हनुमान और मेघनाथ का युद्ध hanumaan megh aur naath ka yuddh : जब मेघनाद हनुमान जी को बंदी बनाकर रावण के पास ले गया अपने सामने श्री हनुमान जी Hanuman Ji ने देखा कि राक्षसों का राजा रावण बहुत ही ऊंचाई पर सोने के सिंहासन पर बैठा हुआ है। उसके आस-पास बहुत से बलवान योद्धा और मंत्री आदि बैठे हुए हैं लेकिन रावण के इस प्रताप और वैभव का हनुमान जी Hanuman Ji पर कोई असर नहीं पड़ा। वह वैसे ही निडर खड़े रहे। अपने सामने अत्यंत निर्भय और निडर हनुमान जी को इस प्रकार खड़े देख कर रावण ने पूछा, "बंदर ! तू कौन है ? वाटिका के पेड़ों को किसके बल के सहारे तुमने नष्ट किया है? राक्षसों को क्यों मारा है? क्या तुझे अपने प्राण का डर नहीं है? मैं तुझे बहुत निडर और उदंड देख रहा हूं।'

'यदि तुम यह जानना चाहते हो कि मैंने अशोक वाटिका के फल क्यों खाए, पेड़ आदि क्यों तोड़े, राक्षसों को क्यों मारा तो मेरी बात सुनो। मुझे बहुत जोर की भूख लगी थी, अतः मैंने वाटिका के फल - खा लिए। बंदर-स्वभाव के कारण कुछ पेड़ टूट गए। अपनी देह सबको बहुत प्यारी होती है, तो जिन लोगों ने मुझे मारा तो उन्हें मैंने भी मारा बताओ इसमें मेरा क्या दोष है? लेकिन इसके बाद भी तुम्हारे पुत्र ने मुझे अभी बांध रखा है। "
रावण को बहुत ही क्रोध चढ़ आया। उसने राक्षसों को हनुमान जी Hanuman Ji को मार डालने का आदेश दिया। राक्षस उन्हें मारने दौड़े लेकिन तब तक विभीषण ने वहां पहुंच कर रावण को समझाया कि यह तो दूत है। इसका काम अपने स्वामी का संदेश पहुंचाना है। इस कारण इसका वध करना उचित नहीं होगा इसको कोई और दंड देना ही ठीक होगा।
यह सलाह रावण को पसंद आ गई। उसने कहा, “ठीक है। बंदरों को अपनी पूंछ से बड़ा प्यार होता है। इसकी पूंछ पर कपड़े लपेट कर, तेल डालकर आग लगा दो। जब यह बिना पूंछ का होकर अपने स्वामी के पास जाएगा, तब फिर उसे भी साथ लेकर लौटेगा।"
यह कहकर वह जोर से ठठाकर हंसा। रावण का आद्रेश पाकर राक्षस हनुमान जी की पूंछ पर तेल से भिगो-भिगोकर कपड़े लपेटने लगे। अब तो हनुमान जी Hanuman Ji ने बड़ा ही मजेदार खेल किया वह धीरे-धीरे अपनी पूंछ बढ़ाने लगे।
अंत में ऐसा हुआ कि पूरी लंका में कपड़े, तेल, घी आदि कहीं बचे ही नहीं। तब राक्षसों ने उनकी पूंछ में आग लगा दी। तुरन्त पूंछ में आग लगते ही हनुमान जी Hanuman Ji फुर्ती से उछलकर एक ऊंची अटारी पर जा पहुंचे। वहां से चारों ओर कूद-कूद कर वह लंका को जलाने लगे। देखते ही देखते पूरी नगरी आग की विकराल लपटों में घिर गई। सभी राक्षस, राक्षसियां जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगे। वे सबके सब रावण की निंदा कर रहे थे। रावण को आग बुझाने का कोई . उपाय न सुझाई दे रहा था।
पवन देवता भी जोर-जोर से हनुमान जी Hanuman Ji की सहायता करने के लिए बहने लगे और पूरी लंका थोड़ी ही देर में जलकर नष्ट हो गई केवल विभीषण का घर हनुमान जी ने छोड़ दिया उसे नहीं जलाया ।
लेखक
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
आगे पढ़िए ... जानिये अद्भुत पराक्रम हनुमानजी का
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