मेघनाथ और लक्ष्मण का अंतिम युद्ध meghanaath aur lakshman ka antim yuddh | राम-रावण के युद्ध में मेघनाद Meghnaad ने बड़ा पराक्रम दिखाया। वह श्री राम और लक्ष्मण जी को मारना चाहता था। इस प्रयास में उसने लक्ष्मण जी पर प्राणघातक शक्ति का प्रयोग किया था, जिससे लक्ष्मण जी मूच्छित हो गए थे। वैद्य सुषेण के कहने पर हनुमान जी Hanuman Ji ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राण बचाने में सहायता की थी।

उसके बाद के युद्ध के दौरान मेघनाद ने राम- लक्ष्मण को मारने के अनेक प्रयत्न किए, परन्तु विफल रहा। इस युद्ध में लक्ष्मण जी के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया। लक्ष्मण जी ने मेघनाद का सिर उसके शरीर से अलग कर दिया। उसका सिर श्रीराम के आगे रखा गया। सभी रीछ और वानर उसे देखने लगे। तब श्रीराम ने कहा, "इसके सिर को संभालकर रखो।"
दरअसल मेघनाद की पत्नी सुलोचना को श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना देना चाहते थे। उन्होंने बाण के द्वारा मेघनाद की एक भुजा को, मेघनाद के महल में पहुंचा दिया।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना को वह भुजा देखने पर विश्वास ही नहीं हुआ कि उसके पति मेघनाद की मृत्यु हो चुकी है। उसने कटी हुई भुजा से कहा, " मेरी दुविधा को लिखकर दूर करो, अगर तुम वास्तव में मेरे पति मेघनाद की भुजा हो।"
सुलोचना के इतना कहते ही भुजा हरकत करने लगी। तब एक सेविका ने खड़िया लाकर उस हाथ में रख दी। उस कटे हुए हाथ ने आंगन में लक्ष्मण जी की प्रशंसा के शब्द लिख दिए । तब सुलोचना को विश्वास हो गया कि युद्ध में उसका पति मारा गया है। सुलोचना इस समाचार को सुनकर रोने लगी। फिर वह रथ में बैठकर रावण से मिलने चल पड़ी। सुलोचना ने रावण को मेघनाद का कटा हुआ हाथ दिखाया और अपने पति का सिर मांगा।
सुलोचना ने रावण से कहा, “अब मैं एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती। मैं मेरे पति के साथ सती होना चाहती हूं।" तब रावण ने कहा, "पुत्री, चार घड़ी प्रतीक्षा करो, मैं मेघनाद का सिर शत्रु से लेकर आता हूं।" परन्तु सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। सुलोचना इसके बाद मंदोदरी के पास गई। तब मंदोदरी ने कहा, "तुम राम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं।" तब सुलोचना का परिचय विभीषण ने श्री राम से करवाया।सुलोचना ने श्री राम से कहा, "मैं आपकी शरण में आई हूं, राम, आप मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि मैं अब सती हो सकूं।"
सुलोचना की दशा देखकर श्री राम द्रवित हो गए। उन्होंने कहा, "मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं।"
सुलोचना ने श्री राम से कहा, “अब मेरे पति फिर से जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें" मैं नहीं चाहती मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि आपके मुझे दर्शन हो गए। मेरा जन्म सफल हो गया और अब मेरी जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं।"
श्री राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए, परन्तु उनके मन में एक आशंका थी कि मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण जी का गुणगान कैसे किया। सुग्रीव से रहा नहीं गया और कहा, "जब मेघनाद Meghnaad का नरमुंड (कटा हुआ सिर) हंसेगा तभी मैं सुलोचना की बात को सच मानूंगा ।"
यह सुलोचना के सतीत्व की बहुत बड़ी परीक्षा थी फिर उसने कटे हुए मेघनाद के सिर से कहा, "हे स्वामी ! जल्दी हंसिए, वरना आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब लोग सत्य नहीं मानेंगे। इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस तरह सुलोचना अपने पति मेघनाद का कटा हुआ सिर लेकर चली गई।
ज्योतिषाचार्य सुंदरमणि, उत्तरकाशी
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