कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन आने वाला गोवत्स द्वादशी उत्सव भी भारत के अनेक भागों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गाय माता एवं उसके बछड़े की पूजा एवं विधि-विधान से आराधना की जाती है। देश के कुछ भागों में इसे 'बछ बारस' का पर्व भी कहा जाता है। गुजरात में यह 'बाघ बरस' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे 'नंदिनी व्रत' के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में' नंदिनी गाय को दिव्य माना गया है महिलाओं द्वारा पुत्र के मंगल के लिए इस दिन व्रत का अनुष्ठान किया जाता है।
गोधूलि की पवित्र बेला में गाय और उसके बछड़े की महिलाएं पूरे आदर के साथ आराधना करती हैं।
हमारी समृद्ध सांस्कृतिक एवं धार्मिक परम्पराओं से गाय का गहरा संबंध है। संतान के रूप में पुत्र प्राप्त करने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत करना शुभकारी माना गया है। अपनी संतान की दीर्घायु एवं परिवार की सुख- समृद्धि के लिए यह पर्व महिलाएं विशेष रूप से मनाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा उत्तानपाद और उनकी पत्नी सुनीति ने सबसे पहले यह गोवत्स द्वादशी व्रत किया था। इसके प्रभाव से ही उन्हें भक्त ध्रुव जैसा उत्तम पुत्र प्राप्त हुआ। हमारे पौराणिक ग्रंथों में गौमाता में समस्त तीर्थों का वास माना गया है। वेदों में भी गाय को सम्पूर्ण विश्व की माता की उपमा दी गई है।

इस व्रत के दिन महिलाएं गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन करने से परहेज करती हैं, जिसके पीछे यह धारणा है कि यह पूर्ण रूप से गौ सेवा को समर्पण का दिन होता है। गौ माता का दूध भी और उससे बने उत्पाद भी आज के दिन गौ माता को ही समर्पित किए जाते हैं और उसकी तन-मन से सेवा की जाती है।
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