
भारत के इतिहास में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो समय के साथ और भी महान बनते जाते हैं। डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (B. R. Ambedkar) एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने न केवल भारत के संविधान का निर्माण किया बल्कि सामाजिक न्याय की मशाल जलाकर करोड़ों शोषितों और वंचितों को अधिकारों की रोशनी दिखाई।
गरीब वर्ग की निधड़क आवाज, भारतरत्न डा. बी.आर. आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 ई. को मध्य प्रदेश-के जिला इंदौर के गांव मह (सैन्य छावनी) में पिता रामजी के घर माता भीमा बाई जी की कोख से हुआ।
बाबा साहिब डा. भीम राव आंबेडकर विश्व के महान विद्वान, बुद्धिजीवी, क्रांतिकारी पथप्रदर्शक हुए। हालांकि बाबा साहिब जात-पात, भेदभाव का बहुत अधिक शिकार हुए, जिस कारण अनेक बार उन्हें अपमान सहना पड़ा, मगर उन्होंने विश्व को ज्ञान की रोशनी बांटने में कोई भेदभाव नहीं किया।
बाबा साहिब ने अपनी बुद्धि, तन व मन रूपी सारी संपत्ति अपनी कौम, अपने देश तथा समूचे विश्व के लिए कुर्बान-कर दी। उन्होंने झूठ-फरेब से ऊपर उठ कर बिना किसी निजी स्वार्थ, देश के भले के लिए कार्य किया। डा. अआंबेडकर
ने देश के अछूतों, पिछड़े. वर्गों तथा नारी जाति के लिए.,-इस तरह काम किया, जैसे ये सभी उनके अपने बेटियां-बेटे हों। देश की एकता, अखंडता तथा सांझीवाला के दुश्मनों को बाबा साहिब ने लंबे हाथों लिया। डा. आंबेडकर उस समय विश्व के सर्वाधिक पढ़े-लिखे 6 व्यक्तियों में से एक थे।
भारत के लिए सम्मान की बात है कि जब कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने अपने स्थापना वर्ष (1754 ई.) के 250 वर्ष पूरे होने पर 2004 ई. में अपने उन 100 श्रेष्ठ पूर्व विद्यार्थियों के नाम पेश किए, जिन्होंने विश्व में सर्वाधिक महान कार्य किए और अपने क्षेत्र में महान रहे, उनमें भारतीय संविधान के निर्माता डा. बी. आर. आंबेडकर का नाम पहले स्थान पर रखा।
बाबा साहिब महिला जाति के उत्थान तथा स्वतंत्रता के लिए उन लोगों के साथ लड़े, जो औरत को पांव की जूती समझते थे। वह कहा करते थे कि मैं वह योद्धा हूं, जिसके संघर्ष की बदौलत आज महिलाएं पुरुषों के बराबर पढ़-लिख कर ऊंचे पदों पर विराजमान हो रही हैं। बाबा साहिब के महान प्रयासों से 25 ही वे भारत में महिला राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, वैज्ञानिक, डाक्टर, वकील, जज, टीचर आदि जैसे पद हासिल कर रही हैं।
बाबा साहिब डा. आंबेडकर हर दुखी के दुख को अपना समझ कर उसके साथ हमदर्दी करते। उन्होंने मजदूरों के जीवन को बहुत्त नजदीक से देखा, मिल मजदूरों के रोटी के डिब्बे भी ढोते थे और रेलवे स्टेशन पर भी इन्होंने काफी समय तक मजदूरी की।
मजबूर लोगों की हालत देखते हुए मानवाधिकारों की खातिर बगावत का बिगुल बजा दिया और कहा, "काम करने की असल आजादी केवल वही होती है, जहां शोषण को पूरे तौर पर नष्ट कर दिया हो, जहां एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग पर अत्याचार न किया जाता हो, जहां बेरोजगारी न हो, जहां किसी व्यक्ति को अपना कारोबार खोने का डर न हो, अपने कार्यों के फलस्वरूप जहां व्यक्ति अपने कारोबार तथा रोजी-रोटी के नुक्सान के डर से मुक्त हो।"
अनथक मेहनत से उन्होंने एम.ए., पी.एचडी., डी.एस.सी.,; डी. लिट, बार एट लॉ की डिग्रियां प्राप्त करके भारत का संविधान कलमबद्ध किया, जिसमें छुआछूत संबंधी कड़े कानून बना कर सदियों से जकड़ी गुलामी की जंजीरों को तोड़ा और भारत के पहले कानून मंत्री बने।
6 दिसम्बर, 1956 ई. को बाबा साहिब डा. बी.आर. आंबेडकर ने सदा के लिए शारीरिक पक्ष से हमें बिछोड़ा देते हुए आखिरी संदेश दिया :
"गरीब वर्ग की भलाई करना प्रत्येक व्यक्ति का मुख्य कर्त्तव्य है। मैंने जो गरीबों के लिए किया, अनेक मुश्किलों . का सामना करके और बहुत से विरोधियों से टक्कर लेकर किया है। इस क्रांतिकारी संघर्ष को आगे बढ़ाना है, पीछे नहीं जाने देना।"
डॉ. बी.आर. आंबेडकर का जीवन इस बात का प्रमाण है कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, दृढ़ संकल्प और शिक्षा से उन्हें बदला जा सकता है।
वह कहते थे:
“शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।”
उनकी यह तीन पंक्तियाँ आज भी हर युवा के लिए प्रेरणा हैं।
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