सदैव शुभ फलदायक 'नवरात्र' Navratri | Navratri Special : शक्ति ही सृष्टि का आधार मूल है और नवरात्र उसमें सर्वोत्तम मुहूर्त हैं। नवरात्र में मां की स्तुति का विशेष महात्म्य है।
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ॥
जो देवी सब जीवों में शक्ति, सामर्थ्य रूप में रहती हैं, उन्हें नमस्कार है, नमस्कार है, नमस्कार है।
असुरों के संहार के लिए देवताओं ने शक्ति का आह्वान किया। उसी जगत जननी की आराधना हम नवरात्र के दौरान करते हैं। वह शक्ति, जिनके बिना त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी अपूर्ण हैं, उस सम्पूर्ण शक्ति का नाम है देवी भगवती दुर्गा।

आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक दृष्टिकोण से नवरात्रों की बहुत महिमा है। आदिकाल से ही देव, दानव एवं मानव शक्ति प्राप्त करने के लिए मां की आराधना करते आ रहे हैं। मां सृष्टि का आधार एवं शक्ति का स्रोत हैं। बिना शक्ति के सृष्टि का कायाकल्प संभव ही नहीं। शक्ति के बिना शिव भी शव के समान हैं।
नवरात्रों में मां आदि शक्ति की नौ स्वरूपों में पूजा की जाती है। नवरात्रों में प्रतिदिन अलग- अलग स्वरूपों में मां का पूजन होता है जो क्रमशः इस प्रकार हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धि दात्री। नवरात्रों में देवी के इन्हीं नौ स्वरूपों की पूजा का महात्म्य है।
वर्षा ऋतु समाप्त होकर शरद ऋतु प्रारंभ हो चुकी होती है। वातावरण परिवर्तन के दौरान शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। रोगों का प्रकोप बढ़ता है। हमारे मनीषियों ने इस समस्या के समाधान के लिए शक्ति संचय का आह्वान किया। शरीर में कम हो रही ऊर्जा को प्राकृतिक स्रोतों ग्रहण करने का प्रयास नवरात्रों में किया जाता 1 है। नवरात्र काल में सामूहिक रूप से उपवास एवं 1 पूजन-अनुष्ठान करते हैं। हमारे इर्द-गिर्द व घर में 1 ऊर्जा का महापुंज एकत्रित होने लगता है।
नवरात्र के दौरान मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं।
पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में 'दुर्गम' नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उसने वेदों को अपने अधिकार में लेकर देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया, जिससे पूरे संसार में वैदिक कर्म बंद हो गया। इस कारण चारों ओर घोर अकाल पड़ जाने से हर ओर हाहाकार मच गया। जीव-जंतु मरने लगे। सृष्टि का विनाश होने लगा। सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रख कर नौ दिन तक 'मां जगदम्बा' की आराधना करके उनसे सृष्टि को बचाने की विनती की।
तब मां भगवती और असुर 'दुर्गम' के बीच घमासान युद्ध हुआ। मां भगवती ने 'दुर्गम' का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया।
नवरात्रों में आदिशक्ति की पूजा कंजक रूप में की जाती है। मां वात्सल्य की देवी हैं, किसी से वैर-विरोध व पक्षपात नहीं करतीं। मां का स्वरूप स्त्री का है। कंजक स्त्री स्वरूप व अबोध होती है। कन्याओं को माता रानी का प्रतिबिंब जानकर भक्त उनका श्रद्धा एवं विश्वास से पूजन करते हैं।
नवरात्रों के नौ दिनों में भगवती दुर्गा के अलग- अलग स्वरूपों में पूजा के साथ-साथ प्रसाद भी प्रतिदिन अलग वस्तुओं का चढ़ाया जाता है।
प्रतिदिन आंवले का तेल,
दूसरे नवरात्र को बाल गूंथने के काम आने वाला रेशमी सूत या फीता,
तीसरे नवरात्र में सिंदूर अथवा दर्पण अर्पित करें,
चौथे नवरात्र को गाय का दूध, दही, घी एवं शहद से बने द्रव्य,
पांचवें नवरात्र को चंदन एवं आभूषण,
छठे नवरात्र को पुष्प एवं फूलों की माला,
सातवें नवरात्र को अपने गृह में पूजा,
आठवें नवरात्र को उपवासपूर्वक पूजन,
नौंवे नवरात्र को महापूजा तथा कुमारी पूजा से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
दुर्गा पूजा में तुलसी का इस्तेमाल न करें, लाल रंग के फूल चढ़ाएं। पूजन के समय महिलाएं बाल खुले न रखें। मन में अटूट श्रद्धा व विश्वास पैदा कर स्वयं को मां के चरणों में समर्पित करने से ही कल्याण सम्भव है।
सदैव शुभ फलदायक 'नवरात्र'
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हरे हरे हैं जवारे मैया के द्वारे
नवरात्र में जौ बोने और नौ दिन बाद उन्हें विसर्जित करने की प्रथा देवी उपासना के साथ-साथ मनुष्य के प्रकृति के प्रति समर्पण का प्रतीक भी मानी जाती है। नवरात्र में जवारों के साथ की जाने वाली घट स्थापना की रीति का अपना अलग महत्व और विधान है।
जी ब्रह्मस्वरूप है, सृष्टि के प्रारंभ में स्वयं ब्रह्माजी द्वारा इसकी उत्पत्ति की गई थी। अनाज में भी पहले पहल इसे ही उगाया गया था। इसी कारण इसे अन्नपूर्णा भी कहा जाता है और हर शुभ कार्य में सुख-समृद्धि की कामना के साथ जवारे बोए जाते हैं।
आवश्यक वस्तुएं
जवारे बोने हेतु मिट्टी के बड़े एवं चौड़े पात्र, घट स्थापना के लिए लाल रंग का नया वस्त्र, लकड़ी की चौकी, देवी प्रतिमा या तस्वीर, ताम्र या मिट्टी का कलश, 5 से 7 आम के पत्ते, श्रीगणेश के प्रतीक (सुपारी), मौली, कंकू, अक्षत, श्रीफल की आवश्यकता होगी। स्थापना स्थल को शुद्ध करने के लिए गंगाजल या गाय के गोबर का उपयोग कर सकते हैं। उपासक के लिए कुश का आसन हो, तो बेहतर।
स्थापना के लिए विधि-विधान , घट या कलश स्थापना और देवी पूजन
स्थापना देवस्थल में करें। स्नानादि करके स्थापना स्थल को गाय के गोबर से लीपें या गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। पूजन सामग्री एकत्रित कर लें। आचमन कर, स्वयं को शुद्ध करें। स्थापना स्थल के केंद्र में कंकू का स्वस्तिक चिह्न बनाकर, अक्षत समर्पित करें और चौकी स्थापित करें। चौकी के ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर देवी प्रतिमा या चित्र रखें। और पास ही अक्षत लेकर सुपारी को मौली से बांधकर नीचे एक रुपये का सिक्का रखते हुए भगवान गणेश के प्रतीक को स्थान दें। साथ ही अखंड ज्योत प्रज्वलित करें।
नवरात्र में जवारों के साथ सभी देवी-देवताओं के स्वरूप कलश की भी स्थापना की जाती है। इसके लिए मिट्टी या तांबे का ही पात्र लें। जवारे के पास अक्षत रख, घड़े में एक-तिहाई जल भरकर स्थापित करें। घड़े के मुख पर आम के पत्ते रख, उस पर ऊर्ध्वमुख श्रीफल रखें और यदि घड़े के मुख का आकार बड़ा हो तो उसे किसी बड़े पात्र (थाली) से ढककर उसमें अक्षत सहित श्रीफल रखें। श्रीफल का मुख आपकी ओर होना चाहिए। स्थापना के साथ देवी पूजन प्रारंभ करें। देवी की प्रतिमा/चित्र को कंकू, अक्षत, सुंगधित पुष्प और श्रद्धानुसार भोग अर्पित करें। ठीक इसी विधि से कलश और जवारों का भी पूजन करें। यह प्रक्रिया नौ दिन तक समान ही रहेगी।
यूं बोएं कि हरियाए रहें जवारे
यदि कलश के आसपास बो रहे हैं तो...
एक बड़े पात्र को देवस्थल के मध्य में देवी की प्रतिमा के ठीक सामने कंकू से स्वस्तिक बनाकर और अक्षत चढ़ाकर स्थान दें। मध्य में कलश रखें तथा आस-पास के स्थान को मिट्टी के मिश्रण से भर दें।
जवारे की मिट्टी : किसी अच्छे स्थान से मिट्टी लाकर संभव हो तो उसमें 50 प्रतिशत देसी खाद मिलाकर बारीक छान लें। इस मिश्रण से जवारे एक समान और अधिक घनत्व के साथ उगते हैं। पात्र में पहले मिट्टी की मोटी परत बिछाएं और उस पर कुछ जी लेकर छिड़क दें। फिर मिट्टी की एक परत डालें और ऊपर से एक बार फिर जौ को हल्के हाथों से मिट्टी में मिला दें। ऊपर से हल्का जल छिड़क दें। अब अंतिम रूप से इस पर हल्की मिट्टी बुरक दें। ऊपर से पानी न दें। यहां ऊपर से डाली गई मिट्टी भीतर नमी बनाने का कार्य करती है। ध्यान रहे, जी पात्र में दो-तिहाई अंश तक ही हो। इसे नित्य पूजन के साथ केवल आवश्यकतानुसार जल प्रदान करें।
यदि कलश से अलग बो रहे हैं तो...
अधिक संख्या में या अलग-अलग जवारे बोना चाहें तो मिट्टी के पात्रों का प्रयोग कर सकते हैं। एक बड़े धाल में कंकू से स्वस्तिक बनाकर उस पर अक्षत चढ़ा, मिट्टी के पात्रों को इनके ऊपर रखें। जवारे बोने हेतु मिट्टी का ही पात्र लें। पात्र आकार में बड़ा और चौड़ा हो, इसे अच्छी तरह से साफ करते हुए स्थान प्रदान करें और पूर्व में बताई गई विधि अनुसार मिट्टी का मिश्रण तैयार कर जवारे बोएं।
जल देने की विधि : जल देने की एक सरल और पुरानी विधि के अनुसार जवारों में अंतिम रूप से मिट्टी बुरकने के स्थान पर केवल जल का हल्का छिड़काव करें और पहले दिन पात्रों को किसी बड़ी थाली से ढक दें। इससे नमी भीतर रहती है और जवारों में अंकुरण जल्दी होता है। दूसरे दिन हल्का जल छिड़ककर पुनः ढक दें। तीसरे दिन अंकुर आने पर थाली हटा दें। जल यथावत देते रहें। जैसे-जैसे जवारे बड़े होते जाएं, इन्हें बिखरने से बचाने के लिए मौली की सहायता से हल्का बांध दें।
जवारों के रूप-रंग और आकार को कई बार शुभ- अशुभ संकेतों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। कई बार मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी या जल की अनियमितता के चलते जवारे ठीक से पनप नहीं पाते। ऐसे में इसे अपशगुन या त्रुटि के रूप में न देखते हुए मन में सकारात्मकता का भाव रखें। अमूमन जवारों के निचले हिस्से का रंग पीला या सफ़ेद होता है जिसे लेकर मन में चिंता बनी रहती है, लेकिन शास्त्रों में जवारों का निचला सफेद रंग धन और समृद्धि के देवता कुबेर का प्रतीक माना जाता है।
विसर्जन के नियम...
- नवरात्र के अंतिम दिन ही अखंड ज्योत का भी पूर्ण होना अनिवार्य होता है। इसलिए प्रतिदिन तेल भरते हुए इसके प्रज्वलित रहने के समय का ध्यान रखें। अंतिम दिन विसर्जन के समय का अनुमान लगाकर उतना ही तेल भरें जितने में पूजा भी संपन्न हो जाए और ज्योत का भी समापन हो जाए।
- विसर्जन के दिन नित्य पूजन-अर्चन और भोग इत्यादि से निवृत्त होने के बाद, शुभ मुहूर्त देखकर सबसे पहले घट को स्थान से विस्थापित ( जगह से अलग कर दें। फिर हाथों में उठाकर आम के एक पत्ते की सहायता से सारे घर में इसके जल का छिड़काव करते हुए शुद्धि करें। शेष बचे हुए जल को किसी पेड़ या पौधे में डाल सकते हैं।
- तत्पश्चात देवी की प्रतिमा/तस्वीर, जवारों और सुपारी स्वरूप गौरी-गणेश को उठाकर पूरे घर में भ्रमण करा दें, जिससे घर के हर एक कोने में इनकी उजली दृष्टि पड़ जाए।
- अब कुछ जवारों को बीज सहित निकालकर अपने घर की तिजोरी में रख लें। शेष जवारों को गौरी-गणेश सहित ले जाकर किसी नदी या जलाशय में विसर्जित कर दें। देवी की प्रतिमा/ तस्वीर को उसके पूर्वनिर्धारित स्थान पर पुनः स्थापित कर दें।
विशेष.....
- एक बार स्थापना के पश्चात जवारों और कलश का स्थान परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इसलिए स्थापना के स्थान का चयन सोच-विचार कर करें। • घर में चूहे होने पर जवारों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें। चूहे जवारों को खाकर / कुतरकर नष्ट कर देते हैं। इसलिए जवारे बोने से पूर्व ही इस समस्या का प्रबंधन कर लें।
- अखंड ज्योत के अतिरिक्त एक दीपक देवी की बैठक के समक्ष रखें और एक आरती के लिए अलग से तैयार करें।
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मां के मंदिर में भेंट जो चढ़ाई जाए
मंदिर में कभी खाली हाथ नहीं जाया जाता। उपासक, निवेदक है, याचक है, लेकिन ईश कृपा से खाली नहीं है। इसलिए उसे कुछ न कुछ लेकर जाना चाहिए। ख़ासतौर पर पूजा के दिनों में कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें।
शक्ति की आराधना का सुअवसर शारदीय नवरात्र के रूप में आ रहा है। दुर्गा शक्ति के नौ अलग-अलग रूप हैं जो हर तरह की नकारात्मकता से रक्षा के लिए एक कवच जैसा कार्य करते हैं। देवी के नाम के उच्चारण से ही हमारी चेतना के स्तर में वृद्धि होती है और ये नाम हमें निर्भय और शांत बनाते हैं। भक्तों का विश्वास है कि देवी का नामोच्चार ही मन-जीवन को लाभान्वित करता है।
देवी आराधना में घर पर ही देवी की मूर्ति रूप व घट के रूप में स्थापना किए जाने की परम्परा है। साथ ही जवारे बोए जाते हैं और नौ दिन के उपवास रखे जाते हैं। इन दिनों मंदिर जाकर मां के दर्शन का उत्साह भी भक्तों में बहुत होता है। मंदिर में उपासक पुष्प, भेंट आदि लेकर जाते हैं। क्या लेकर जाना चाहिए, जो शास्त्रसम्मत हो, इसको विस्तार से जानिए। देवी के मंदिर जाते समय धारण किए हुए परिधान धुले व स्वच्छ हों। उचित यही है कि घर से निकलकर पहले मंदिर जाएं और उसके बाद ही अगर कहीं और जाना हो, तो जाएं। मां के मंदिर जाएं तो पुरुषों के मस्तक कोरे न हों, उनमें तिलक लगा हो, व स्त्रियों के सिर ढंके हों।
चावल
मंदिर में कुछ और भेंट चढ़ाने को न हो, तो घर से निकलते समय अपने दाएं हाथ से एक मुट्ठी चावल उठाएं और उन्हें बाएं हाथ में रख लें। मंदिर में पहुंचकर उन्हें पुनः दाएं हाथ में लेकर देवी के चरणों में अर्पित करें।
❀ मंतव्य है कि देवी हमारे भंडार आपकी कृपा से हैं और आपकी कृपा बनी रहे।
लाल पुष्प
देवी को ताजा लाल पुष्प अर्पित किया जाना चाहिए। गुड़हल या लाल रंग का गुलाब अर्पित किया जा सकता है।
❀ पुष्प का स्वरूप व रंग मां की पसंद का है, सो उनके आनंद में वृद्धि करने के मन से गुड़हल चढ़ाया जाता है।
चुनरी
अक्सर देवी के समक्ष छोटी- सी चुनरी उपासक रख देते हैं, जो देवी को अर्पित करने वाले आकार की भी नहीं होती। चुनरी चढ़ाने के प्रतीक के रूप में कलावे की माला बनाकर पूजा की थाली या देवी के चरणों में रखना अधिक उचित है।
❀ मां को वस्त्रों की भेंट, आभार प्रदर्शन के रूप में देखी जाती है।
सिक्का
देवी दर्शन में धन का अर्पण जरूर करें। एक सिक्का ही चढ़ाएं लेकिन यह आवश्यक है। सिक्का, पुष्प, फल आदि को देवी के चरणों में न रख पा रहे हों, तो पूजन- आरती के थाल में रखें। वह भी संभव न हो, तो मंदिर की देहरी पर रखें।
❀ जो अर्जित हम करते हैं, वो आपकी दया से है, आप कृपा करें, धन में वृद्धि हो, यह सिवका चढ़ाने का अर्थ है।
ऋतुफल
मौसम का कोई भी फल देवी को अर्पित किया जा सकता है। न हो, तो नारियल चढ़ा सकते हैं। फल को दान पेटी या रेलिंग आदि पर न रखें। देवी के चरणों में या उनके समक्ष रखें।
❀ फल मौसम की उपज का रूप है और नारियल श्रीफल है। दोनों की भेंट मां दुर्गा के चरणों में उपज का अर्पण है।
सुहाग का सामान
अक्सर उपासक सुहाग के सामान के तैयार पैकेट मां के मंदिर में अर्पित करते हैं। सुहाग के सामान का नियम यह है कि इसे मां के चरणों में रखकर या मां को भेंट करते हुए ले लिया जाए और किसी सुहागन को भेंट किया जाए। इसीलिए इस सामग्री की गुणवत्ता ऐसी होनी चाहिए कि कोई इसका उपयोग कर सके।
❀ सुहाग का सामान उस दिन मंदिर ले जाएं, जिस दिन तक उपासना की मानता परिवार में हो। जो सप्तमी करें, वे सप्तमी के दिन, अष्टमी मानने वाले उस दिन और नवमी को उपासना का पड़ाव मानने वाले नवमी वाले दिन यह भेंट दें।
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देवी पूजन के अभिन्न अंग...
मार्कंडेय पुराण में नवरात्र शक्ति आराधना के अंतर्गत पंचोपचार और षोडषोपचार पूजन का विधान बताया गया है। साथ ही वर्णित है देवीपूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री।
जल कलश... गंगाजल की कुछ बूंदें और अक्षत डालकर इसे वरुण कलश बनाया जाता है। इस पवित्र जल से ही देवी की पूजा- आराधना की जाती है।
चंदन ... पीला व लाल चंदन दोनों ही देवी को अर्पित करने से परेशानियां दूर होती हैं।
शृंगार... प्रतिमा पर विभिन्न प्रकार की श्रृंगार सामग्री चढ़ाने की शास्त्रोक्त परम्परा है।
कुमकुम... अखंड सौभाग्य का सूचक ये देवी पूजन सामग्री का अभिन्न अंग है।
हल्दी... पूजा में हल्दी को औषधि के रूप में स्थान प्राप्त है। कुमकुम के साथ इसका तिलक देवी को लगाया जाता है।
मेहंदी... सौभाग्य और समृद्धि देने वाली है। इसके साथ देवी पूजा पूर्ण मानी जाती है।
गुलाल... शक्ति के साथ विजय का भी प्रतीक है। शक्ति आराधना में देवी प्रतिमा के चरणों और शस्त्रों पर चढ़ाया जाता है।
अक्षत... देवी पूजा का पूर्ण फल देने वाला हविष्य (हवन में प्रयोग में लाया जाने वाला) अन्न, देवी की पूजा में महत्वपूर्ण है।
मौली... पूजा में इसका प्रयोग उपवस्त्र के तौर पर होता है और पूजन के बाद रक्षासूत्र के रूप में कलाई पर भी बांधा जाता है।
फूल... देवी को मुख्य रूप से लाल पुष्प (गुड़हल, कमल और गुलाब) प्रिय हैं।
इत्र... सुगंधित द्रव्यों में फूलों की सुगंध वाले इत्र देवी को अत्यंत प्रिय होते हैं।
नारियल... सुख-समृद्धि देने वाले श्रीफल के बिना कोई पूजा संपन्न नहीं मानी जाती।
लौंग, इलाइची और पान के पत्ते... पूजन पूर्ण होने पर नैवेद्य चढ़ाने के बाद पान के पत्ते पर लौंग और इलायची रखकर देवी को अर्पित करना चाहिए।
कपूर... पूजन के समापन के साथ देवी की आरती कपूर से जरूर करनी चाहिए।
धूप-दीप... पूजा में घी का दीपक लगाने का विधान है। वहीं, धूप के लिए गुग्गल के प्रयोग का विधान है। •
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नौ दिन ... 9 व्रताहार
नवरात्र में भक्त मां दुर्गा की आराधना करने के साथ उपवास भी रखते हैं। व्रताहार में अमूमन आलू, व्रत में लिए जाने वाले आटे साबूदाने आदि से मिलाकर आहार बनाए जाते हैं..
1. चटकारे आलू
● क्या चाहिए : छोटे आलू- 500 ग्राम, खसखस- 2 बड़े चम्मच, हरी मिर्च- 1 बड़ा चम्मच कटी हुई, हरा धनिया- कप कटा हुआ, अजवाइन- 2 छोटे चम्मच, अनार दाने- 1/4 कप, धनिया और जीरा पाउडर- 1-1 छोटा चम्मच, अनारदाना पाउडर- 1 छोटा चम्मच, ताजा नारियल - लम्बाई में कटा थोड़ा-सा अदरक- 2 छोटे चम्मच सेंधा नमक।
● ऐसे बनाएं : आलू को उबाल लें। खसखस को अजवाइन के साथ ठंडे पानी में भिगो दें। इसे हरी मिर्च, हरा धनिया और थोड़े-से पानी के साथ पीस लें। पैन में घी गर्म करके हरी मिर्च डालें। खसखस पेस्ट मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। सारे सूखे मसाले मिलाएं। जब मसाला पक जाए तो इसमें आलू, अनारदाना पाउडर और नींबू का रस मिलाएं। हरे धनिए व नारियल से सजाएं।
2. तीन मिर्च 2 पुलाव
● क्या चाहिए : समा के चावल- 1 कप, लाल और पीली शिमला मिर्च- 1/2-1/2 कप कटी हुई, हरी मिर्च- 2, अदरक- 1 बड़ा चम्मच बारीक कटा, अनन्नास- 1/4 कप, घी - 2 बड़े चम्मच, जीरा- 1 छोटे चम्मच, नींबू का रस- 1 छोटा चम्मच, मखाना- 1 कप, लाल मिर्च पाउडर - 1 छोटा चम्मच, सेंधा नमक ।
● ऐसे बनाएं : मखाने को घी और लाल मिर्च पाउडर में अच्छी तरह मिला लें। समा के चावल को सेंधा नमक के साथ पानी में उबाल लें। समा चावल जल्दी पक जाते हैं। इसलिए ध्यान रखें कि ये जलें नहीं। अनन्नास के चौकोर टुकड़े काट लें। लाल और पीली शिमला मिर्च के भी चौकोर टुकड़े काट लें। गर्म पैन में घी डालें, इसमें जीरा, अदरक, हरी मिर्च और शिमला मिर्च डालकर मिलाएं। इसमें उबले हुए चावल मिलाएं। मखाने और नींबू का रस मिलाएं।
3. आलू- कुट्टू पकौड़े
● क्या चाहिए : कुट्टू का आटा- 1-1/2 कप, आलू- 4-5, हरा धनिया- 1/4 कप, जीरा- 2 छोटे चम्मच, हरी मिर्च- 1/4 छोटा चम्मच, काली मिर्च- 1/4 छोटा चम्मच, घी- तलने के लिए। चटनी के लिए- कच्चा पपीता- 1 कप छिला और कीसा हुआ, शक्कर- 3/4 कप, चक्र फूल- थोड़े-से, किशमिश - 2 छोटे चम्मच, चिली फ्लेक्स- 1 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : आलू को उबालकर कीस लें। इसमें जीरा, हरी मिर्च, हरा धनिया, काली मिर्च, कुट्टू का आटा और नमक मिलाएं। गर्म तेल में इनके पकौड़े तल लें। पपीते को शक्कर के साथ पानी में पका लें। हरी मिर्च, चक्र फूल और किशमिश मिलाकर कुछ मिनट पकाएं। जब सब एकसार हो जाए तो चक्र फूल हटाकर चटनी पीस लें। नमक मिलाकर पकौड़ों के साथ खाएं।
4. शकरकंद चाट
● क्या चाहिए : सेब - 250 ग्राम (छिले और कटे हुए), चाय का पानी- 1 छोटा चम्मच, सेंधा नमक थोड़ा-सा, पुदीने की पत्तियां थोड़ी-सी, शकरकंद- 1 कप, इमली- 1/2 कप, गुड़- 1 कप, हरी मिर्च- 1 छोटा चम्मच कटी हुई, टमाटर- 20 ग्राम, हरे धनिए की डंडियां- 14 ग्राम कटी हुई, साबुत राजगिरा - छोटा चम्मच, तेल- तलने के लिए।
● ऐसे बनाएं : सेब को छीलकर बड़े टुकड़े काट लें। एक बर्तन में चाय का पानी, पुदीना और नमक मिलाएं. इसमें सेब डालकर मैरिनेट करें। शकरकंद को छीलकर उबाल लें और चौकोर काटकर तल लें। इमली को पानी में उबालकर छान लें। इमली में गुड़ और हरी मिर्च मिलाकर चटनी बना लें। अब शकरकंद का एक टुकड़ा रखें। इस पर चेरी टमाटर या सामान्य कटे हुए टमाटर (वैकल्पिक) और धनिया की कटी हुई डंडी रखें। इमली की चटनी डालें। इस चाट को सेब के टुकड़े के ऊपर रखें और ऊपर से भुना हुआ राजगिरा बुरक दें।
5.पनीर पिनव्हील
● क्या चाहिएं : पनीर- 250 ग्राम, मिंट पेस्टो चटनी- 1/2 कप, टमाटर पेस्ट- 1/2 कप, लाल मिर्च पाउडर- 1 बड़ा चम्मच, क्रीम- 1/2 कप, कद्दू - 1/2 कप, तेल- 2 बड़े चम्मच, जीरा- 1 छोटा चम्मच, सेंधा नमक- स्वादानुसार। मिंट पेस्टो चटनी के लिए - पुदीना- 1 कप, हरी मिर्च- 4-5, मूंगफली- 12 कप, अदरक- 1-1/2 इंच, सेंधा नमक ।
● ऐसे बनाएं : पुदीना, हरी मिर्च, मूंगफली, नमक पीसकर मिंट पेस्टो चटनी तैयार कर लें। पनीर के लंबे-लंबे टुकड़े काट लें। टमाटर को उबालकर पीस लें और थोड़े-से तेल में पकाकर गाढ़ा कर लें। इसमें हरी मिर्च मिलाएं। पनीर को 30 सेकंड के लिए माइक्रोवेव करें या भाप में पका लें। इस पर टमाटर का पेस्ट और मिंट पेस्टो चटनी लगाएं। पनीर को रोल कर लें। अब ग्रेवी बनाने के लिए कद्दू को उबालकर छिलका उतार लें और गूदे को पीस लें। जीरे से छौंक लगाएं और इसमें क्रीम मिला लें। इसे प्लेट में डालें, ऊपर से पिनव्हील रखकर खाएं।
6. पान पंपकिन मलाई
● क्या चाहिए : पीला कद्दू (पका हुआ)- 1 किलो, शकरकंद- 500 ग्राम, घी- 2/2 कप, गुलकंद- 2 बड़े चम्मच, क्रीम 1 कप, शक्कर पाउडर- 2 कप, अंजीर, खजूर, खुबानी और किशमिश- 1/4-1/4 कप, केसर- थोड़ी-सी ।
● ऐसे बनाएं : कद्दू व शकरकंद कीस लें। इन्हें अलग-अलग घी में पका लें। गहरे बर्तन में दूध उबालें व कद्दू-शकरकंद इसमें मिलाएं। शक्कर भी मिला लें। कुछ देर भूनें। सारे सूखे मेवे, गुलकंद व केसर मिलाएं। गुलाब की पंखुड़ियों से सजाएं।
7. छुआरा बादाम हलवा
● क्या चाहिए : छुआरा - 1 किलो, बादाम- 250 ग्राम, गुड़- 1/2 कप, घी- 2-1/2 कप, मलाईदार दूध- 1 लीटर, इलायची पाउडर- 1 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : छुआरे को दूध में 4 घंटे के लिए भिगोकर रखें। बादाम को पानी में 4 घंटे भिगोकर रखें। फिर छिलका उतारकर पीस लें। छुआरे के बीज निकालकर बारीक पीस लें। कड़ाही में घी डालकर छुआरे व बादाम का पेस्ट डालें। गुड़ डालकर धीमी आंच पर पकाएं। जब घी ऊपर आ जाए तो इसे आंच से उतारें। ऊपर से इलायची पाउडर डालकर परोसें।
8. नवरत्न रायता
● क्या चाहिए : दही- 5 बड़े चम्मच, चुकंदर- 1 बड़ा चम्मच, खीरा- 1 बड़ा चम्मच, हरी मिर्च- 1/4 छोटा चम्मच, हरा धनिया- 1/2 छोटा चम्मच, पुदीना की पत्तियां- 3-4, कढ़ी पत्ते- 3-4, अनार दाने- 1½ छोटा चम्मच, सेंधा नमक ।
● ऐसे बनाएं : चुकंदर को उबालकर बारीक काट लें। सब्जियों को भी बारीक काट लें। कढ़ी पत्ते को रोस्ट करके हाथ से मसल लें। बोल में दही डालें। इसमें सारी सामग्री मिलाकर फ्रिज में रखें। ठंडा खाएं।
9. कोकोनट
● क्या चाहिए: गाजर- 1 किलो कीसी हुई, नारियल दूध- 22 लीटर, काजू- 1/2 कप, खजूर- 1/2 कप, शक्कर- 1 कप, हरी इलायची पाउडर- 1 छोटा चम्मच, केसर थोड़ा-सा, कोकोनट मलाई सजाने के लिए।
● ऐसे बनाएं : गाजर को नारियल दूध में पका लें। इसमें शक्कर व खजूर डालकर धीमी आंच पर पकाएं। कोकोनट क्रीम डालकर पकाएं। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इलायची पाउडर मिलाकर ठंडा करें। काजू, केसर व थोड़ी-सी नारियल मलाई से सजाएं।
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नौ दिनों के लिए 9 नैवेद्य
नवरात्र में हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। मां के इन स्वरूपों के साथ-साथ उनके भोग भी अलग-अलग मान्य हैं। मां को प्रसन्न करने के लिए उनके पसंदीदा नैवेद्य की जानकारी दे रहे हैं ।
1. पहले दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी व उससे बने नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
कुट्टू पेड़े संग नारंगी जैल
● क्या चाहिए : पेड़े के लिए- कुट्टू का आटा- 3 बड़े चम्मच, गाय का घी- 1-1/2 बड़े चम्मच, शक्कर- 2 बड़े चम्मच, इलायची पाउडर- 1/2 छोटा चम्मच, हल्दी पाउडर- 1 चुटकी। जेल के लिए - संतरे का रस- 34 कप, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच, संतरे का ज़ेस्ट- 1½ छोटा चम्मच |
● ऐसे बनाएं
कड़ाही में घी गर्म कर इलायची पाउडर और कुट्टू का आटा डालकर कुछ मिनट भूनें। घी ऊपर आ जाए तो हल्दी पाउडर मिलाएं और ठंडा करके पेडे बना लें। पैन में संतरे का रस और शक्कर डालकर पकाएं। मिश्रण गाढ़ा हो जाए तो आंच बंद करके ठंडा करें। संतरे का ज़ेस्ट मिलाएं। कटोरी में जैल के साथ पेड़े रखकर भोग लगाएं।
2. दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को नैवेद्य में मिश्री, शक्कर और पंचामृत अर्पित किए जाते हैं।
ठंडा चरणामृत मिश्री
● क्या चाहिए : दही- 2 बड़े चम्मच, ताजी मलाई- 2 छोटे चम्मच, तुलसी- 4-5 पत्तियां, शक्कर- 5 छोटे चम्मच, चिरौंजी- 1 छोटा चम्मच, घी- ½ छोटा चम्मच, शहद- 1 छोटा चम्मच, मिश्री - 1 छोटा चम्मच, दूध- 1 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : बोल में दही व मलाई मिलाएं। दूध, शक्कर व शहद डालकर शक्कर घुलने तक मिलाएं। चिरौंजी, तुलसी, मिश्री और घी मिलाएं। घोल को आइस ट्रे या मोल्ड में डालकर फ्रीज़र में रखें। ठंडा-ठंडा भोग देवी को चढ़ाएं।
3. तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बने नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
मखाना फिरनी
● क्या चाहिए : कैरेमल के लिए - मखाना और शक्कर 1-1 बड़ा चम्मच, इलायची पाउडर- 1 चुटकी, घी- 1/4 छोटा चम्मच। फिरनी के लिए - मलाईदार दूध- 1-3/4 कप, मखाना- 14 कप, घी- ½ छोटा चम्मच, किशमिश, बादाम और पिस्ता- थोड़े-से, शक्कर- 2/3 कप, केसर- थोड़े-से रेशे।
● ऐसे बनाएं :मखानों को थोड़े से घी में सेंक लें। कड़ाही में शक्कर पकाएं। जब यह कैरेमल बन जाए तो घी व इलायची पाउडर डालकर लगातार चलाएं। आंच बंद करके भुने मखाने मिलाएं। एक प्लेट पर घी लगाकर चिकना करें और मखाना इसमें डालकर ठंडा करें। फिरनी बनाने के लिए, कड़ाही में घी गर्म करके मखाने भूनें। आधे मखानों को दरदरा पीस लें व आधे को अलग रखें। इसी कड़ाही में दूध उबालें। आंच धीमी करें व केसर डालें। दूध गाढ़ा होने लगे तो शक्कर व सूखे मेवे मिलाएं। पिसा मखाना मिलाएं। इसे ठंडा कर साबुत भुने मखाने मिलाकर भोग बनाएं।
4. चौथे दिन मां कूष्मांडा को दूध से 4 बने नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
कुट्टू मालपुए पपीता रबड़ी
● क्या चाहिए : मालपुआ के लिए - कुट्टू का आटा- 3/4 कप, सौंफ- 1/4 छोटा चम्मच, इलायची पाउडर- ½ छोटा चम्मच, दूध - 2 बड़े चम्मच, घी- 2 बड़े चम्मच, खोया- छोटा चम्मच कीसा हुआ, शक्कर- 3 बड़े चम्मच। रबड़ी- कच्चा पपीता - 4 बड़े चम्मच, मलाईदार दूध- 1-1/4 कप, शक्कर- 2/3 कप।
● ऐसे बनाएं : मालपुए के लिए - कुट्टू का आटा, सौंफ व इलायची पाउडर मिलाएं। दूध मिलाएं और गाढ़ा होने तक पकाएं। खोया मिलाकर 5 मिनट पकाएं। एक तार की चाशनी तैयार कर लें। अब कड़ाही में घी गर्म करें। चम्मच से घोल को घी में डालकर मालपुआ तलें। इन्हें चाशनी में डुबोकर निकाल लें। रबड़ी के लिए पपीता उबालें व पीसकर पेस्ट बनाएं। कड़ाही में दूध उबालें। आंच धीमी करके केसर डालें। दूध गाढ़ा हो जाए तो शक्कर मिलाकर पकाएं। पपीते का पेस्ट मिलाएं। ठंडा करके मालपुआ के साथ रखें।
पांचवें दिन मां स्कंदमाता को केले या उससे बने 5 नवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
कुट्टू कोकोनट पैनकेक
● क्या चाहिए : केले- 2, कुट्टू आटा- 4 कप, कीसा नारियल - 2 बड़े चम्मच, शक्कर- 1-1/2 बड़े चम्मच पिसी और 2 बड़े चम्मच बिना पिसी, नींबू जेस्ट- 1½ छोटा चम्मच, घी- 1 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : कुट्टू आटा, 1 केला (मसला हुआ), नारियल, शक्कर पाउडर, नींबू जेस्ट और पानी डालकर घोल बनाएं। इसे 5 मिनट रखें। पैन में घी डालें। घोल से पैनकेक डालकर धीमी आंच पर दोनों तरफ़ से सेंकें। अलग पैन में शक्कर डालकर पकाएं ताकि यह कैरेमल बन जाए। दूसरे केले की पतली परत काटें और इस पर कैरेमल लगाकर ठंडा करें। इसे पैनकेक के साथ सजाकर भोग के लिए रखें।
6. छठे दिन मां कात्यायनी को शहद के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
शकरकंद शहद खीर
● क्या चाहिए : शकरकंद - 1/2 कप उबली हुई, मलाईदार दूध - 1-1/2 कप, शक्कर- 2/3 कप, खोया- 1 बड़ा चम्मच, शहद- 1 बड़ा चम्मच, दालचीनी पाउडर- ½ छोटा चम्मच, बादाम, चिरौंजी, किशमिश और छुआरा - थोड़े से, सूखा नारियल- थोड़े-सा कीसा हुआ।
● ऐसे बनाएं : मेवे रोस्ट कर लें। शकरकंद पीस लें। कड़ाही में दूध उबालें। आंच धीमी कर खोया व शकरकंद मिलाएं। दूध गाढ़ा होने लगे तो शक्कर मिलाकर थोड़ा पकाएं। शहद व दालचीनी पाउडर मिलाकर भोग तैयार करें।
7. सातवें दिन मां कालरात्रि को गुड़ के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
राजगिरा लड्डू
● क्या चाहिए : राजगिरा दाना या आटा- 13/4 कप, गुड़- 3 बड़े चम्मच, घी- 1/2 कप, इलायची पाउडर- 1/4 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : कड़ाही में राजगिरा सूखा भूनकर निकाल लें। कड़ाही में घी गर्म करके इलायची पाउडर, गुड़, राजगिरा दाना मिलाएं और 2 मिनट पकाकर ठंडा करें। हथेलियों को पानी से हल्का गीला करके इनके लड्डू बना लें।
8. आठवें दिन मां महागौरी को नारियल के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
नारियल बर्फी
● क्या चाहिए : बर्फी के लिए ताजा नारियल- 4 बड़े - चम्मच कीसा हुआ, घी- 1 बड़ा चम्मच, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच, सौंफ- 1-2 छोटे चम्मच। साँस के लिए अनन्नास का -रस- 6 बड़े चम्मच, शक्कर- 1 छोटा चम्मच, नींबू का रस- 14 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : कड़ाही में घी गर्मकर सौंफ पाउडर और कीसा नारियल मिलाकर पकाएं। शक्कर और थोड़ा-सा पानी मिलाकर पकाएं। पककर गाढ़ा हो जाए तो घी लगी प्लेट पर निकाल लें। पसंदीदा आकार में काटकर ठंडा कर लें। पैन में अनन्नास रस डालें। शक्कर डालकर कुछ मिनट पकाएं। गाढ़ा हो जाए तो इसे ठंडा करें और नींबू का जेस्ट मिलाएं। इसे ठंडा करके बर्फी के साथ रखें।
9. नवें दिन मां सिद्धिदात्री को नैवेद्य में चना-पूरी- - हलवा अर्पित किए जाते हैं।
बादाम रोज़ हलवा
● क्या चाहिए हलवे के लिए सूजी- 2 बड़े चम्मच, घी और शक्कर 1-1 बड़ा चम्मच, हरी इलायची- 3-4, गुलाब जल और बादाम पाउडर- 1-1 छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : कड़ाही में घी गर्म करके इलायची व सूजी को धीमी आंच पर भूनें। हल्की भूरी हो जाए तो बादाम पाउडर मिलाएं और 1-2 मिनट भूनें। शक्कर व थोड़ा गर्म पानी डालकर लगातार चलाएं। हलवा पक जाए तो गुलाब जल व 1 छोटा चम्मच घी ऊपर से डालें।
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एनर्जी के 9 ड्रिंक्स
ठंडे पेय ऊर्जा देने के साथ-साथ गर्मी से राहत देते हैं। मोहितो, शेक और शिकंजी जैसे स्वादिष्ट व ठंडे पेय लेकर आए हैं जिनका सेवन उपवास में व्रताहार के साथ कर सकते हैं। प्राकृतिक खाद्यों से तैयार किए गए ये पेय पौष्टिक भी हैं।
1. स्मोक्ड प्लम मोहितो
● क्या चाहिए : आलूबुखारा - 2 बड़े चम्मच, पुदीना- 1 छोटा चम्मच, पानी- 1-1/2 कप, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच, नींबू जेस्ट- ½ छोटा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : आलूबुखारा के बीज निकाल दें। बोल के बीच में कोयला या लकड़ी सुलगाकर रखें और साथ में आलूबुखारा रखकर ढक दें। अब आलूबुखारा, पुदीना, पानी, शक्कर और नींबू के रस को बर्फ के कुछ टुकड़ों के साथ बारीक पीस लें। स्मोक्ड प्लम मोहितो के गिलास में परोसें।
2.लेमन - मिंट मोहितो
● क्या चाहिए हरे धनिए की डालियां- 1 बड़ा चम्मच कटी हुई, पुदीने की पत्तियां- 1 बड़ा चम्मच, पानी- 1-1½ कप, नींबू का रस- 2 बड़े चम्मच, नींबू जेस्ट- 1/2 छोटा चम्मच, शक्कर- 1-1/2 बड़े चम्मच।
● ऐसे बनाएं :धनिए की डालियां और पुदीने को अच्छी तरह से धो लें। इनको शक्कर और पानी के साथ बारीक पीस लें। फिर नींबू का रस और जेस्ट मिलाएं। बर्फ डालें या कुछ देर फ्रिज में रखें। ठंडे मोहितो का सेवन करें।
3. ऑरेंज केन शुगर शिकंजी
● क्या चाहिए : संतरे का रस - 1/4 कप, नींबू जेस्ट- 1/2 छोटा चम्मच, पानी- 2 बड़े चम्मच, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच। ● ऐसे बनाएं : पैन में शक्कर और संतरे का रस डालकर 5 मिनट पकाएं, फिर ठंडा कर लें। इसे पानी और बर्फ के टुकड़ों के साथ पीस लें। नींबू जेस्ट मिलाकर गिलास में परोसें और आनंद लें।
4. पोमेग्रेनेट लेमनेड
● क्या चाहिए : चुकंदर - 1/2, अनार का रस - 1-1/2 कप, अनार दाने - थोड़े-से, नींबू का रस- 1/2 बड़ा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : चुकंदर उबालकर छिलका उतार लें व मोटा-मोटा काट लें। चुकंदर, अनार का रस, नींबू रस और बर्फ के टुकड़े पीस लें। इसे गिलास में डालें, ऊपर से अनार के दाने डालकर लेमनेड पिएं।
5. बीटरूट चीकू शेक
● क्या चाहिए : चीकू गूदा 1-1/4 कप, चुकंदर प्यूरी- 1 बड़ा चम्मच, दूध- 1-1/4 कप, शक्कर- 2 बड़े चम्मच।
● ऐसे बनाएं : चीकू के बीज निकालकर अलग कर लें। चुकंदर प्यूरी, चीकू का गूदा, दूध और शक्कर को पीस लें। बर्फ डालकर या फ्रिज में रखकर ठंडा करके पिएं।
6. काली मिर्च रोज़ शेक
● क्या चाहिए : काली मिर्च- 2-3, दूध- 1/2 कप, रोज सिरप - 2 बड़े चम्मच, गुलाब जल- 1 बड़ा चम्मच, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच।
● ऐसे बनाएं काली मिर्च को दरदरा कूट लें। दूध, काली मिर्च, रोज सिरप, गुलाब जल और शक्कर को बर्फ के साथ पीस लें। गिलास में परोसकर ठंडा-ठंडा पिएं।
7. कीवी और पान शेक
● क्या चाहिए : कीत्री- 1 (छीली हुई), पान का पत्ता- 1, दूध- 1½ कप, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच।
● ऐसे बनाएं : कीवी काटकर इसे पान, दूध और शक्कर के साथ बारीक पीस लें। शेक को गिलास में डालकर फ्रिज में रखें। ठंडा-ठंडा पिएं।
8. केसर काजू शेक :
● क्या चाहिए : दूध- 1/2 कप, केसर- 3-4 रेशे, काजू- 2 बड़े चम्मच, शक्कर- 1/2 बड़े चम्मच।
● ऐसे बनाएं : केसर को 5 मिनट कड़ाही में भून (रोस्ट) लें। इसे दोनों हथेली से मसलकर थोड़े-से ठंडे दूध में मिला लें। काजू को बारीक काट लें और दस मिनट के लिए गर्म पानी में भिगो दें। दूध, केसर वाला दूध, काजू, शक्कर और थोड़े-से बर्फ के टुकड़े पीस लें। शेक को गिलास में डालकर केसर और काजू से सजा लें।
9. कोकोनट मिल्क शेक
● क्या चाहिए : नारियल दूध- 1/2 कप, शक्कर- 1 बड़ा चम्मच, नींबू जेस्ट- 1½ छोटा चम्मच।
ऐसे बनाएं नारियल दूध ताजे नारियल का छिलका उतारकर बारीक पीसें और फिर छान लें। इसको एयरटाइट कांच की बोतल में रखकर एक हफ्ते तक फ्रिज में रख सकते हैं।
● ऐसे बनाएं नारियल दूध और शक्कर को बर्फ के टुकड़ों के साथ ब्लैंड कर लें। जब यह मिल जाए तो इसमें नींबू का जेस्ट डाल दें। इसे गिलास में डालकर ठंडा-ठंडा पिएं।
जब बनाएं नींबू ज़ेस्ट बारीक किसनी पर नींबू को रगड़ें। नींबू का केवल पीला हिस्सा कीसना है, सफ़ेद नहीं। जेस्ट निकालकर फौरन इस्तेमाल करें। लंबे समय तक रखने से स्वाद व ख़ुशबू चली जाएगी।
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नवरात्र के नौ दिन उपवास के दौरान शरीर को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उचित आहार और उसे ग्रहण करने का तरीका गर सही हो तो तन-मन को ऊर्जावान बनाए रखा जा सकता है।
पोषण पर भी करें विचार
नवरात्र में लोग अलग-अलग तरह से उपवास रखते हैं। कुछ केवल फल का सेवन करते हैं, तो कुछ एक समय नवरात्र भोजन ग्रहण करते हैं। क्योंकि इस उपवास के दौरान अनाज जैसे ठोस पदार्थ नहीं खाए जाते इसलिए बलाहार लेते समय ग्रहण करने का तरीका और समय, दोनों सही होने चाहिए। कब खाना है और कैसे खाना चाहिए, जैसे कई सवालों के जवाब आहार विशेषज्ञ से जानिए।
नवरात्र में पूरे नौ दिन केवल फल व मेवे खाने वाले लोग दिन के किस समय फलाहार लें ?
अगर उपवास में केवल फल और मेवे ही लेते हैं और नमक नहीं ले रहे हैं तो हर तीन घंटे में कुछ न कुछ फल या मेवे लेना चाहिए, जिससे शरीर में ऊर्जा बनी रहेगी। खाली पेट रहने से गैस एसिडिटी की समस्या हो सकती है और शरीर में कमजोरी भी आती है। इसके अलावा, जो नमक नहीं ले रहे हैं उनको हाइड्रेटेड रहना चाहिए, जिसके लिए जूस, छाछ और दही आदि का सेवन करते रहें। दिन में कोई भी फल, मेवे या मिष्ठान लिए जा सकते हैं, लेकिन रात में मौसंबी, संतरा या अनन्नास जैसे खट्टे फल नहीं लेने चाहिए, क्योंकि कई लोगों को इन्हें रात में खाने से कफ की समस्या होने लगती है। इन फलों को दिन में लिया जा सकता है।
जल कितना लेना चाहिए क्योंकि अनाज नहीं खा रहे हैं और भोजन के रूप में भी फल, मेवे आदि हैं? उपवास में शरीर को हाइड्रेटेड रखना जरूरी है। इसलिए दिन में 3-4 लीटर पानी जरूर पिएं। इसके अलावा, यदि भोजन में केवल फल या मेवे ले रहे हैं तो इसके साथ ही दूध, दही, मट्ठा या फलों का जूस भी लेते रहें, जिससे उपवास के समय प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनी रहेगी और कमजोरी भी महसूस नहीं होगी।
पूरे नौ दिन केवल फलाहार करने वाले जब उपवास खोलें यानी नवमी की शाम या दशमी की सुबह, तो क्या खाएं और कितना खाएं?
लंबे उपवास के दौरान पेट में आमाशय थोड़ा सिकुड़ जाता है। अगर तुरंत कोई अधिक कार्बोहाइड्रेट वाला आहार लेंगे तो पेट संबंधी समस्या हो सकती है। शुरुआत में थोड़ा हल्का भोजन लेना चाहिए। उपवास खोलने के बाद कोई जंक फूड या अधिक वसायुक्त भोजन न लें।
जो एक समय सेंधा नमक वाला फलाहार करते हैं. उनके लिए किस समय आहार लेना ठीक होगा ?
जो लोग दिन में एक बार सेंधा नमक लेते हैं उन्हें रात के बजाय सुबह के समय सेंधा नमक लेना चाहिए, क्योंकि दिन में हमारे शरीर को ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है। दिन में हमारा शरीर अधिक सक्रिय होता है तो ऊर्जा के लिए हमारे फलाहार में सेंधा नमक शामिल होना आवश्यक है। रात में शरीर को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है। सेंधा नमक हमारे शारीरिक और मानसिक संतुलन के लिए जरूरी है।
जो पूरे नौ दिन अनाज नहीं खाते, उनके लिए व्रत खोलते समय क्या निर्देश होंगे ?
नवरात्र का उपवास फलों के रस, नारियल पानी, नींबू पानी जैसे हल्के तरल आहार से खोलना चाहिए। कुछ घंटे बाद हल्का भोजन और दूसरे दिन सामान्य भोजन कर सकते हैं। व्रत खोलते समय का भोजन कम कार्बोहाइड्रेट वाला होना चाहिए, जैसे सब्जियों में टमाटर, हरी सब्जियां आदि । इसके अलावा, दूध, दही या पनीर आदि ले सकते हैं। फलों में संतरा, मौसंबी आदि का अधिक सेवन कर सकते हैं।
नवमी के प्रसाद में अमूमन पूरियां, चने, खीर, रायता आदि बनाए जाते हैं, तो उपवासियों को कितना और क्या खाना चाहिए?
इन सभी को काफी कम मात्रा में लेना चाहिए क्योकि जैसे कि पहले भी इस बात का जिक्र किया गया है कि नौ दिन के व्रत रखने के बाद पेट (आमाशय) थोड़ा सिकुड़ जाता है और इन खाद्यों का अधिक सेवन करने से पेट संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं। नौ दिन तक उपवास में कई लोग केवल फल और मेवे पर रहते हैं जिससे उनके पाचन की गति धीमी हो जाती है। इसके कारण पूरी या पराठे जैसे गरिष्ठ भोजन से पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं कर पाता जिससे पेट ख़राब हो सकता है। पाचन को | दुरुस्त करने के लिए व्रत खोलने के बाद हल्का भोजन लेना ही उचित होता है। कोशिश करें कि व्रत के पहले या बाद में भोजन में सब्जियां और दूध से बना भोजन अधिक करें।
उपवासियों के लिए सोने का समय क्या होना चाहिए?
व्रत के दिनों में उपवास करने वाले लोगों को पूजा-पाठ आदि के लिए सुबह जल्दी उठना होता है। दिनभर के उपवास के बाद शरीर में अधिक थकान हो जाती है। इसके लिए उन्हें रात में 10 बजे तक सोने का प्रयास करना चाहिए। 7-8 घंटे की नींद लेना सभी के लिए जरूरी है। अगर दिन में सोना चाहते हैं तो 20 मिनट की झपकी ले सकते हैं।
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'कंजक पूजन' में कन्याओं के साथ क्यों किया जाता है एक बालक का पूजन
नवरात्र में दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत एवं मान- सम्मान किया जाता है। इन कन्याओं को देवी के 9 रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है।
माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर-सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। 9 कन्याओं को देवियों के 9 प्रतिबिम्ब के रूप में पूजने के बाद ही नवरात्र व्रत पूरा होता है।
शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं। इसके बाद इन कन्याओं को स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से धोना और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।
इसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए। फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार या पूरी, काले चने एवं हलवे का भोजन कराएं।
अष्टमी - नौवीं को कंजक पूजन
भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा एवं उपहार दें और पुनः उनके पैर छूकर आशीष लें।
9 कन्याओं के साथ जरूरी है एक बालक मान्यताओं के अनुसार 9 कन्याओं के साथ 1 बालक भी होना चाहिए क्योंकि मां दुर्गा की पूजा के साथ भैरव की पूजा अवश्य की जाती है। यही कारण है कि नवरात्रि में 9 कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर पूजते हैं, तो वहीं बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है। बटुक का अर्थ होता है बालक ।
यह भी माना जाता है कि बालक की पूजा बजरंगबली का स्वरूप मानकर की जाती है, इसलिए कंजकों के साथ बिठाए जाने वाले बालक को लांगुर या लंगुरिया भी कहा जाता है। जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है। न हो कन्याओं का शोषण नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद ये सब भूल जाते हैं।
बहुत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपमान किया जाता है। आज भी भारत में बहुत से क्षेत्रों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है, ऐसा क्यों? क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे? कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी।
देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें। इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं।
Thankyou