कौन नहीं चाहता कि उसका शरीर हृष्ट- पुष्ट हो। उसका हर अंग मजबूत हो । उसका शरीर निरोग हो। उसका मस्तिष्क तेज हो। उसकी सोचने की क्षमता बढ़े। काम करने में रुचि पैदा हो । उत्साहित बना रहे।

* यदि आप भी बल तथा बुद्धि में वृद्धि गहते हैं तो खुली हवा में टहलने की आदत नाएं, इससे कई तरह का लाभ होगा।
* शुद्ध वायु में सांस लेना, शुद्ध व खुली त्रा में विचरण करना, यह दिनचर्या अपनाना कठिन भी तो नहीं।
* प्रातः काल की हवा में दूर तक निकल जाना और एक घंटे में लौट आना उपचार ही समझें। बिना धन खर्च किए, प्रकृति का लाभ उठाएं। यह गरीब-अमीर दोनों के लिए समरूप में उपलब्ध है। चूकें मत ।
* शुद्ध वायु में जाना, शुद्ध वातावरण में रहना, लम्बी सांसें लेना, प्राण वायु का सेवन करना, हमारे शरीर को बनाने, चलाने, स्वस्थ रखने के लिए उत्तम माना गया है। कोई बंद कमरों में, दूषित वायु में पड़ा रहे तो यह उसका अपना दोष है।
* वायु रक्त शुद्ध करती है। स्वयं अशुद्ध होकर सांस द्वारा बाहर निकल जाती है। इससे बड़ा परोपकारी और कौन होगा ?
* मनुष्य बिना भोजन काफी समय जीवित रह सकता है। कुछ समय या कुछ दिनों तक बिना पानी जीवित रह सकता है। हवा के बिना तो वह एक पल भी जीवित नहीं रह सकता। वनस्पति को निर्मित कर प्रकृति ने खूब वायु का प्रबंध कर रखा है। अब हमारा फर्ज बनता है कि प्रदूषण न फैलाएं। वायु को दूषित न करें।
* शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खुले में निकलें। सैर करें। लम्बी-लम्बी सांसें लें। शुद्ध. वायु का सेवन करें। प्राण वायु को अंदर खींचें । निरोगी रहेंगे, शरीर स्वस्थ होगा। बल तथा बुद्धि में निरंतर वृद्धि होती रहेगी। ऐसे में हम पीछे क्यों रहें?
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