhath Puja का फसल उत्सव के रूप में भी महत्व है। यह फसल के बाद के मौसम के दौरान मनाया जाता है जब किसान भरपूर फसल के लिए सूर्य का आभार व्यक्त करते हैं और अपनी भूमि की उर्वरता के लिए प्रार्थना करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व: छठ पूजा Chhath Puja को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने वाला त्योहार माना जाता है। भक्त कठोर उपवास रखते हैं और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे मन और शरीर शुद्ध होता है और समृद्धि आती है।
सामुदायिक जुड़ाव:
छठ पूजा Chhath Puja एक समुदाय-संचालित त्योहार है, जो एकता और सामाजिक जुड़ाव पर जोर देता है। परिवार और पड़ोस अनुष्ठान करने और सामूहिक प्रार्थना करने के लिए एक साथ आते हैं।
समाज के हर वर्ग को जोड़ता है:
छठ पर्व ( छठ पूजा Chhath Puja ) में कच्चे बांस से बनी टोकरियों और सूप का इस्तेमाल तो किया ही जाता है, इसमें मौसमी फलों के साथ-साथ सब्जियों और अन्न का भी प्रसाद के तौर पर इस्तेमाल होता है। यह पर्व बांस की टोकरियां बनाने वालों से लेकर मिट्टी के दीए, बर्तन बनाने वाले, फल और सब्जियां उगाने वालों और दुकानदारों को भी साथ जोड़ता है।
छठ अनुष्ठान का महत्व
नहाय खाय: पहले दिन भक्त पवित्र नदी या तालाब में डुबकी लगाते हैं, इसके बाद कद्दू (कद्दू) और अरवा (चावल) का भोजन करते हैं।
लोहंडा और खरना: दूसरे दिन, भक्त सख्त उपवास रखते हैं, और शाम को, वे गुड़, ठेकुआ (एक मीठा नाश्ता) और फलों से मिलकर एक विशेष प्रसाद (प्रसाद) तैयार करते हैं।
संध्या अर्घ्य: तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है. भक्त सूर्योदय से पहले नदी तट पर इकट्ठा होते हैं और उगते सूर्य को 'अर्घ्य' देते हैं। इस अनुष्ठान के बाद वे अपना उपवास तोड़ते हैं।
उषा अर्घ्य: अंतिम दिन, सूर्यास्त के समय 'अर्घ्य' देने की वही रस्म निभाई जाती है।
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