खजुराहो के मंदिर सुन्दर वास्तुकला और कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं। पूरे साल मध्य प्रदेश के इस प्रसिद्ध स्थल में पर्यटकों, यात्रियों यहां तक कि इनके बारे में और जानने के लिए शोधकर्ताओं का भी तांता लगा रहता है।
Duladeo Temple Khajuraho, India - Dulhadev Temple | खजुराहो का अंतिम मंदिर 'दुलादेव'
खजुराहो के कई मंदिर अपनी अति सुंदर कलाकृतियों तथा वास्तुकला के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं, जैसे कंदरिया महादेव मंदिर के बारे में तो लगभग सबने सुना ही होगा, पर इन सारी रचनाओं के बीच एक ऐसी रचना भी शामिल है, जिनके बारे में लोगों को उतना पता नहीं है। हम बात कर रहे हैं, दुलादेव मंदिर की।
खजुराहो का यह मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है, जिन्हें यहां एक शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर खजुराहो की रचनाओं की सबसे नवीनतम और सबसे अंतिम रचना माना जाता है, जिसकी स्थापना चंदेल वंश के शासनकाल में हुई।
1000 और 1150 इसवी के दौरान बना यह मंदिर, खजुराहो के अन्य मंदिरों, जो इससे पहले बनाए गए थे, की तरह अत्यधिक अलंकृत नहीं है, परंतु इसकी भी अपनी विशेषताएं हैं।
वास्तुशैली
दुलादेव मंदिर नोरनधारा मंदिर के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका मतलब है कि यह ऐसा मंदिर है जिसमें कोई चल पथ नहीं है। इस मंदिर का निर्माण नागर वास्तुशैली का इस्तेमाल करके किया गया, जो कैलाश पर्वत यानी भगवान शिवजी के निवास का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर का मुख्य हॉल काफी विशाल है और यह अष्टकोण की आकृति में निर्मित है। मंदिर की छत पर खूबसूरत अप्सराओं की छवियां खुदी हुई हैं। मंदिर के खम्भे और दीवारें कामुक मुद्राओं और पेड़ के आसपास नाचती हुई युवतियों वाली मूर्तियों से भरी पड़ी हैं। दुलादेव मंदिर को खजुराहो मंदिर के स्थापत्य और मूर्तिकला महारत की अंतिम चमक के रूप में जाना जाता है।
अनूठा शिवलिंग
मंदिर की एक खास विशेषता है कि इसमें स्थापित पवित्र शिवलिंग की सतह पर 999 लिंगों को खोद कर दर्शाया गया है। माना जाता है कि इस शिवलिंग की एक परिक्रमा करना 1000 परिक्रमाओं के बराबर है। शिवलिंग के अतिरिक्त इस मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं, जैसे गणेश भगवान, देवी पार्वती और देवी गंगा जी की।
वासाला शब्द मंदिर के कई हिस्सों में अंकित है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर के प्रमुख मूर्तिकार का नाम रहा होगा।
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