पैतृक और पिता की सम्पत्ति पर 'बेटी का अधिकार' ( Class I Heirs of Hindu Female - Power of Will ) पारम्परिक रूप से घर-परिवार के रिश्ते- नातों में विभिन्न भूमिकाएं निभाने वाली औरत को यह पता ही नहीं होता था कि उसके संविधान सम्मत या कानून सम्मत कुछ अधिकार भी हैं। अधिकारों के मामले में घर के पुरुषों द्वारा जो बता दिया जाता, जो दे दिया जाता, वह उसे स्वीकार लेती थी।
वैसे लम्बा समय भी नहीं हुआ, जब महिलाओं को उनके वाजिब हक दर्ज हुए, उन्हें बेटों के बराबर ही सेवाओं, सुविधाओं व वस्तुओं का हकदार माना गया। भारत में बेटी और बेटे दोनों को माता-पिता की सम्पत्ति में समान अधिकार है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की अनुसूची के तहत, बेटी और बेटा दोनों प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी (Class 1 Heirs) हैं और उन्हें समान हिस्सेदारी मिलती है।

शादी के बाद बेटी के सम्पत्ति में अधिकार पर क्या कहता है कानून
सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिसरत वकील और नैशनल कमिशन फॉर वुमन (NCW) की पूर्व सदस्य डॉक्टर चारू वली खन्ना के अनुसार, आमतौर पर समाज में मान लिया जाता है कि यदि बेटी की शादी हो गई और उसे दहेज या स्त्रीधन के तौर पर सामान आदि दिया गया है तो वह अपने मायके (पिता) की सम्पत्ति में हक नहीं मांग सकती लेकिन कानून यह नहीं मानता और पिता की सम्पत्ति में बेटे को जितना अधिकार है, उतना ही अधिकार बेटी को भी है। चारू कहती हैं, अगर बेटी की शादी हो जाती है तो न तो उसके और न ही बेटे के अधिकार शादी पर खत्म होते हैं। बेटा और बेटी दोनों ही, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी बने रहेंगे।
किया जा सकता है बेदखल
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार, वसीयत न होने की स्थिति में बेटी के भी बेटे के समान अधिकार हैं। यदि वसीयत है तो वसीयतकर्ता को पूरा अधिकार है कि वह जिसके हक में चाहे सम्पत्ति की वसीयत कर दे। ऐसे में यह भी देखा गया है कि माता-पिता सम्पत्ति पर बेटे को अधिकार दे देते हैं और बेटियों को विरासत से बेदखल कर देते/कर सकते हैं।
पैतृक संपत्ति और सैल्फ- अक्वॉयर्ड सम्पत्ति में अधिकार है या नहीं ?
महिलाएं अपने पिता की पैतृक और स्व-कब्जे (self acquired) वाली संपत्ति के बंटवारे और कब्जे का दावा कर सकती हैं। पहले एक महिला को संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में रहने का अधिकार था, लेकिन बंटवारा मांगने का अधिकार नहीं था, जिसे केवल पुरुष सदस्य ही मांग सकते थे। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 में संशोधन से पहले, एक बेटी सहदायिक नहीं थी और इसलिए, वह विभाजन का दावा करने की हकदार नहीं थी। अब यह बदल गया है।
बेटी की मौत पिता से पहले होने पर
यह भी संभव है कि रोग, बीमारी या दुर्घटना के चलते बेटी की मौत हो जाए। ऐसे में पिता की सम्पत्ति में बेटी की संतान को वही हक मिलेगा जो बेटी के जीवित होने पर बेटी को मिलता। यह बात 'जैंडर स्पैसिफिक' नहीं है। बेटी और बेटा, दोनों की मौत पर यही कानून लागू होता है।
बिना वसीयत किए पिता की मौत होने पर अधिकार
पिता का वसीयत लिखकर गुजरना और पिता का बिना वसीयत किए गुजर जाना, कानून में ये दो अलग-अलग परिस्थितियां हैं। वसीयत कर दी गई है तो उसी हिसाब से हक मिलेगा लेकिन यदि नहीं की थी और मौत हो गई, अर्थात घर के मुखिया यानी पिता या पति का बिना वसीयत किए निधन हो जाता है तो विरासत की सम्पूर्ण हकदार पत्नी होती है।
पत्नी, जो अब विधवा हो चुकी है, अब यह उस पर निर्भर करता है वह इस सम्पत्ति पर किसे क्या हक देती है।
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