जानिए भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कैसे हुई? Chitragupta Bhagwan ki Utpatti Kaise Hui 'वित्तगुप्त' से 'चित्रगुप्त' बनने की कहानी : श्री चित्रगुप्त भगवान के अवतरण की कथा उनके पृथ्वी पर उज्जैन के करीब शिप्रा नदी के तट पर उतरने से पहले घटित हुई। उनका अवतरण देवलोक में भगवान ब्रह्मा की वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था। श्याम वर्ण के चार भुजाओं वाले श्री चित्रगुप्त भगवान के एक हाथ में तलवार है, दूसरे में वेद, तीसरे में कलम तूलिका और चौथा हाथ कल्याण हेतु आशीष देता हुआ है।

इसी रूप में भगवान ब्रह्मा से श्री चित्रगुप्त जी Shree Chitragupta Ji ने अपना परिचय मांगा। भगवान ब्रह्मा ने बताया, "आपकी छवि बरसों से साधित मेरी तपस्या के दर्मियान गुप्त से मेरे चित्त में निर्मित होती रही, इसीलिए आपका नाम चित्तगुप्त हुआ।"
ब्रह्मा जी ने आगे कहा की उनके संतान कायस्थ कहलाएंगे, चूंकि वह (श्री चित्त गुप्त) श्री ब्रह्म की 'काया में वर्षों अस्त' यानी विराजमान रहे।
श्री ब्रह्मा जी ने श्री चित्रगुप्त जी Chitragupt Maharaj ji की भूमिका बतौर पाप-पुण्य लेखाकार, न्यायाधिकारी और दंडाधिकारी तय की।
कालांतर में चित्तगुप्त शब्द का अपभ्रंश से चित्रगुप्त Chitragupt नाम प्रचलित हो गया। 2025 में श्री चित्रगुप्त भगवान Chitragupt Bhagwan Ji का अवतरण दिवस 12 तथा 13 अप्रैल (चैत्र पूर्णिमा) के दिन पड़ेगा। वैदिक पंचांग के अनुसार, 12 अप्रैल को प्रात: काल 3.21 मिनट पर चैत्र पूर्णिमा की शुरुआत होगी। वहीं, 13 अप्रैल को सुबह 5.51 मिनट पर चैत्र पूर्णिमा समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है।
श्री चित्रगुप्त भगवान Chitragupta Bhagwan की अवतरण कथा माण्डव ऋषि द्वारा यम को दिए हुए श्राप से जुड़ी है। ब्रह्मांड की सृष्टि के प्रारंभ में भगवान ब्रह्मा ने दक्षिण स्थित मृत्युलोक और समस्त प्राणियों के पाप-पुण्य के निर्धारण का कार्यभार यमदेव को सौंपा था, पर कुछ ही समय में यमदेव से अपने कार्य निर्वाहन में भारी चूक हो गई।
यमदेव ने अल्प समझ से मांडव ऋषि को गलत मृत्यु दंड देने का प्रयास किया, जिससे मांडव ऋषि कुपित हो गए और यमदेव को श्राप दे डाला। इसी श्राप के पश्चात यम को यह आभास हो गया कि करोड़ों प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा का दूभर कार्यभार वह किसी पर्यवेक्षक के अभाव में अकेले नहीं उठा पाएंगे। श्रापित यम भगवान ब्रह्मा के पास गए और उन्हें एक योग्य पर्यवेक्षक प्रदान करने का आग्रह किया।इसी योग्य पर्यवेक्षक की तलाश में ब्रह्मा जी ने उपरोक्त वर्णित वर्षों की तपस्या की। तत्पश्चात् देवलोक में श्री ब्रह्मा जी को सम्पूर्ण काया से चार भुजा वाले श्री चित्तगुप्त भगवान का अवतरण हुआ।
ब्रह्मा जी के ही निर्देश पर श्री चित्रगुप्त पृथ्वी पर शिप्रा नदी के तट पर अवंति (उज्जैन) में उतरे। यहीं उन्होंने सृष्टि चालन के विधि-विधान में पांडित्य प्राप्त करने के लिए निकट स्थित कायथा गांव के लिए तत्काल प्रस्थान किया। यहां शिप्रा नदी के किनारे वर्षों की तपस्या उपरांत और सृष्टि को संचालित करने के विधि-विधान में पांडित्य प्राप्त करने के बाद, ब्रह्मा जी ने दो महिलाओं से श्री चित्रगुप्त जी का विवाह सम्पन्न करवाया।
इसी जगह पर श्री चित्रगुप्त जी Chitragupt Maharaj ji के 12 पुत्रों ने जन्म लिया, जिनको श्री चित्रगुप्त जी ने उस समय के श्रेष्ठतम गुरुकुलों में शिक्षा के लिए भेजा। शिक्षा प्राप्त करने के बाद ये पुत्र कायथा लौटे, जहां उनका विवाह श्री चित्रगुप्त Chitragupt Maharaj ji ने नागवंशी महिलाओं से कराया।
तत्पश्चात श्री चित्रगुप्त Chitragupt Maharaj ji ने अपनी-अपनी यश और समृद्धि की ध्वजा फैलाने के लिए इन पुत्रों को पलियों सहित भारत की अलग-अलग दिशाओं में विदा किया।
पृथ्वी पर गृहस्थी की जिम्मेदारियों से निपट कर श्री चित्रगुप्त अपने मूल स्थान को अपने मूल भूमिका के निर्वाह के लिए लौट गए।
उपरोक्त पर्व का व्याख्यान' कायस्थ इनसाइक्लोपीडिया' के महाआख्यान (ग्रैंड नैरेटिव) में वर्णित है।
उज्जैन के समीप स्थित 'कायथा' इस तरह कायस्थों से जुड़े महाआख्यायनों और इतिहास का संगम है। कायथा से ही कायस्थों की वारहों उपजातियां भारत के अलग-अलग हिस्सों में जा बसीं।
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