उनकी बातें सुनकर सबने आशा भरी आंखों से हनुमान जी की ओर देखा। वह तुरंत ही द्रोणाचल जाने के लिए तैयार हो गए।
रावण ने सोचा कि किसी प्रकार हनुमान की यात्रा में विघ्न डाला जाए, ताकि वह औषधि लेकर समय से न लौट सकें। वह कालनेमि राक्षस के पास गया तथा उससे कहा, “तुम ऐसी माया रचो कि लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान Hanuman ji को औषधि लेकर समय से लौट न सकें।"

उसकी बातें सुनकर रावण बहुत क्रोधित हो उठा। उसने कहा, "कालनेमि ! यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हें मेरे ही हाथ से मरना होगा।"
कालनेमि ने सोचा कि जब मरना ही है तो मैं हनुमान के हाथों क्यों न मारा जाऊं? यह सोचकर उसने उनके मार्ग में एक बहुत ही सुन्दर आश्रम का निर्माण किया। स्वयं मुनि का वेश बनाकर उस आश्रम से बैठ गया। हनुमान जी जब उस आश्रम के पास पहुंचे तब उन्हें बड़े जोरों की प्यास लगी। मुनि का सुन्दर आश्रम देखकर उन्होंने सोचा कि यहां जल पी लूं। वह शीघ्र ही कपटी मुनि कालनेमि के आश्रम में जा पहुंचे। उसको प्रणाम करके उन्होंने कहा, "मुनिवर ! मुझे बड़े जोर की प्यास लगी है, यहां जल कहां मिल सकेगा ?"
कपटी कालनेमि ने कहा, “रामदूत हनुमान! मैं तुम्हें जानता हूं। तुम श्री रामचंद्र जी के प्यारे भ्राता श्री लक्ष्मण जी के लिए औषधि लाने द्रोणाचल जा रहे हो। मेरे इस कमंडल में बढ़िया शीतल जल भरा है। तुम इसे पीकर अपनी प्यास बुझा लो।" फिर हनुमान जी ने कहा, “ इतने थोड़े जल से मेरी प्यास नहीं बुझेगी आप तो मुझे कोई जलाशय बता दीजिए।"
कालनेमि ने उन्हें एक सुन्दर जलाशय दिखाते हुए कहा, "तुम वहां जाकर अपनी प्यास बुझा लो और स्नान भी कर लो। इसके बाद मैं तुम्हें दीक्षा दूंगा।"
उसकी बातें सुनकर हनुमान जी शीघ्र ही उस जलाशय के पास पहुंच गए। स्नान करने के लिए ज्यों ही वह उसके भीतर गए, त्यों ही एक मकरी ने उनका पैर पकड़ लिया। हनुमान जी ने तुरंत ही उसका मुंह फाड़कर उसे मार डाला।
हनुमान जी द्वारा मारे जाते ही वह मकरी दिव्य अप्सरा का वेश धारण कर विमान में बैठकर आकाश में पहुंच गई।
दिव्य अप्सरा ने हनुमान जी से कहा, " हे पवन पुत्र हनुमान ! एक मुनि के श्राप के कारण मुझे मकरी बनना पड़ा था। हे रामदूत! तुम्हारे दर्शन से आज मैं पवित्र हो गई। मुनि का श्राप मिट गया। आश्रम में बैठा हुआ यह मुनि कपटी घोर निशाचर है।"
उस अप्सरा की बात सुनकर हनुमान जी तुरंत कालनेमि के पास जा पहुंचे तथा कहा, "मुनिवर ! आप पहले मुझसे गुरु दक्षिणा ले लीजिए। मंत्र आप मुझे बाद में दीजिएगा।"
यह सुन कर उसको अपनी पूंछ में लपेट लिया और पटककर मार डाला। मरते समय कालनेमि ने अपना असली राक्षस का रूप प्रकट कर दिया। मुख से 'राम-राम' कहा। इस प्रकार राम का नाम लेने से उसका उद्धार हो गया।
लेखक
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
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