सारका अशोक Saraca Asoca (अशोक का पेड़; शाब्दिक रूप से, sorrow-less"दुख-रहित") फलियां परिवार के डेटारियोइडिया उपपरिवार से संबंधित एक पौधा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप और आस-पास के क्षेत्रों की सांस्कृतिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण वृक्ष है। इसे कभी-कभी गलत तरीके से सारका इंडिका Saraca Indica के रूप में जाना जाता है। अशोक के पेड़ का फूल भारतीय राज्य ओडिशा का राज्य फूल है।
ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं, अर्थात् जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है...
अक्सर हम जिसे अशोक समझ कर घर पर लगाते हैं, वह अशोक नही अपितु नकली अशोक Polyathia Longifolia हैं।
अशोक को घर के आसपास लगाना शुभ माना गया हैं पर हम वास्तविक अशोक को भूल गए है।
अशोक को सीता अशोक भी कहा जाता हैं... यह अशोक वही वृक्ष हैं जिसका नाम रामायण में अशोक वाटिका से जुड़ा हैं जहां माता सीता को रखा गया था।
जब हनुमान जी ने माता सीता का शोक और दुःख दूर किया ; लंकिनी के पास से चल कर वीरवर हनुमान जी, सीता जी की खोज करने लगे। उन्होंने रावण के महल का कोना-कोना छान डाला किन्तु कहीं भी उन्हें सीता जी के दर्शन नहीं हुए।
सीता जी को न देख पाने के कारण वह बहुत ही दुखी और चिंतित हो रहे थे। रावण के महल में मंदोदरी को देख कर उन्हें कुछ क्षणों के लिए ऐसा भ्रम हुआ कि यही सीता जी हैं लेकिन तुरंत उन्होंने समझ लिया कि यह सीता जी नहीं हो सकतीं। यह तो अत्यंत प्रसन्न दिखलाई दे रही हैं। माता सीता जी तो जहां भी होंगी भगवान श्रीराम चंद्र जी से दूर होने के कारण बहुत दुखी होंगी। वह इस समय सुखी और प्रसन्न कैसे रह सकती हैं ?
नहीं यह माता सीता जी नहीं हो सकतीं। ऐसा सोच कर वह पुनः आगे बढ़ गए। इस प्रकार सीता जी की खोज करते-करते भोर हो गई।

इसी समय विभीषण अपनी कुटिया में जागा । जगते ही उसने 'राम नाम' का स्मरण किया। वह भगवान श्री रामचंद्र जी का परम भक्त था । लंका में 'राम नाम' सुनकर हनुमान जी को आश्चर्य उन्होंने सोचा, "राक्षसों की इस हुआ। नगरी में ऐसा कौन भला आदमी है, जो भगवान श्री राम का नाम जप रहा है। मुझे इससे मिलना चाहिए। इससे किसी प्रकार की भी हानि नहीं हो सकती। ऐसा सोच कर हनुमान जी ने भिभिषण से भेंट की । वह हनुमान जी को मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने हनुमान जी को बताया कि रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका में छुपाया है।
अशोक वाटिका में हनुमान जी ने सबसे पहली बार किस वृक्ष से सीता जी को श्री राम के बारे में बताया था? अशोक वाटिका में हनुमान जी किस वृक्ष पर बैठे थे? ashok vaatika mein hanumaan jee kis vrksh par baithe the?
अशोक वाटिका में हनुमान जी का प्रवेश : हनुमान जी तुरंत अशोक वाटिका की ओर चल पड़े। वहां वह अशोक वृक्ष पर पत्तों के बीच छिपकर बैठ गए। उन्होंने देखा कि दुखिनी माता सीता जी का सारा शरीर सूख कर कांटा हो गया है। सिर के बाल जटाओं की तरह गुंथकर एक ही चोटी बन गए हैं। वह केवल- 'राम-राम' जपते हुए जोर-जोर से सांस लेती हुईं आंखों से आंसू बहा रही हैं। अब उनसे और न देखा गया। उन्होंने धीरे से भगवान श्रीराम चंद्र जी द्वारा पहचान के लिए दी गई मुद्रिका (अंगूठी) सीता जी की गोद में गिरा दी।
थोड़ी देर पहले ही सीता जी ने अशोक वृक्ष से प्रार्थना की थी कि, "हे वृक्ष! तुम्हारा नाम अशोक है। तुम सबका शोक दूर करते हो। कहीं से लाकर मेरे ऊपर एक अंगार गिरा दो। इस शरीर को भस्म कर मैं तत्काल शोक से छुटकारा पा जाऊं।”
अतः अशोक वाटिका में हनुमान जी द्वारा गिराई गई मुद्रिका को उन्होंने अशोक द्वारा दिया गया अंगार ही समझा लेकिन जब देखा कि यह तो वही मुद्रिका है जिसे प्रभु श्री रामचंद्र जी धारण किया करते थे, तब उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
वह सोचने लगीं श्री रघुनाथ जी तो सर्वथा अजेय हैं। उन्हें देव, असुर, दानव, मनुष्य कोई भी जीत नहीं सकता। माया के द्वारा ऐसी अंगूठी का निर्माण बिल्कुल असंभव है। इसी समय सीता जी को सांत्वना देने के लिए हनुमान जी मधुर वाणी में श्री रामचंद्र जी के गुणों का वर्णन करने लगे। आदि से अंत तक रघुनाथ जी की सम्पूर्ण कथा सुनाई।
उनकी मधुरवाणी से श्री राम कथा की अमृत धारा निकलकर सीता जी के कानों में रस घोलने लगी। कथा के सुंदर प्रवाह से उनका सम्पूर्ण शोक और दुख क्षणमात्र में समाप्त हो गया। सीता जी बोलीं, “जिसके द्वारा सुनाई कथा ने मेरे सारे शोक हर लिए ही भाई! वह प्रकट क्यों नही होता?"
लेखक, ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
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