वाणी मनुष्य को ईश्वर की दी हुई अनुपम देन है, इसलिए तो वाणी एक अनमोल वरदान साबित होती हैं। वार्तालाप की शिष्टता ही मनुष्य को आदर का पात्र बनाती है औरउसकी समाज में सफलता के लिए रास्ता भी साफ़ कर देती है। कटुवाणी किसी भी आदमी की, किसी को भी रुष्ट कर सकती है तो इसके उलट मधुरवाणी दूसरे को अतिप्रसन्न भी कर सकती है। इसलिए मधुरवाणी एक वरदान सामान है

ये उन दिनों की बात है जिन दिनों में दास प्रथा बहुत प्रचलित थी, एक-एक मालिक के पास बहुत दास /गुलाम हुआ करते थे उन्हीं में से एक नाम लुक़मान गुलाम का भी एक था । लुक़मान दास होते हुए भी वह बड़ा ही चतुर, चालक और बुद्धिमान होने के उसकी ख्याति दूर-दूर तक के इलाकों में फैलने लगी थी और इस बात की खबर एक दिन उसके मालिक को भी लगी, फिर मालिक ने लुक़मान को अपने पास बुलाया और कहा - लोगों से सुना हैं, कि तुम बहुत चतुर, चालक और बुद्धिमान हो इसलिए मैं तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता हूँ। तुम्हें इस गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो । अब अच्छा जाओ और एक मरे हुए बकरे का बढ़िया जो हो, उसे लेकर आओ।
लुक़मान अपने मालिक के सामने तुरंत आदेश का पालन करते हुए मरे हुए बकरे की सिर्फ जीभ लाकर रख दी।
इसका कारण पूछने पर कि वह जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने अपने मालिक से कहा - अगर जीभ अच्छी हो तो मनुष्य के शरीर में सब कुछ अच्छा है।
फिर आदेश देते हुए लुक़मान के मालिक ने कहा “इसको अब उठा लो और अब उस बकरे का जो हिस्सा सबसे बुरा हो उसको लेकर आओ।”
लुक़मान फिर बाहर गया परन्तु उसी जीभ को थोड़ी ही देर में उसने फिर फिर से लाकर रख दिया। कारण पूछने पर उसने कहा “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा ही बुरा है"
उसने आगे कहते हुए कहा- “ मालिक ! वाणी तो सभी मनुष्य के पास जन्म से होते हुए भी बोलना तो किसी-2 को ही आता है की बोलें? कैसे शब्द बोलें और कब बोलें, इस कला को बहुत ही कम लोग जान पाते हैं। एक बात से प्रेम झड़ता है और दूसरी बात से झगड़ा भी होता है।
इस संसार में कड़वी बातों ने न जाने कितने लड़ाई-झगड़े पैदा कर किये हैं। मनुष्य की इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े से बड़े कहर ढाये हैं। सिर्फ जीभ तीन इंच की वो खतरनाक हथियार है, जिससे किसी भी छः फुट के आदमी को आसानी से मारा जा सकता है इसी तरह कुछ मधुरवाणी से मरते हुए इंसान में भी प्राण भी फूंका जा सकता है । वाणी का वरदान संसार के सभी जीवो में सिर्फ मानव को ही मिला है। जिसके सही उपयोग से पृथ्वी पर ही स्वर्ग हो सकता है और इसके दुरूपयोग से नरक में भी बदल सकता है इसी का उदाहरण है भारत के महाभारत का विनाशकारी युद्ध जो की वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम है।"
अब लुक़मान का मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों से खुश हो गए क्योंकि आज उनके गुलाम लुक़मान ने उन्हें एक बड़ी और अच्छी सीख दी थी इसलिए उन्होंने लुक़मान को आजाद कर दिया।
दोस्तों, मधुरवाणी एक वरदान सामान है जो हमें लोकप्रिय भी बनाती है वहीँ कर्कश या तीखी बोली हमें अप यश ही दिलाती है और हमारी प्रतिष्ठा को कम करती रहती है। अब आप सोचिये आपकी वाणी कैसी है ? यदि वो तीखी है या फिर सामान्य भी है तो भी उसे मीठा बनाने का प्रयास करते रहिये। आपकी वाणी ही आपके व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है, उसे आपके लिए अच्छा होना ही चाहिए।
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