भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में प्रकट होने का पर्व है महाशिवरात्रि Mahashivratri । फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महाशिवरात्रि Mahashivratri पर्व भोलेनाथ जी के भक्तों के लिए सौभाग्यशाली एवं महान पुण्य अर्जित करने वाला है।
शिवरात्रि का अर्थ ही है कल्याण की रात्रि। पूरे दिन और रात्रि के चारों प्रहर भगवान भोलेनाथ जी के शिवलिंग का दुग्ध, गंगा जल, बिल्व पत्र से मंत्रोच्चारण के द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है। शिव पुराण की ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यो के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। महाशिवरात्रि पर्व का व्रत आत्मा को पवित्र तथा समस्त पापों का नाश करने वाला है।
फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव जी और माता पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में श्री मभाया जाता है।
भूतभावन भगवान सदाशिव की, प्रसन्नता के लिए रुद्रसूक्त पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। पूजा में भगवान शंकर को सबसे प्रिय जलधारा है इसलिए उनके पूजन में रुद्राभिषेक की परम्परा है।
शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है।
शिव पुराण संहिता में कहा गया है कि सर्वज्ञ भगवान शिवशंकर ने संपूर्ण देहधारियों के सारे मनोरथों की सिद्धि के लिए इस 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का प्रतिपादन किया है। यह आदि मंत्र संपूर्ण विद्याओं का बीज है, उन्हीं शिव का स्वरूप है।
लंका प्रवेश के लिए समुद्र पर सेतु निर्माण के समय भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में महादेव जी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं शिवलिंग की . स्थापना की और भगवान शिव क़ा आह्वान किया था, जोकि शम्भु स्तुति के नाम से ब्रह्म पुराण में वर्णित है।
भगवान शिव कल्याण एवं सुख के मूल स्त्रोत हैं। समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष प्रकट हुआ, तब विश्व को विनाश से बचाने के लिए भगवान भोलेनाथ ने उसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे आपका कंठ नीला पड़ गया और आप नीलकंठ कहलाए।
महा शिवरात्रि पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें अपने जीवन को किस प्रकार व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के कल्याण लगाना चाहिए।
मार्कण्डेय जी ने दीर्घायु के वरदान की प्राप्ति हेतु भगवान शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ - कर इसका अखंड जाप किया।
तब भगवान शंकर ने अल्पायु मार्कण्डेय जी की न केवल यमराज से रक्षा की, बल्कि उनको अभय वर प्रदान कर उन्हें दीर्घायु होने का वरदान प्रदान किया।
भगवान शिव भक्तों के कल्याण हेतु तथा उनके अनुरोध पर भारतवर्ष के विभिन्न तीर्थों में ज्योतिर्लिंगों के रूप में स्थायी रूप से निवास करते. हैं। इन ज्योतिर्लिंगों के स्मरण मात्र से ही मनुष्य पाप रहित होकर आशुतोष भगवान भोलेनाथ जी का सानिध्य प्राप्त कर लेता है।
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत् ।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥
अर्थात - वेद जिनके निः श्वास हैं, जिन्होंने वेदों से सारी सृष्टि की रचना की और जो विद्याओं के तीर्थ हैं, ऐसे शिव की मैं वन्दना करता हूं।
पार्वतीनाथ भोलेनाथ जी, जिनके मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का, चन्द्रमा, कंठ में हलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्त्ता, सर्वव्यापक, कल्याणरूप, चन्द्रमा के समान शुभ्रवर्ण श्री शंकरजी सदा मेरी रक्षा करें।
और देखें : महाशिवरात्रि कब है Mahashivratri Kab Hai
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