स्तनपान को प्रोत्साहित करने और दुनिया भर में हर साल 1 से 7 अगस्त तक शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है।
स्नेहरूपी जल से सींचें वात्सल्य की क्यारी, दुनिया के सारे सुख मिलकर भी मातृत्व सुख की बराबरी नहीं कर सकते और शायद उस महिला से बढ़कर खुशनसीब भी कोई और नहीं होता, जिसे अपने शिशु का सलोना मुखड़ा व मोहक किलकारी देखने- सुनने का सौभाग्य प्राप्त होता है। क्या आप नहीं चाहेंगी कि आपका यह ममता रूपी पौधा ढंग से पल-बढ़कर एक विशाल कल्पवृक्ष बन जाए ?
यदि हां, तो फिर हर काम छोड़कर इस ओर पूरा ध्यान दें। जन्म के समय से ही जब शिशु को उपयुक्त आहार मिलेगा, तभी वह आजीवन स्वस्थ और निरोग रह सकेगा। अतः शिशु के आहार और अवधि के अनुसार उसमें होने वाले परिवर्तनों को जानना निहायत जरूरी है। जन्म से लेकर प्रारंभिक कुछ महीनों तक नवजात शिशु का आहार सिर्फ दूध होता है, जो शिशु के शरीर का पोषण कर उसे स्वस्थ बनाए रखता है। यह दूध मां का भी हो सकता है और गाय, भैंस या बकरी का भी हो सकता है।
दूध में अनेक गुण होते हैं और यह सम्पूर्ण आहार है। फिर चूंकि प्रकृति ने नवजात शिशु के लिए सिर्फ दूध की ही व्यवस्था रखी है, अतएव इसे सम्पूर्ण आवश्यक एवं पौष्टिक तत्वों से युक्त होना भी चाहिए।
नवजात शिशु के लिए मां का दूध ही सर्वाधिक उपयुक्त रहता है और मां के दूध के बाद गाय का दूध शिशु के लिए सबसे श्रेष्ठ आहार होता है। गाय का दूध जल्दी पच जाने वाला तथा स्फूर्तिदायक होता है। यहां तक कि इसमें बहुत सारे गुण मां के दूध जैसे ही होते हैं। गाय के दूध में सात्विक तत्व होने से शरीर की सब धातुएं पुष्ट होती हैं, स्मरण शक्ति अच्छी रहती है और अच्छे विचार व अच्छे कार्य की ओर बुद्धि की प्रवृत्ति होती है, जिससे आचरण शुद्ध रहता है।
अन्न के मुकाबले दूध जल्दी हज्म होता है। यह दूध एक विशेष गुण है। इसलिए शिशु को नियमित समय पर दूध अवश्य पिलाना चाहिए, पर सोते हुए बच्चे को जगाकर दूध पिलाना उचित नहीं।
यदि शिशु को गाय का दूध पिलाना हो तो दूध को खूब गरम करके मलाई हटाकर पिलाना चाहिए। भैंस का शुद्ध दूध (बिना पानी मिला) हो तो उसका आधा पानी मिलाकर इतना उबालें कि पानी उड़ जाए, सिर्फ दूध रह जाए। यही गुनगुना गरम दूध शिशु को पिलाना। चाहिए। इसके अलावा कुछ अन्य बातों पर ध्यान रखना भी जरूरी है। बच्चे को दूध पिलाने का समय भी निश्चित कर लेना चाहिए और यदि गाय या भैंस का दूध हो तो इसमें जरा सी शक्कर घोल लेनी चाहिए। दूध की शीशी को हर बार गरम पानी से धोना भी उसे विभिन्न संक्रमणों से सुरक्षित रखने के लिए अति आवश्यक है।
मां यदि अपना दूध पिलाती हो, तो इस बात का ख्याल रखे कि दूध पिलाते समय किसी भी कारण से उसका शरीर गरम न हो, ज्यादा थका हुआ न हो, विचार अच्छे हों और मन प्रसन्न हो। क्रोधित, शोकपूर्ण, दुखी और कुढ़न वाली मनःस्थिति में तथा लेटे हुए, सोते हुए और रोते हुए बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए।
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