महान कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र का हिंदी के विकास में बहुमूल्य योगदान है। एक बार एक साहूकार ने उनके विरुद्ध 3000 रुपए का अदालत में दावा कर दिया। उसका कहना था कि भारतेंदु ने उससे एक नाव खरीदी थी और कुछ रुपए उधार लिए थे, जिन्हें वे अभी तक लौटा न पाए थे। न्यायाधीश ने भारतेंदु जी को अकेले में बुलाकर पूछा कि नाव का वास्तविक मूल्य क्या था और उन्होंने कितने रुपए उधार लिए थे।
न्यायाधीश को जवाब देते हुए भारतेंदु बोले, "दावे में लिखा मूल्य सही है और नकद राशि भी सही है।" वहां उपस्थित लोगों ने उन्हें अकेले में समझाया कि कुछ दे-दिलाकर इस मामले से छुटकारा पा लो। सजा मिलने पर अत्यंत परेशानी होगी। वह सब की सुनते रहे। उनसे जब दोबारा पूछा गया कि क्या उन्होंने वास्तव में उनसे नाव खरीदी थी और दावे में लिखी गई रकम ली थी तो वे अपनी बात दोहराते हुए बोले, "महाजन ने सही दावा किया।" तभी एक व्यक्ति बोला, "भारतेंदु जी, आप एक जाने-माने लेखक हैं। ऐसे में आप यदि दावे से मुकर भी. जाते तो महाजन आपका कुछ नहीं कर सकता था।"
भारतेंदु बोले, "आपने ही कहा कि मैं एक जाना-माना लेखक हूं। ऐसे में तो मेरी सत्य पर चलने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। यदि मैं असत्य की डगर पर चलूंगा तो कल को लोग कहेंगे कि लेखक की कथनी और करनी में अंतर था। यह कैसा लेखक हुआ ?" साहूकार भारतेंदु की सत्यवादिता से अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने अपना केस वापस ले लिया।
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