गांव के एक बच्चे को आम बहुत अच्छे लगते थे और उस गांव में आम का एक पेड़ भी था। बालक को जब भी फुर्सत मिलती, वह आम के पेड़ के पास पहुंच जाता। पेड़ के उपर चढ़ता, आम खाता, खेलता और थक जाने पर उसी की छाया में सो जाता। इस प्रकार उस बच्चे और आम के पेड़ के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता गया, वैसे-वैसे उसने पेड़ के पास आना कम कर दिया और कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया। आम का पेड़ उस बालक की राह ही देखता रहता और बच्चे के बारे में चितित रहता।
एक दिन अचानक पेड़ ने उस बच्चे को देख कर कहा, "तू कहां चला गया था? मैं रोज तुम्हें याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनों खेलते हैं।" बच्चे ने आम के पेड़ से कहा, "अब मेरी खेलने की उम्र नहीं है, मुझे आगे पढ़ना है, लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नहीं हैं।” आम के पेड़ ने कहा, "तू चिता मत कर और मेरे सारे आम ले जाकर बाजार में बेच दे और इससे जो पैसे मिलें उनसे अपनी फीस भर देना।"
उस बच्चे ने पेड़ से सारे आम तोड़ लिए और उन सबको लेकर वहां से चला गया। फिर कभी दिखाई नहीं दिया। पेड़ फिर उसकी राह देखता रहा। एक दिन वह आया और कहने लगा कि अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी भी हो चुकी है, मुझे अपना घर बनाना है, अब इसके लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। आम के पेड़ ने फिर कहा, "तू चिंता मत कर । तू मेरी सभी डालियों को काट कर ले जा और उनसे अपना घर बना ले।"
उस जवान हुए बच्चे ने पेड़ की सभी डालियां काट लीं और ले कर चला गया। पेड़ के पास अब कुछ नहीं था और कोई उसे देखता भी नहीं था। पेड़ ने अब भी उस बालक से जवान हुए व्यक्ति की उम्मीद नहीं छोड़ी। एक दिन अचानक वहां एक बूढ़ा आदमी आया। उसने आम के पेड़ से कहा, "शायद आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता था और आप हमेशा मेरी मदद करते थे।"
आम के पेड़ ने शांत स्वर में कहा, "पर मेरे पास तो अब ऐसा कुछ भी नहीं जो मैं तुम्हें दे सकूं।"
वृद्ध ने आंखों में आंसू लिए हुए कहा, "आज मैं आपसे कुछ लेने नहीं आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भर कर खेलना है, आपकी गोद में सिर रखकर सोना है।" इतना कह कर वह आम के पेड़ के साथ लिपट गया।
आम के पेड़ ने प्यार से कहा, "बच्चे तू चिंता मत कर, में बैठा हूं न।" और सूखी हुई डालियों से चन्दन की सुगंध आने लगी।
इसी प्रकार उस बंजर पेड़ की तरह आज कई माता-पिता अपने बच्चों को राह देख रहे हैं। आज अगर हम उनको गले लगाएंगे तो कल जब हम भी वृद्धावस्था में होंगे तो जरूर कोई हमारे भी गले लगने के लिए आएगा। आज समय को जरूरत है कि हम अपने बुजर्गों के साथ कुछ समय जरूर बिताएं ताकि उनके सूखे जीवन में बहार आ सके।
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