
भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत को समाप्त करने के लिए विदेशी आक्रांताओं ने कई हमले किए। देश के शूरवीरों ने विरासत बचाने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा दिया। ऐसी ही होल्कर वंश की महारानी अहिल्याबाई Maharani Ahilyabai Holkar थीं। उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब द्वारा तोड़े मंदिरों का भारत भर में पुनःनिर्माण करवाया।
उनका जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के चौंडी ग्राम में हुआ। इनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गाव के पाटिल थे। छोटी आयु में इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर अपने पुत्र खंडेराव से इन्हें विवाह लाए। अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव और एक कन्या मुक्ताबाई का जन्म हुआ। अपने महान पिता के मार्गदर्शन में खण्डेराव एक अच्छे योद्धा बन गए परंतु भरी जवानी में ही 1754 के कुम्भेर युद्ध में शहीद हो गए।
1766 में अहिल्याबाई के ससुर मल्हार राव होलकर को भी मृत्यु ने अपनी आगोश में ले लिया, जिसके एक साल बाद इन्हें मालवा साम्राज्य की महारानी Ahilyabai Holkar Queen of Malwa का ताज पहनाया गया।
सत्ता संभालते ही इन्होंने प्रजा हितार्थ और जनकल्याण के प्रशंसनीय कार्य किए। अपने साम्राज्य को मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाने के लिए हमेशा कोशिश करती रहीं और स्वयं अपनी सेना के साथ युद्ध करती थीं।
मल्हार राव के भाई-बन्दों में तुकोजीराव होल्कर एक विश्वासपात्र युवक थे, जिसे उन्होंने अपनी सेना के 'सेनापति के रूप में नियुक्त किया था।
रानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। उनका मानना था कि धन प्रजा व ईश्वर की दी हुई धरोहर स्वरूप निधि है।
इसलिए उन्होंने लोगों के विश्राम के लिए मुख्य तीर्थस्थलों गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट , उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास बहुत-सी धर्मशालाएं भी बनवाईं और मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े हुए मंदिरों के जीर्णोद्धार के साथ-साथ सोमनाथ में शिवजी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बनवाया।
शिव भक्त अहिल्याबाई का सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य पालन और परमार्थ की साधना का बन गया। शिवपूजन के बिना मुंह में पानी की एक बूंद नहीं जाने देती थीं। सारा राज्य उन्होंने शंकर को अर्पित कर रखा था और स्वयं उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थीं। शिवजी के प्रति उनके समर्पण भाव का पता इस बात से चलता है कि अहिल्याबाई राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थीं, बल्कि पत्र के नीचे केवल 'श्रीशंकर' लिख देती थीं।
उन्होंने 1777 में विश्वप्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। आज भी इनकी प्रतिमा विश्वनाथ मंदिर के कॉरीडोर में लगी है।
उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर, गया में विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया। इन्होंने घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, भूखों के लिए अन्नक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाए, मंदिरों में शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु विद्वानों की नियुक्ति की। जीवनकाल में ही इन्हें जनता 'देवी' समझने और कहने लगी थी।
रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर ले गईं, जहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल के इर्द-गिर्द बनी राजधानी की पहचान बनी टैक्सटाइल इंडस्ट्री।
उस दौरान महेश्वर साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था। अद्भुत शासनकाल के दौरान मराठा प्रांत की राजमाता अहिल्याबाई होलकर Ahilyabai Holkar ने एक छोटे से गांव इंदौर को एक समृद्ध एवं विकसित शहर बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्हें एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने भारत के अलग-अलग राज्यों में मानवता की भलाई के लिए अनेक कार्य किए और स्त्रियों की सेना भी बनाई।
अहिल्याबाई मानती थीं, "मेरा काम प्रजा को सुखी रखना है, सामर्थ्य और सत्ता के बल पर मैं जो कुछ कर पा रही हूं, उसका ईश्वर के यहां मुझे जवाब देना होगा।"
लगभग 28 वर्षों तक राज्य की चिन्ता का भार संभालने के बाद 13 अगस्त, 1795 को 70 वर्ष की आयु में वह महानिद्रा में सो गईं।
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