भारत की संस्कृति में देवी उपासना का विशेष महत्व है और देवी को शक्ति का स्वरूप मानते हुए विभिन्न रूपों में उनकी पूजा-आराधना की जाती है। हरियाणा की पावनधारा को ऋषि-मुनियों की तपोभूमि तथा श्रीमद्भगवत गीता की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है।
पंचकूला का माता मनसा देवी मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिस्थलों में गिना जाता है जो लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। 100 एकड़ में फैला यह मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा हुआ है और मां दुर्गा के मनसा रूप को समर्पित है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन करने और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।
माँ मनसा देवी का इतिहास क्या है?
पुराणों के अनुसार, दक्ष यज्ञ के समय जब माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए, तो भगवान शंकर ने उनके शरीर को उठाकर तांडव किया। उस समय भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। एक मान्यता के अनुसार यहां माता के सिर का अग्र भाग गिरा था।
ये पीठ न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि शक्ति साधना के सर्वोच्च केंद्र भी माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडव भी अपने वनवास काल में यहां पधारे थे। मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा शक्ति, भक्ति और आस्था की प्रतीक है।
मणिमाजरा के महाराजा गोपाल दास सिंह ने वर्तमान मुख्य मंदिर का 1811-1815 में निर्माण कराया।
मुख्य मंदिर से 200 मीटर की दूरी पर पटियाला शिवालय मंदिर है, जिसका निर्माण 1840 में पटियाला के तत्कालीन महाराजा करम सिंह ने करवाया था। माता मनसा देवी मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी है।
नवरात्रि के समय यहां का वातावरण अत्यंत दिव्य और अद्भुत हो जाता है। श्रद्धा का सागर उमड़ पड़ता है, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु मां के दरबार में पहुंचते हैं। जगह-जगह भजन-कीर्तन, देवी जागरण और भव्य मेले का आयोजन होता है और वातावरण मां की आराधना से गूंजता है। यहां केवल धार्मिक आयोजन नहीं होता, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक चेतना को भी संजीव कर देता है।
भक्त माता के दरबार में नारियल, चुनरी और प्रसाद अर्पित कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। मंदिर परिसर का सौंदर्य और यहां की व्यवस्थाएं भी उल्लेखनीय हैं। हरे-भरे बाग, भव्य तोरणद्वार और विशाल प्रांगण श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराते हैं।
धार्मिक दृष्टि से यह मंदिर शक्ति उपासना की उस परंपरा को भी जीवित रखे हुए है, जो वेदों और पुराणों में वर्णित है।
' या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता '
यह श्लोक बताता है कि माता हर प्राणी में शक्ति स्वरूप से विद्यमान हैं। पंचकूला का यह मंदिर उसी सत्य का प्रतीक है, जहां भक्त अपनी आत्मा को शक्ति और शांति से भरकर लौटते हैं।
मंदिर प्रबंधन का कार्य हरियाणा सरकार के नियंत्रण में आने से उन्होंने मंदिर के प्रबंधन हेतु 'श्री माता मनसा देवी श्राइन बोर्ड पंचकूला' ट्रस्ट की स्थापना की।
हरियाणा सरकार ने एक अधिनियम (हरियाणा अधिनियम संख्या 14, 1991) बनाया, जिसे 'श्री माता मनसा देवी श्राइन अधिनियम (1991)' नाम दिया गया।
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