भारत में 5177 (कहीं 5147) वर्ष पूर्व एक महान विभूति ने जन्म लिया। उन्होंने जर्जर हो चुकी एकतंत्रीय शासन प्रणाली को समाप्त कर अनोखी लोकतंत्रीय प्रणाली का श्रीगणेश कर सभी वर्गों को संगठित कर युग प्रवर्तक, अहिंसा के पुजारी, अग्रवाल समाज के संस्थापक महाराजा अग्रसेन जयंती ( Maharaja Agrasen Jayanti in hindi ) के नाम से प्रसिद्ध हुए।
महाराजा अग्रसेन के पूर्वज / महाराजा अग्रसेन का जन्म स्थान : द्वापरयुग के अन्तिम काल और कलियुग के प्रारम्भ में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को सूर्यवंशी भगवान श्रीराम के पुत्र कुश की 34वीं पीढ़ी में सरस्वती नदी के पावन किनारे बसे प्रताप नगर के सूर्यवंशीय महाराजा धनपाल की छठी पीढ़ी राजा वल्लभ सेन के घर इन्होंने जन्म लिया।
बचपन में ही शास्त्रों, अस्त्र-शास्त्र, राजनीति और अर्थनीति के ज्ञान ने इन्हें। सुसंस्कारित बना दिया, जिससे इन्होंने संगठन कौशल और वीर योद्धा के रूप में ख्याति अर्जित करनी शुरू कर दी। 15 वर्ष की आयु में इन्होंने पांडवों के पक्ष से महाभारत का भी युद्ध लड़ा था।
यौवन की दहलीज पर पांव रखते ही पिता के आदेश पर नागलोक के महाराज कुमुद की पुत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में पहुंचे तो राजकुमारी ने इनकी सुंदरता और तेज से प्रभावित होकर इनके गले में वरमाला डाल इन्हें अपना पति बना लिया।
बचपन में ही शास्त्रों, अस्त्र-शास्त्र, राजनीति और अर्थनीति के ज्ञान ने इन्हें सुसंस्कारित बना दिया, जिससे इन्होंने संगठन कौशल और वीर योद्धा के रूप में ख्याति अर्जित करनी शुरू कर दी। 15 वर्ष की आयु में इन्होंने पांडवों के पक्ष से महाभारत का भी युद्ध लड़ा था।
यौवन की दहलीज पर पांव रखते ही पिता के आदेश पर नागलोक के महाराज कुमुद की पुत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में पहुंचे तो राजकुमारी ने इनकी सुंदरता और तेज से प्रभावित होकर इनके गले में वरमाला डाल इन्हें अपना पति बना लिया।
यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। इस शादी से स्वर्ग के राजा इंद्र नाराज हो गए और इनके राज्य में बारिश बंद कर दी परन्तु तप द्वारा प्राप्त दिव्य अस्त्रों से इन्होंने वर्षा करवा दी, जिससे इंद्र और अधिक चिढ़ गए और इन्हें तंग करने लगे। तब अग्रसेन जी ने भगवान शंकर और मां लक्ष्मी का कठोर तप कर वरदान प्राप्त किया।
उन्होंने एक नए राज्य आग्र्यण की स्थापना कर चारों ओर फैले अंधकार में समाजबाद और आदर्श लोकतंत्र की मिसाल कायम की। अग्रसेन जी ने अपने राज्य में बाहर से आकर बसने वालों या गरीब परिवारों की सहायता के लिए एक सोने की मुद्रा और एक ईंट देने की सामाजिक समरसता और विश्व बंधुत्व की ऐसी पद्धति शुरू की, जो विश्व में मिसाल बन गई।
महाराजा अग्रसेन की वंशावली : इनके घर में 18 पुत्रों ने जन्म लिया, जिनके नामों पर ही अग्रवंश के विभिन्न गोत्रों की स्थापना हुई जो आज भी अग्रवंशियों को आपस में जोड़े हुए हैं। आपने मां लक्ष्मी की आराधना कर वर प्राप्त किया कि अग्र वंशजों पर धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहेगी। उन्होंने अपने राज्य में यज्ञ में पशु बलि के स्थान पर नारियल की आहुति डालने का आदेश दिया।

108 वर्ष सफलतापूर्वक शासन करने के बाद मां लक्ष्मी जी के ही आदेश से अपने राज्य की बागडोर बड़े बेटे विभु को थमा कर वानप्रस्थ चले गए। महाराजा अग्रसेन जी के वंशज आज अग्रवाल के नाम से पूरे विश्व में जाने जाते हैं। इस समाज की कई विभूतियों ने अपने कार्यों से अग्रवाल समाज और देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया जिनमें महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय, डा. राम मनोहर लोहिया, सर गंगा राम, मैथिली शरण गुप्त, भारतेंदु हरीशचंद्र और सेठ जमना दास आदि प्रमुख हैं।
कालांतर में प्राकृतिक आपदाओं से यह राज्य तबाह हो गया। 650 एकड़ के इस भूखंड की सबसे पहले 1888- 89 में सी.डी. रोजर्स और 1938-39 में एच.एल. श्रीवास्तव ने खुदवाई करवाई, जिससे प्राप्त वस्तुओं से वहां किसी बड़े राज्य होने के प्रमाण मिले हैं।
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