Janmashtami Kab Hai | कृष्ण जन्माष्टमी , एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जिसे जन्माष्टमी krishna janmashtami वा गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, दशावतारों में से जो विष्णुजी के आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण Shree Krishna के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है।

Janmashtami Kab Hai | कृष्ण जन्माष्टमी कब है
जन्म कृष्ण जन्माष्टमी कितने तारीख को है? Janmashtami Kab Hai /What is the real date of Janmashtami?
वृंदावन मथुरा में जन्माष्टमी कब की है?
मथुरा का वृंदावन रंगों और संक्रामक आनंद से भर जाने के लिए तैयार है! भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, जन्माष्टमी, सोमवार, 26 अगस्त, 2024 को आ रहा है । मथुरा का वृंदावन एक जीवंत तमाशे में बदल जाता है।
इस पर्व पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। इसके लिए पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें और काले तिल मिलाकर नहा सकते हैं। फिर कृष्ण मंदिर जाकर भगवान को पंचामृत और शुद्ध जल चढ़ाएं। इसके बाद पीले कपड़े, फिर पीले फूल, इत्र और तुलसी पत्र चढ़ाएं।
शुभ जन्माष्टमी कौन से दिन की है? Janmashtami Kis Din Hai / Krishna Janmashtami 2024
कहते हैं कि जो व्यक्ति इस योग में जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं, उनको बैकुंठ धाम में निवास मिलता है। गृहस्थ जीवन और वैष्णव संप्रदाय वाले इस बार एक ही दिन कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व - साल 2024 में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त दिन सोमवार को मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी 2024 का व्रत कब करें?
जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाएगी। यह दिन 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। अपने व्रत की शुरुआत एक संकल्प के साथ करें, एक गंभीर प्रतिबद्धता जो भगवान कृष्ण के प्रति आपके अटूट प्रेम को दर्शाती है। पूरे दिन भगवान कृष्ण का नाम जपें।
क्या जन्माष्टमी के व्रत में दूध पी सकते हैं?
दूध और दही: दूध और दही जन्माष्टमी अनुष्ठानों का एक अनिवार्य हिस्सा हैं । आप व्रत के दौरान ताजे फलों के शेक, लस्सी, छाछ या गुलाब के दूध का आनंद ले सकते हैं। घर का बना प्रसाद: कृष्ण जन्माष्टमी पर घर पर ही प्रसाद (प्रसाद) तैयार करें।
भगवान श्री कृष्ण Shree Krishna परिपूर्णतम् परात्पर ब्रह्म हैं। वह जगत के कल्याण के लिए अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करने के लिए सर्वव्यापक निराकार ब्रह्म होते हुए भी साकार रूप में अपनी माया को अधीन करके प्रकट होते हैं। वह केवल धर्म की स्थापना करने और संसार का उद्धार करने के लिए ही अपनी योगमाया से सगुणरूप होकर प्रकट होते हैं। उनके जन्म एवं कर्म दिव्य हैं, जो इसे जान लेता है, ऐसे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।
जिस समय भगवान के आविर्भाव का अवसर आया, स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियां अपने- आप बज उठीं। बड़े-बड़े देवता और ऋषि-मुनि आनन्द विभोर होकर पुष्पों की वर्षा करने लगे। जब वसुदेव जी ने देखा कि जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले भगवान मेरे पत्र के रूप में तो स्वयं आए हैं तो उनका रोम-रोम परम आनन्द में मग्न हो गया। वह हाथ जोड़ कर बोले, "प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान् और सबके स्वामी हैं। इस संसार की रक्षा के लिए ही आपने मेरे घर अवतार लिया है।"
देवकी भी कंस के भय से भगवान से प्रार्थना करते हुए बोलीं, "हे विश्वात्मन्! आपका यह रूप अलौकिक है। आप शंख, चक्र, गदा और कमल की शोभा से युक्त अपना यह चतुर्भुज रूप छिपा लीजिए।"
तब श्रीभगवान ने कहा, "देवी! स्वायम्भुव मन्वन्तर में जब तुम्हारा पहला जन्म हुआ था, उस समय तुम्हारा नाम पृश्नि था और ये वसुदेव सुतपा नाम के प्रजापति थे। तुम दोनों ने कठोर तपस्या, श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से अपने हृदय में नित्य- निरन्तर मेरी भावना की थी। तब तुम दोनों ने मेरे- जैसा पुत्र मांगा।"
सर्वशक्तिमान, संसार रूपी वृक्ष की उत्पत्ति के एकमात्र आधार, चराचर जगत के कल्याण के लिए निराकार स्वरूप होते हुए भक्ति तथा प्रेमवश साकार रूप धारण करने वाले श्री हरि भगवान ने भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में बहुत सुंदर एवं मधुर लीलाएं कीं। इन लीलाओं का इतना प्रभाव है कि इनके श्रवण, पठन से अंतःकरण शीघ्र अतिशीघ्र शुद्ध हो जाता है। भगवान ने अपनी बाललीला में कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों पूतना, तृणावर्त, बकासुर और अघासुर का नाश कर उन्हें मुक्ति प्रदान की व कंस का वध कर मथुरा नगरी को भयमुक्त किया।
अघासुर जैसे राक्षसों को मोक्ष प्राप्त हुआ यह देख बह्मा जी को अत्यंत आश्चर्य हुआ। जब उन्होंने बाल कृष्ण भगवान की परीक्षा लेने के लिए ग्वाल बाल और बछड़ों को चुरा लिया, तब सब ग्वाल बालों और बछड़ों का स्वरूप धारण कर भगवान श्री कृष्ण जी ने बह्मा जी के विश्वकर्त्ता होने के अभिमान को नष्ट किया। तब ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहा," आपकी महिमा का ज्ञान तो बड़ा कठिन है। आप अनंत आदि पुरुष परमात्मा हैं और मेरे जैसे बड़े-बड़े मायावी भी आपकी माया के चक्र में हैं, इस मायाकृत मोह के घने अंधकार से मैं भ्रमित था। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।"
महाविषधर कालिय नाग ने जब यमुना जी का जल विषैला कर दिया तब भगवान ने कालिय दमन कर यमुना जी का जल पावन किया। गोविंद भगवान ने इंद्र की पूजा बंद करवा कर गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रारंभ करवाई तो क्रोध एवं अहंकार वश इंद्र ने ब्रज पर मूसलाधार वर्षा करवाई।
तब माधव गोविंद ने खेल-खेल में गिरिराज गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की प्रलयंकारी वर्षा से रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण की योगमाया के प्रभाव से चकित इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी।
एक समय रात्रि के समय यमुना जी में स्नान करने पर नंद जी को वरुण के सेवक पकड़ कर ले गए। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें वरुण लोक से वापस ले आए।
इसी प्रकार अपने गुरु सांदीपनी जी के आश्रम में शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात दक्षिणास्वरूप उनके मृत पुत्र को यमलोक से वापस लाकर अपने गुरु को गुरु दक्षिणा दी। पांडवों ने जब राजसूय यज्ञ का आयोजन किया, तब भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से पांडवों के माध्यम से जरासंध की कैद से सहस्त्रों राजाओं को मुक्त करवाया।
महाभारत के युद्ध में कर्त्तव्य मार्ग से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने समस्त वेदों, उपनिषदों से सारगर्भित ज्ञान को श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रदान किया और अपने विश्वरूप परमात्मा के रूप में अर्जुन को दर्शन कराए।
अर्जुन गोविन्द भगवान की स्तुति में कहते हैं, 'आप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं। आप गोपियों के स्वामी तथा राधाकान्त हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं।"
अखिल ब्रह्माण्डाधिपति भगवान श्री कृष्ण जी का अत्यंत पुण्यप्रद प्राकट्य भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ, जिसे हम श्री कृष्ण Shree Krishna जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाते हैं। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर पृथ्वी से अत्याचारियों का भार उतार कर तथा अपने भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए कंस के कारागार में वसुदेव-देवकी के यहां आनन्द कन्द श्रीभगवान प्रकट हुए।
दूध और दही: दूध और दही जन्माष्टमी अनुष्ठानों का एक अनिवार्य हिस्सा हैं । आप व्रत के दौरान ताजे फलों के शेक, लस्सी, छाछ या गुलाब के दूध का आनंद ले सकते हैं। घर का बना प्रसाद: कृष्ण जन्माष्टमी पर घर पर ही प्रसाद (प्रसाद) तैयार करें।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत के ये हैं नियम Janmashtami Vrat Vidhi In Hindi
- जन्माष्टमी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
- लड्डू गोपाल का इस दिन श्रृंगार कर उनकी विधि विधान पूजा करनी चाहिए।
- व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन कृष्ण जी का पालना में वे कान्हा को झूला झुलाएंगे।
- अन्न का बिल्कुल भी जन्माष्टमी व्रत में सेवन न करें। हालांकि आप फलाहार ले सकते हैं।
- विधि विधान रात 12 बजे कृष्ण जी की पूजा करें। उन्हें मिश्री, मक्खन, फल, मखाने, और तुलसीदल का भोग लगाएं।
- श्री कृष्ण की आरती करें और प्रसाद सभी लोगों में बांट अपना व्रत खोल सकते हैं।
कृष्ण जी की पूजा में क्या क्या लगता है?
- कान्हा जी की मूर्ति, मोरपंख, बांसुरी, गाय की प्रतिमा, झूला या सिंहासन, वैजयंती माला
- लाल कपड़ा, तुलसी के पत्ते, आभूषण, गोपी चंदन
- कुमकुम, अभ्रक, मौली, रुई, तुलसी की माला, हल्दी, अक्षत, सप्तधान, आभूषण, अबीर
- गुलाल, इत्र, कलश, दीपक, धूप, सप्तमृत्तिका, फल, पीले वस्त्र
- खड़ा धनिया की पंजीरी, नैवेद्य या मिठाई, छोटी इलायची, माखन, मिश्री, लौंग, धूपबत्ती, कपूर
- केसर, नारियल, पंचामृत, फूल, केले के पत्ते, अभिषेक के लिए तांबे या चांदी का पात्र,
- कुशा और दूर्वा, गंगाजल, शहद, शक्कर, सुपारी, पंचमेवा, पान, सिंदूर
- अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र , गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
- माखन, तुलसी पत्ता, वस्त्र, चंदन, फूल, मिश्री, पंचामृत कान्हा की पूजा में ये चीजें खास हैं
कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं? Why celebrate Janmashtami?
जन्माष्टमी कृष्ण के जन्मोत्सव से कहीं बढ़कर है; यह उनकी शिक्षाओं और उनके मूल्यों पर चिंतन करने का भी समय है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक यह त्यौहार पूरे भारत में अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।दही हांडी 2024 कितने तारीख को है? 2024 में दही हांडी कब है? Dahi Handi 2024 Kab Hai (दही हांडी कब है 2024 में)
इस साल दही हांडी उत्सव मंगलवार, 27 अगस्त को मनाया जाएगा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को दुनिया भर में जन्माष्टमी मनाई जाती है।जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है
इस दिन को भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है।श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा Krishna Janmashtami Story
श्री कृष्ण Shree Krishna का जन्म मथुरा के उग्रसेन राजा के बेटे कंस का वध करने के लिए हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में मथुरा के उग्रसेन राजा के बेटे कंस ने उन्हें सिंहासन से उतार कर कारगार में बंद कर दिया था और खुद को मथुरा का राजा घोषित कर दिया थाभगवान श्री कृष्ण Shree Krishna परिपूर्णतम् परात्पर ब्रह्म हैं। वह जगत के कल्याण के लिए अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करने के लिए सर्वव्यापक निराकार ब्रह्म होते हुए भी साकार रूप में अपनी माया को अधीन करके प्रकट होते हैं। वह केवल धर्म की स्थापना करने और संसार का उद्धार करने के लिए ही अपनी योगमाया से सगुणरूप होकर प्रकट होते हैं। उनके जन्म एवं कर्म दिव्य हैं, जो इसे जान लेता है, ऐसे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।

देवकी भी कंस के भय से भगवान से प्रार्थना करते हुए बोलीं, "हे विश्वात्मन्! आपका यह रूप अलौकिक है। आप शंख, चक्र, गदा और कमल की शोभा से युक्त अपना यह चतुर्भुज रूप छिपा लीजिए।"
तब श्रीभगवान ने कहा, "देवी! स्वायम्भुव मन्वन्तर में जब तुम्हारा पहला जन्म हुआ था, उस समय तुम्हारा नाम पृश्नि था और ये वसुदेव सुतपा नाम के प्रजापति थे। तुम दोनों ने कठोर तपस्या, श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से अपने हृदय में नित्य- निरन्तर मेरी भावना की थी। तब तुम दोनों ने मेरे- जैसा पुत्र मांगा।"
सर्वशक्तिमान, संसार रूपी वृक्ष की उत्पत्ति के एकमात्र आधार, चराचर जगत के कल्याण के लिए निराकार स्वरूप होते हुए भक्ति तथा प्रेमवश साकार रूप धारण करने वाले श्री हरि भगवान ने भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में बहुत सुंदर एवं मधुर लीलाएं कीं। इन लीलाओं का इतना प्रभाव है कि इनके श्रवण, पठन से अंतःकरण शीघ्र अतिशीघ्र शुद्ध हो जाता है। भगवान ने अपनी बाललीला में कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों पूतना, तृणावर्त, बकासुर और अघासुर का नाश कर उन्हें मुक्ति प्रदान की व कंस का वध कर मथुरा नगरी को भयमुक्त किया।
अघासुर जैसे राक्षसों को मोक्ष प्राप्त हुआ यह देख बह्मा जी को अत्यंत आश्चर्य हुआ। जब उन्होंने बाल कृष्ण भगवान की परीक्षा लेने के लिए ग्वाल बाल और बछड़ों को चुरा लिया, तब सब ग्वाल बालों और बछड़ों का स्वरूप धारण कर भगवान श्री कृष्ण जी ने बह्मा जी के विश्वकर्त्ता होने के अभिमान को नष्ट किया। तब ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहा," आपकी महिमा का ज्ञान तो बड़ा कठिन है। आप अनंत आदि पुरुष परमात्मा हैं और मेरे जैसे बड़े-बड़े मायावी भी आपकी माया के चक्र में हैं, इस मायाकृत मोह के घने अंधकार से मैं भ्रमित था। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।"
महाविषधर कालिय नाग ने जब यमुना जी का जल विषैला कर दिया तब भगवान ने कालिय दमन कर यमुना जी का जल पावन किया। गोविंद भगवान ने इंद्र की पूजा बंद करवा कर गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रारंभ करवाई तो क्रोध एवं अहंकार वश इंद्र ने ब्रज पर मूसलाधार वर्षा करवाई।
तब माधव गोविंद ने खेल-खेल में गिरिराज गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की प्रलयंकारी वर्षा से रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण की योगमाया के प्रभाव से चकित इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी।
एक समय रात्रि के समय यमुना जी में स्नान करने पर नंद जी को वरुण के सेवक पकड़ कर ले गए। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें वरुण लोक से वापस ले आए।
इसी प्रकार अपने गुरु सांदीपनी जी के आश्रम में शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात दक्षिणास्वरूप उनके मृत पुत्र को यमलोक से वापस लाकर अपने गुरु को गुरु दक्षिणा दी। पांडवों ने जब राजसूय यज्ञ का आयोजन किया, तब भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से पांडवों के माध्यम से जरासंध की कैद से सहस्त्रों राजाओं को मुक्त करवाया।
महाभारत के युद्ध में कर्त्तव्य मार्ग से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने समस्त वेदों, उपनिषदों से सारगर्भित ज्ञान को श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रदान किया और अपने विश्वरूप परमात्मा के रूप में अर्जुन को दर्शन कराए।
अर्जुन गोविन्द भगवान की स्तुति में कहते हैं, 'आप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं। आप गोपियों के स्वामी तथा राधाकान्त हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं।"
अखिल ब्रह्माण्डाधिपति भगवान श्री कृष्ण जी का अत्यंत पुण्यप्रद प्राकट्य भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ, जिसे हम श्री कृष्ण Shree Krishna जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाते हैं। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर पृथ्वी से अत्याचारियों का भार उतार कर तथा अपने भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए कंस के कारागार में वसुदेव-देवकी के यहां आनन्द कन्द श्रीभगवान प्रकट हुए।
जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त कब है?
कृष्ण जन्माष्टमी पर मध्य रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ है। अतः 26 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन पूजा का समय 27 अगस्त को देर रात 12 बजकर 01 मिनट से लेकर 12 बजकर 45 मिनट तक है। इस समय में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-उपासना कर सकते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी कब है फोटो Janmashtami 2024 date and Time
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाद्रपदा महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को द्वापर युग में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. इस वर्ष यह तिथि 26 अगस्त 2024 को पड़ रही है. पंचांग के मुताबिक, अष्टमी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त सुबह 3:39 पर हो जाएगी और 27 अगस्त रात 2:19 पर समाप्त होगी.
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