उसने कहा, "जो आप पुकारें ।
बादशाह ने पूछा, "तू खाएगा क्या ?"
गुलाम बोला जो आप खिलाएं।
बादशाह ने गुलाम से पूछा, "तुझे कैसे कपड़े पसंद हैं ?"
गुलाम बोला जो आप पहनाएं।
बादशाह दंग रह गए। उन्होंने पूछा, "तू आखिर चाहता क्या है?"
गुलाम सिर झुकाकर बोला "गुलाम की भला क्या चाह ?"
बादशाह गद्दी से उतरकर उसे गले लगाते हुए बोले आज से तू मेरा उस्ताद है। तूने जाने-अंजाने में मुझे बहुत बड़ी बात सिखा दी। किसी इंसान को हक नही है की वह दूसरे को अपना गुलाम बनाए। तेरी बातों से मुझे पता चला कि खुदा के साथ हमारा रिश्ता कैसा होना चाहिए? ज्यादा पाने की चाह रखने की बजाय हमें खुद को पूरी तरह से उसी के हवाले कर देना चाहिए। इसी में हमारा भला है।
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गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी
प्रकृति किसी न किसी रूप में सजा अवश्य देती है।
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